कुलदीप बिश्नोई का इस्तीफा, अब आदमपुर उपचुनाव में कौन बिछाएगा राहों में कांटे ?

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक
आज दो महत्वपूर्ण बातें हरियाणा की राजनीति में हुई हैं। कुलदीप बिश्नाई ने इस्तीफा दे दिया है और भाजपा के होने जा रहे हैं और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को फिर से जमानत मिल गई है और आदमपुर उपचुनाव में चौटाला साहब को भी सुनने का मौका मिल सकता है। खैर कुलदीप बिश्नोई ने इस्तीफा दे दिया है और उनका उस पार्टी में जाना तय है कि जिसे वो झूठों और गद्दारों की पार्टी बताया करते थे। खैर, ये राजनीतिक बयानबाजी होती हैं इनका कोई ज्यादा सा वजूद नहीं होता, लोग भी इन बातों को सीरियसली नहीं लेते। हरियाणा में खासकर पार्टियों की आइडियोलाजी से वोटर को कोई खास मतलब होता भी नहीं। नेता कांग्रेसी हुआ तो समर्थक कांग्रसी और नेता भाजपाई हुआ तो समर्थक भी भाजपा के गुण गाने लगेंगे।
इस्तीफा देने के साथ ही कुलदीप बिश्नोई ने ये इच्छा जता ही दी है कि वो चाहते हैं कि उनका बेटा भव्य चुनाव लड़े। इसके दो मतलब निकलते हैं कि वो भाजपा से डील करके अपनी ये इच्छा बता रहे हों या फिर भाजपा को इसके लिए अभी तक मना ही रहे हों लेकिन ये तो तय है कि उपचुनाव होगा। कुलदीप बिश्नाई लड़ें या भव्य बिश्नोई लड़ें एक ही बात है। मुख्य बात तो यह है कि हरियाणा में तो पंच के चुनाव में भी समीकरण बनते हैं तो ये फिर उपचुनाव है तो रंग तो जमना ही ही है। इस सरकार में अभी तक दो उपचुनाव हो चुके हैं। बरोदा में तो कांग्रेस जीती ही थी, ऐलनाबाद में अभय चौटाला जीते हैं लेकिन आदमपुर में अब भाजपा के पास मौका है कि वो अपनी सीटों का आंकड़ा चालीस से इक्तालीस कर ले और जजपा को थोडा प्रेशर में ले ले।
कुलदीप बिश्नोई ने हुड्डा को चैलेंज दे ही दिया है कि वो या उनका बेटा आदमपुर से चुनाव लड़े। राजनीति में इन चेलेंज में भी कोई खास दमबाजी नहीं होती है क्योंकि वो जमाना और था जब चौधरी देवीलाल कहीं से भी चुनाव लड़ लिया करते थे अब के नेता अपने हलके से बाहर पांव रखते हुए खर्राते हैं। एक बार भिवानी लोकसभा का चुनाव छोड़ दें तो खुद कुलदीप का सारा करियर आदमपुर हिसार में सिमटा रहा। चौधरी भजनलाल जरूर करनाल और फरीदाबाद तक पहुंचे। बंसीलाल कभी तोशाम भिवानी नहीं छोड़ पाए भूपेंद्र हुड्डा किलोई और पुराने रोहतक से बाहर नहीं निकले तो अब हुड्डा क्यों कुलदीप के चैलेंज के चक्कर में पड़ेंगे जब सब कुछ ठीक चल रहा हो।
हां इतना जरूर है कि आदपमुर उपचुनाव में दो पार्टियां मजबूत से मजबूत कंडीडेट देने की कोशिश करेंगी और इस बात के लिए पूरा जोर लगाया जाएगा कुलदीप बिश्नोई के भविष्य की संभावनाओं की भ्रूण हत्या कर दी जाए लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है। आज तक चौधरी भजनलाल परिवार आदमपुर में नहीं हारा है केवल 2019 लोकसभा चुनाव में जरूर भव्य बिश्नोई आदमपुर से चुनाव हार गए थे और बृजेंद्र सिंह जीते थे।
अब सवाल ये है कि कुलदीप बिश्नोई के सामने कांग्रेस के पास विकल्प क्या क्या हैं? क्या क्या नाम चल रहे हैं? आदमपुर से जुड़ें लोग भी जरूर अपने विचार रख सकते हैं? जो नाम चल रहे हैं उनमें दो प्रमुख हैं। एक है जपयप्रकाश जेपी और दूसरे हैं संपत सिंह। संपत सिंह को जितना मैं जानता हूं वो ये फालतू का झंझट अपने गले में डालेंगे नहीं क्योंकि वो पहले ऐसा करके कई हार अपने नाम लिखवा चुके हैं। बेहद समझदार राजनेता हैं नहीं लेंगे जोखिम। अब जयप्रकाश जेपी की बात आती है तो खुद ही टिकट के लिए पूरा जोर लगाएं क्योंकि उनको पता है जीत भले ही ना मिले हाइप जरूर मिलेंगी और उनके जो तेवर कलेवर हैं उसे देखते हुए लगता है कि उनके जीवन का मकसद ही चर्चा में बने रहना है। चुनाव लड़कर वो अपने बेटे विकास के लिए कलायत टिकट का जुगाड़ कर सकते हैं।
इसके अलावा डार्क हार्स के रूप में सतेंद्र सिंह का नाम लिया जा रहा है जो फिलहाल भाजपा में हैं। वो कांग्रेस से टिकट लेंगे या आम आदमी पार्टी से ये तो वक्त बताएगा लेकिन इतना सुनने में आ रहा है वो हर हाल में चुनाव लड़ेंगे ही। चौधरी भजनलाल ही उनको राजनीति में लेकर आए थे और उनके साथ एक पॉजिटिव प्वाइंट ये भी है वो हलके के स्थानीय निवासी हैं। ज्यादा जनसंपर्क है लोगों के साथ हालांकि ये सब भविष्य के गर्भ में है कि भूपेंद्र हुड्डा उनको अपनी पार्टी में लाकर टिकट दिलाने का साहस ले पाएंगे या नहीं। हां, आम आदमी पार्टी को ये जोखिम लेने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इसके अलावा रामनिवास घोडेला आदि के नाम लिए जा रहे हैं, हालांकि बहुत सीरियस नाम नहीं हैं ये।
अब कुलदीप बिश्नोई के लिए इस चुनाव में चैलेंज क्या क्या हैं? इस पर भी बात कर लेते हैं। चेलेंज है बहुल लंबे समय से सत्ता से बाहर रहना, लोगों से कट जाना और हर बार भावनाओं को कैश करके वोट मांगना? हालांकि आदमपुर के लोगों ने हमेशा भजनलाल परिवार पर विश्वास जताया है लेकिन सवाल यही है कि आखिर लोग कब तक ऐसा करते रहेंगे? जो आदमी मुख्यमंत्री की लड़ाई लड़ने का सपना दिखाते हुए चुनाव जीतता रहा हो वो केवल खुद या बेटे को मंत्री बनाने का सपना दिखाकर लोगों को कैसे समझा सकता है बस यही चैंलेज कुलदीप बिश्नोई के सामने इस चुनाव में आएगा। इसके अलावा एक लंबी चौड़ी दुश्मनों की फौज है जो चाहते हैं कि यही मौका है क्लेश काटने का। जजपा क्यों चाहेगी कुंलदीप बिश्नाई मजबूत हो? कुछ हजार वोटों का कोटा तो सोनाली फौगाट ने भी अपना बना ही लिया है? तेजतर्रार नेत्री ज्योति बैंदा क्यों चाहेंगी सारी उम्र अपने को आदमपुर में टिकट की दौड़ से बाहर निकालना। इसके अलाव भी बहुत से लोग भाजपा, जजपा और इनेलो में हैं जो कुलदीप बिश्नोई का हिसाब किताब चुकता करना चाहेंगे इस उपचुनाव में। कुल मिलाकर इतना तो तय है कि ये चुनाव जितना आसान दिखता है उतना है नहीं। चुनाव के दिन जैसे जैसे नजदीक आएंगे वैसे वैसे ये चुनाव भी असली रंग पकड़ता जाएगा।
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