भारतीय सनातन संस्कृति का प्रतीक काशी विश्वनाथ

Haribhoomi Editorial : काशी विश्वनाथ मंदिर का नाम आते ही जेहन में वो तंग गलियां, अव्यवस्थाएं और भोले बाबा के दर्शनों के इंतजार में कतार में खड़ा जनहुजूम दौड़ने लगता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। वहां अब सुकून के साथ श्रद्धालु समय गुजार सकेंगे। धाम का मंदिर चौक क्षेत्र अब इतना विशाल है कि यहां 2 लाख श्रद्धालु खड़े होकर दर्शन-पूजन कर सकेंगे। इसके चलते अब सावन के सोमवारों, महाशिवरात्रि के दौरान शिव भक्तों को दिक्कत नहीं होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया। ये कॉरिडोर वाराणसी के प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर को सीधा गंगा घाट से जोड़ता है। 800 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के जरिये 241 साल बाद ये आध्यात्मिक केंद्र एक नए अवतार में नजर आ रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्रफल पहले 3,000 वर्ग फीट था। लगभग 400 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर के आसपास के 300 से ज्यादा भवनों को खरीदा गया। इसके बाद पांच लाख वर्ग फीट से ज्यादा जमीन पर 400 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से निर्माण किया गया।
यह वही काशी विश्वनाथ मंदिर है जिसे पिछले एक हजार सालों में चार बार ध्वस्त करने के प्रयास हुए। नामो-निशान मिटाने की कोशिश की गई। आक्रांता तीन बार सफल भी हुए, लेकिन हर बार इसे फिर से बनाया और संवारा गया। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने आखिरी बार इस मंदिर को तोड़ने के आदेश दिए थे। इसके बाद करीब 111 साल तक वाराणसी में कोई काशी विश्वनाथ मंदिर ही नहीं था। 1780 में इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होल्कर ने मौजूदा मंदिर को बनवाया। मंदिर को पहली बार कुतुबद्दीन ऐबक ने 1194 ई. में ध्वस्त किया। वो मोहम्मद गौरी का कमांडर था। करीब 100 साल बाद एक गुजराती व्यापारी ने इस मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया। दूसरा हमला जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने 1447 ईस्वी में करवाया था। मंदिर पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। 1585 ईस्वी में अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया। 1642 ई. में शाहजहां ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। हिंदुओं के भारी विरोध के बाद प्रमुख मंदिर को तो नहीं तोड़ा जा सका, लेकिन काशी के 63 छोटे-बड़े मंदिरों को तोड़ दिया गया। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश जारी किया। ये आदेश कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी रखा हुआ है।
सितंबर 1669 में मंदिर तोड़ दिया गया। इसके करीब 111 साल बाद इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होल्कर ने 1780 में मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का इतिहास बताता है कि अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। अंग्रेजों के दौर में भी, वारेन हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग जानते ही हैं। उन्होंने कहा कि आतातायियों ने इस नगरी पर कई बार आक्रमण किए। इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए।
औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है। उसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने का प्रयास किया। इसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की, लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है। कहा जाता है कि यहां के कण-कण में डमरू वाले बाबा का वास है। जो यहां आता है वो हमेशा के लिए यहां का होकर रह जाता है। आपको शहर की संकरी गलियों में ऐसे हजारों लोग मिलेंगे जो भारत के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से आए और सदा के लिए यही के होकर रह गए।
उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा कि पीएम मोदी ने कहा कि विश्वनाथ धाम का ये नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, ये हमारे भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। ये प्रतीक है भारत की प्राचीनता का, परंपराओं का, भारत की ऊर्जा की गतिशीलता का।
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