Haribhoomi Exclusive : Joginder Singh Ugrahan बोले- किसान आंदोलन का अंत नहीं, संघर्ष की शुरूआत हुई, खेती को लाभकारी बनाना मकसद

रवींद्र राठी. बहादुरगढ़
ऐतिहासिक किसान आंदोलन (Kisan Andolan) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन 'भारतीय किसान यूनियन उग्राहां' की बागडोर संभालने वाले पूर्व फौजी जोगेंद्र सिंह उग्राहां (Joginder Singh Ugrahan) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमिट छाप छोड़ने वाले आंदोलन से जहां किसानों का मान बढ़ा है, वहीं खेती रुतबा भी बढ़ा है। हरिभूमि से विशेष बातचीत में उन्होंने आंदोलन की उपलब्धियों से लेकर संयुक्त किसान मोर्चा की आगामी रणनीति पर बेबाकी से अपने विचार सांझा किए।
पंजाब में संगरूर जिले के गांव उग्राहां निवासी 75 वर्षीय जोगेंद्र सिंह उग्राहां का संगठन पंजाब के किसानों का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है। चार साल तक सेना में सेवा दे चुके जोगेंद्र सिंह 1982 से किसानों को संगठित कर रहे हैं। उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ने के बाद भारतीय किसान यूनियन (लखोवाल) में काम करना शुरू किया था। फिर 1989 में भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) में सक्रिय रहे। लेकिन 2002 में उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) का गठन किया। उनका संगठन पंजाब के 30 संगठनों के मोर्चे का हिस्सा नहीं था। लेकिन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली मोर्चे पर सबसे मजबूत संघर्ष उनके संगठन ने किया। उग्राहां की पत्नी का देहांत हो चुका है और उनकी दो बेटियां विवाहित हैं।
बेहद साधारण घर में रहने वाले उग्राहां किसानों की छोटी से छोटी समस्या को लेकर सरकार व प्रशासन से सीधे भिड़ जाते हैं। किसानों के लिए कठिनाई बने सरकारी कायदों को खुलेआम चुनौती देने वाले उनके संगठन की पंजाब के मालवा व माझा इलाके में जबरदस्त पकड़ है। उन्होंने नशे का विरोध करके महिलाओं का विश्वास जीता। उनमंे विशेष पैठ बनाई। हर गांव में उनका संगठन विस्तार कर चुका है। शांत स्वभाव के उग्राहां के पीछे लाखों किसान खड़े हैं। उनका संगठन आंदोलन में शामिल सबसे बड़ा और मजबूत संगठन था। सियासत से दूरी बनाए रखने वाले जोगेंद्र सिंह उग्राहां ने आंदोलन के दौरान किसी भी राजनेता को नजदीक नहीं फटकने दिया। अब 15 जनवरी 2022 को दिल्ली में सभी जत्थेबंदियों समेत किसान संगठनों की बैठक में आगामी रणनीति तैयार की जाएगी।
महिलाओं के सबसे बड़े जमावड़े के साथ बहादुरगढ़ के बाईपास पर जमे उग्राहां के लिए युवा शक्ति को नियंत्रित रखना चुनौती से कम नहीं था। जिससे वे बखूबी निपटे। उनके अनुसार किसान आंदोलन का सबसे बड़ा हथियार शांतिपूर्ण प्रदर्शन रहा। कृषि कानूनों के खात्मे के अलावा आंदोलन ने खेती-किसानी का रुतबा भी बढ़ाया है। खेती बीते एक साल में अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बना। युवाओं में इसके प्रति रूचि बढ़ी। विदेशी फंडिंग के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारे अपने लोग, जो विदेशों में काम कर रहे हैं, उन्होंने हमें पैसा भेजा। इस शांतिपूर्ण आंदोलन को आंतकवादी-खालिस्तानी, कांग्रेसी-देशविरोधी बताकर बदनाम करने की सभी साजिशों को किसानों की एकजुटता ने फेल किया। अहंकार को हराया है। किसान विरोधी कानून तो खत्म हो गए, लेकिन अभी किसानों के जीवन स्तर को सुधारने का संघर्ष जारी रहेगा।
उग्राहां शुरू से जानते थे कि यह मुद्दा बड़ा है, इसे हासिल करने में बड़ी ताकत और लंबा समय लगेगा। युवा शक्ति का सेवाभाव और हरियाणा-पंजाब के किसानों में बढ़ा भाईचारा ही आंदोलन का हासिल है। संयुक्त किसान मोर्चा समन्वय के साथ भविष्य में भी किसानों के हित में काम करता रहेगा। यूपी में गन्ना के बकाये का भुगतान, बिहार आदि राज्यों में एमएसपी पर फसल खरीद समेत अनेक मुद्दे हैं। उग्राहां ने कहा कि सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को बेच रही है। बड़े पैमाने पर युवा बेरोजगार हैं। महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अपराध निरंकुश हो रहा है। हम जीतने आए थे और जीतकर जा रहे हैं। लेकिन यह अंत नहीं शुरूआत है। खेती को मुनाफे का सौदा बनाना ही उनका मकसद है।
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