डाडम खनन हादसे से चर्चा में आए माइंस किंग कुंवर वेदपाल तंवर, कभी चलाते थे मैटाडोर, आज अरबाें का कारोबार, जानिये इनके बारे में

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक
डाडम पहाड़ खिसकने से पांच मजदूरों की मौत हो चुकी है। भिवानी महेंद्रगढ संसदीय क्षेत्र से सांसद चौधरी धर्मवीर सिंह के अवैध खनन के आरोप के बीच एक चेहरा चर्चा में है और वो चेहरा है माइंस किंग कुंवर वेदपाल तंवर। कौन हैं ये कुंवर वेदपाल तंवर ? इन्होंने कैसे खड़ी की गई गोवर्धन माइंस? क्या है कुंवर वेदपाल तंवर की कहानी? गांव के एक सामान्य घर में जन्मा व्यक्ति अरखो-खरबों रुपयों का कारोबार कैसे खड़ा करता है? सियासत का इसमें कितना योगदान है? आज आपको जो जानकारियां मिलने मिलेंगी उनको जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
तोशाम के रेतीले इलाको में एक गांव है छप्पार। किसान पृष्ठभूमि के राजपूत परिवार में एक बच्चे का जन्म होता है और नाम रखा जाता है वेदपाल लेकिन गांव में प्यार से दूसरा नाम निकालने की आदत है तो वेदपाल कब बेदू बन जाता है उसको खुद ही पता नहीं चला। पढाई में कुछ खास मन नहीं लगा तो एक मैटाडोर ले ली। हिसार तोशाम के बीच खूब सवारियां भी ढोई। उस समय चौधरी धर्मवीर सिंह सियासत में अच्छे सक्रिय थे। देवीलाल सरकार में मंत्री भी बने तो वेदपाल तंवर को उन्होंने डेली वेज पर पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट में लगा दिया। इसी तरह उनकी जिंदगी कई साल तक गुजरी और इस बीच छोटे-मोटे कारोबारों में हाथ आजमाया लेकिन कुछ खास जीवन में हासिल नहीं हो पाया। इसके बाद 2000 में ओमप्रकाश चोटाला का शासन शुरू हो गया था।
अजय चौटाला के साथ अच्छी दोस्ती
वेदपाल तंवर ने अपने एक साथी पाले राम के साथ अजय चौटाला के साथ अच्छी दोस्ती गांठ ली। ये दोस्ती पहाड़ जैसी परवान चढी और देखते ही देखते खानक का पहाड़ वेदपाल तंवर की मुट्ठी में आ गया। खानक में मजदूरों ने एक बड़ा आंदोलन किया लेकिन चौटाला सरकार ने उसे बदर्दी से दबा दिया। बेदू अब वेदपाल ठेकेदार के रूप में विख्यात हो गए। जिन लोगों को रोजगार मिला वो वेदपाल तंवर के मुरीद होते चले गए। लग्जरी गाड़ियां आ गई और फार्महाउस भी बन गए। उसी दौर में हिसार के कैमरी रोड पर वेदपाल तंवर ने एक ऐसा फार्महाउस बनाया जिसकी लग्जरी और खूबसूरती का आज भी हर कोई कायल हो जाता है। इसी फार्महाउस की एक छत्तरी पर रोज सियायत के बड़े खिलाड़ियों की महफिल सजती और हमेशा की तरह मेजबान होते वेदपाल तंवर।
खनन की कमाई वेदपाल तंवर को खूब रास आ रही थी कि उनकी दुनिया को किसी की नजर लग गई। बेटा एक हादसे में चल बसा। वेदपाल तंवर बिल्कुल टूट गए। कारोबार से भी मन हट गया बस जैसे-तैसे चला ही रहे थे। इसके बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार आ गई। खानक के खनन कारोबार पर दूसरे माफियाओं की नजर पड़ गई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा से पता नहीं क्यों वेदपाल तंवर की पटरी नहीं बैठ सकी। यही कारण था कि वेदपाल तंवर और उनकी ही सरकार में मंत्री किरण चौधरी के खासमखास लोगों में शामिल हो गए। जब भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा का चाबुक वेदपाल तंवर पर चलता मैडम ढाल बनकर खडी हो जातीं। पहाड़ में खनन पर रोक लगा दी गई लेकिन वेदपाल तंवर कोर्ट चले गए। इसी बीच कुदरत ने उन्हें उनका बेटा भी लौटा दिया और वेदपाल तंवर उसी जोश के साथ मैदान में आ डटे।
राजनीति का भी चस्का लगा
इसी बीच उन्हें खुद को राजनीति का भी चस्का लगा। राजनीति और कारोबार के बीच क्या रिश्ता होता है उन्हें सिखाया समाजवादी नेता अमरसिंह ने। जयप्रदा का घर तक आना-जाना रहा। कुलदीप बिश्नाई के साथ नजदीकिया बढीं और हजकां में भी कुछ समय रहे। बसपा को भी देखा परखा। दो चुनाव भी लड़े लेकिन जीत के नजदीक भी नहीं पहुंच पाए लेकिन सियायत का इस्तेमाल कारोबार में करते रहे। इसी बीच हुड्डा सरकार में मिर्चपुर कांड हो गया। मिर्चपुर के पीड़ितों को कुंवर वेदपाल तंवर अपने फार्म हाउस पर ले आए। खूब मीडिया में सुर्खियां बटोरी और हुड्डा की आंख में कांटे की तरह चुभते रहे। राजकुमार सैनी तो बाद की पैदाइश हैं सबसे पहले हरियाणा में जाट गैरजाट के कांसेप्ट को लाने वाले वेदपाल तंवर ही थे। हुड्डा ने उन्हें कई केसों में फंसाया, सुप्रीम कोर्ट से जमानत लेकर आए लेकिन चुप नहीं बैठे, हां चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया। इसके बाद भाजपा की सरकार बनती है। वेदपाल तंवर ने अपने काम करने की स्टाइल बदल ली और देखते ही देखते कानून की फाइलों से घूमता हुआ खानक और डाडम का पहाड़ वेदपाल तंवर की फिर से मुट्ठी में आ जाता है। गोवर्धन माइंस बड़ी से बड़ी बनती जाती है। इसके अलावा भी देशभर की माइंस में हाथ आजमाया हुआ है। कई जगह बड़े-बड़े फार्महाउस और खेती की जमीनें भी वेदपाल तंवर ने ले ली है। लग्जरी गाड़ियों का शौक पहले की तरह आज भी बना हुआ है। वेशभूपा वही है, सिर पर राजपूतना पगड़ी, धोती और कुर्ता।
ऐसा नहीं है वेदपाल तंवर में कुछ खासियतें नहीं। वो दोस्तों के दोस्त हैं। तब भी जाट ही उनकी ढाल बनते थे जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा को वो जाट के नाम पर कोसते थे। बताते हैं कि बुरे दिनों में जब उनकी खुद की जेब में पैसे नहीं होते थे तब भी वे दोस्तों को उधार लेकर खिलाने की कुव्वत रखते थे। उनमें से कुछ आज उनके बिजनसे पार्टनर हैं और करोड़ो- अरबों मे खेल रहे हैं। वेदपाल तंवर को ये अच्छे से पता है कारोबार की सीढियां सियायत के सहारे के बिना नहीं चढ सकती हैं इसलिए वो अब पार्टी नहीं वो आदमी तलाशते हैं जिसकी एक कीमत हो।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब वेदपाल तंवर से बहुत तंग आ चुके थे तो अपने एक दोस्त के माध्यम से उन्होंने वेदपाल तंवर को अपने पास बुलाया। भिवानी की एक नेता का नाम लेते हुए हुड्डा साहब ने पूछा कि उसको कितने पैसे देते हो? वेदपाल तंवर ने हाथ जोड़े और कहा कि आप राजा और मैं आपकी प्रजा। एक छोटा मोटा कारोबारी भी हूं। कारोबार के कुछ नियम होते हैं। मैंने किसको क्या दिया है ये मैं आपको अपनी जान की कीमत पर भी नहीं बताऊंगा, हां, आप मुझसे क्या चाहते हैं ये बताएं और जो मैं आपको दूंगा वो किसी दूसरे को भी अपनी जान के भय से भी नहीं बताऊंगा। इतना कहकर वो हुड्डा साहब का कमरा छोड़कर बाहर निकले और एक मूक समझौता दोनों में हो गया। तूं मेरे बारे में कुछ मत कहना और मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं करूंगा। हां, भिवानी महेंद्रगढ के सांसद धर्मवीर सिंह से वेदपाल तंवर का हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा है। भले ही वो उन्हें पब्लिक हेल्थ में डेली वेज नौकर लगाने वाला खुद को बताते हैं बदले में वेदपाल तंवर भरी सभाओं में चौधरी धर्मवीर सिंह को भले आला छोरा कहकर संबोधित करते रहे हैं। हां एक फर्क इन हाल फिलहाल के सालों में आया है उन्होंने धर्मवीर सिंह का नाम भी लेना बंद कर दिया है। पिछले साल 17 अगस्त को उनके ठिकानों पर आयकर छापे पड़े थे लेकिन उनमें क्या निकला ये किसी को नहीं पता है। हां, मिर्चपुर के पीड़ित परिवार आज उनकी गोवर्धन माइंस में नौकरी करते हैं। उन परिवाराें की कई बेटियों का विवाह उन्होंने किया है और आज भी बहुत सारे लोग उनके ही फार्महाउस में रह रहे हैं।
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