Kargil Vijay Diwas : 24 साल की उम्र में देश पर मर मिटने वाले शहीद नरेश के माता-पिता बोले- आज तक कोई सहायता नहीं मिली

संदीप श्योराण : बाढड़ा
देश की खातिर आज से करीब 23 साल पहले कारगिल युद्ध मे अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले बाढड़ा उपमंडल के गांव डांडमा के शहीद नरेश श्योराण के माता-पिता को आज तक कोई सहायता नहीं मिली है। उनके बेटे ने महज 24 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर गांव में उन्हें शहीद के माता-पिता होने का दर्जा तो दिलवा दिया। लेकिन गांव में नरेश की याद में शहीद स्मारक भी परिजनों को अपने रुपये से बनवाना पड़ा है। शहीद के भाई ने गांव के स्कूल या किसी और संस्था का नाम उनके शहीद भाई नरेश के नाम करने की सरकार की मांग की है।
वर्ष 1999 में देश के कारगिल क्षेत्र में दुश्मनों ने हमला कर दिया था। जिसमें देश के अनेक वीर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर दुश्मनों को खदेड़ते हुए उन्हें बैकपुट पर धकेल दिया था। अनेक शुरमाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी जिसके दम पर कारगिल पर विजय पताका फहराई थी। इन्हीं वीर शुरमाओं में चरखी दादरी जिले के बाढड़ा उपमंडल के गांव डांडमा का जाबांज सिपाही नरेश श्योराण भी शामिल था। जिसने कारगिल युद्ध में दुश्मन सेना से लोहा लेते हुए छाती, गर्दन व हाथ पर गोली खाई और 10 अगस्त 1999 को वतन के लिए कुर्बान हो गए। महज 24 साल की उम्र में देश पर मर मिटने वाले शहीद नरेश कुमार के माता-पिता को आज भी वो कुछ नहीं मिल पाया है जिसके वे हकदार हैं। नरेश के पिता हरिसिंह व माता सुंदर देवी को एक ओर अपने लाल को युवा अवस्था में खोने का मलाल है तो दूसरी ओर उन्हें देश के काम आने वाले अपने बेटे पर गर्व भी है। वर्तमान में शहीद जवान कें माता-पिता अपने दूसरे किसान बेटे रमेश के साथ सामान्य जीवन यापन कर रहे हैं।
1995 में हुए थे भर्ती और 1999 में शहीद
डांडमा निवासी नरेश श्योराण में बाल्यअवस्था से ही सेना में भर्ती होने का जज्बा था। जिसके चलते वे आठवीं तक की पढ़ाई गांव में करने के बाद अपने भाई के पास जयपुर चले गए थे। जहां उन्होंनें सेना के लिए तैयारी की और वर्ष 1995 में गंगानगर में भर्ती हुए। उसके बाद 1998 में लक्ष्मी के साथ उनकी शादी हुई और 1999 में शहीद हो गए।
पांच भाईयों का लाडला था नरेश
कारगिल युद्ध में शहीद होंने वाले नरेश श्योराण हरिसिंह व सुंदर देवी के घर जन्में पांच भाईयों के लाडले थे। जिसके चलते नरेश को खोने का गम उसके भाईयों को भी है। नरेश के अलावा उनके भाई दिलबाग सिंह ने भी बीएसएफ में अपनी सेवाएं दी है। उनके भाई रामबिलास ने मायूस होते हुए बताया कि वे छह भाई थे लेकिन नरेश के जाने के बाद पांच बचे है।
नहीं मिल पाई माता-पिता को सहायता:
शहीद नरेश श्योराण के भाई रामबिलास ने बताया कि शादी के एक साल बाद ही वह शहीद हो गया था। उस दौरान जो भी सहायता राशि मिली व उसकी पत्नी को मिली। लेकिन बाद में उसकी पत्नी ने दूसरी शादी कर ली और जो सहायता मिली उसका लाभ उसके माता-पिता को नहीं मिल पाया। उन्होंने बताया कि गांव में जो नरेश की याद में जो शहीद स्मारक बनवाया गया है उसके लिए भी जमीन उन्होंने अपने रुपयों से खरीदकर स्मारक बनवाया है।
मिलना चाहिए सम्मान
शहीद के भाई ने कहा कि देश में मर मिटने वाले शहीद किसी एक के नहीं बल्कि पूरे देश के होते हैं। इसलिए उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए। रामबिलास ने सरकार से मांग की है कि उनकी याद में स्कूल या किसी और संस्था का नाम उनके नाम पर करना चाहिए ताकि गांव व क्षेत्र के युवा और बच्चे उससे प्रेरणा ले सके।
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