Bahadurgarh : 22 सालों से प्लॉट के लिए भटक रहे भू-मालिक

हरिभूमि न्यूज : बहादुरगढ़
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हशविप्रा) द्वारा अधिग्रहित भूमि के मालिक (Land owner) रहे किसान आउस्टीज प्लॉटों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। जबकि प्राधिकरण के अधिकारी किसानों (Farmers) का हक देने की बजाय अपनी मनमर्जी कर रहे हैं। इस मामले में हाई कोर्ट (High Court) के हस्तक्षेप के बावजूद प्राधिकरण ने ई-ऑक्शन (E-auction) जारी रखने का निर्णय(Decision) लिया है, जिससे किसानों में रोष व्याप्त है ।
बता दें कि अभी सेक्टर-9 में करीब 380 प्लॉट गैर आवंटित हैं। जबकि 98 आउस्टीज किसानों को दिए जाने हैं और करीब सवा सौ ने आवेदन कर रखा है। वर्ष-2018 से जारी इस प्रक्रिया का निपटारा करने की बजाय हशविप्रा समय-समय पर प्लॉट नीलाम कर रही है। अब फिर प्राधिकरण द्वारा एक सप्ताह पहले ई-ऑक्शन प्रक्रिया शुरू की थी और सेक्टर-9 के पांच व चार प्लॉटों की ई-ऑक्शन की जा रही है। भगवान सिंह राठी, पूर्व पार्षद कृष्ण पप्पू यादव, इंद्र राठी, बिट्टू राठी, पूर्व चेयरमैन अशोक शर्मा, रवींद्र सैनी, रमेश मास्टर, भीम सैनी, सुमित राणा, सुनील राठी, नरेंद्र सैनी, सुंदर सैनी व रवि आदि का कहना है कि यदि हशविप्रा इसी तरह प्लाट नीलाम करता रहा, तो उनके हक पर डाका पड़ना तय है।
एक बार फिर ई-ऑक्शन प्रक्रिया शुरू की
एक बार फिर प्राधिकरण ने आउस्टीज प्लाटों की ई-ऑक्शन प्रक्रिया शुरू की। हाईकोर्ट ने सोमवार 6 जुलाई को इस सिलसिले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए प्राधिकरण को आउस्टीज स्कीम के तहत प्लाटों के आवंटन के लिए प्राप्त आवेदनों पर 2 सप्ताह के भीतर स्पीकिंग एवं डिटेल ऑर्डर देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कहा गया कि ई-ऑक्शन भी इसके परिणाम पर ही निर्भर करेगी। ऐसे में मंगलवार को किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्राधिकरण के संपदा अधिकारी सिद्धार्थ सिंह से मुलाकात कर ई-ऑक्शन पर रोक लगाने की मांग की। लेकिन प्राधिकरण के ईओ ने बताया कि ई-ऑक्शन प्रक्रिया जारी रहेगी तथा हाईकोर्ट के आदेशानुसार आउस्टीज के आवेदनों का निपटान किया जाएगा।
सेक्टर-9 बनाने को 1988 में अधिग्रहित की थी किसानों की जमीन
दरअसल, हशविप्रा ने 1988 में सेक्टर-9 बनाने के लिए किसानों की कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित की थी। उस समय यह जमीन करीब 50 रुपए प्रति वर्ग गज की दर से अधिग्रहित की गई थी। लेकिन वर्ष 2002 में प्राधिकरण ने आउस्टीज को करीब 3 हजार प्रति वर्ग गज की दर से प्लॉट बेचे। उस समय कुछ भू मालिकों को प्लाट मिल गए। जबकि शेष को वर्ष 2016 में प्लाट देने का फैसला लिया गया। प्राधिकरण ने जमीन के मूल मालिकों को भी सामान्य ग्राहकों की दर से ही भाव तय किए। किसान सरकार की इस नीति के विरुद्ध पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चले गए। किसानों का आरोप है कि पहले जहां आउस्टीज प्लाट वाले किसानों को भुगतान के लिए 6 साल का समय मिलता था, वहीं इसे घटाकर 4 महीने कर दिया गया। इतना ही नहीं हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण बार-बार प्लॉट नीलाम कर रहा है।
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