उम्र को पीछे छोड़, देश- विदेश में जीते 112 मेडल, पढ़ें इस बुजुर्ग की कहानी

उम्र को पीछे छोड़, देश- विदेश में जीते 112 मेडल, पढ़ें इस बुजुर्ग की कहानी
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बुजुर्ग में आज भी युवाओं जैसा जोश देखा जा सकता है। इस बुजुर्ग ने देश ही नहीं विदेशों में भी अनेक मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है।

सतीश सैनी : नारनौल

महेंद्रगढ़ जिले के गांव सोहड़ी में रहने वाले 74 साल के बुजुर्ग मुंशीराम ने महाराष्ट्र के नासिक में इसी नवंबर माह के राष्ट्रीय दिग्गज खेल एवं खेल चैंपियनशिप के खेल महाकुंभ में तीन गोल्ड, एक सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल जीतकर साबित कर दिया यदि आपके भीतर जाेश और जुनून हो तो उम्र आड़े नहीं आ सकती। इस बुजुर्ग ने देश ही नहीं विदेशों में भी अनेक मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है।

इस प्रतियोगिता में देशभर से 3000 से अधिक दिग्गज खिलाड़ियों ने भाग लिया था। मुंशीराम बताते हैं कि इस प्रतियोगिता में उन्होंने 4 गुना सौ रिले में गोल्ड, 80 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड और 110 मीटर बाधा दौड़ में भी गोल्ड मेडल जीता है। 400 मीटर में सिल्वर, 200 मीटर में ब्रॉन्ज और चार गुणा 100 मीटर मिक्सड रिले दौड़ में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता है। मिक्सड रिले में दो पुरुष और दो स्त्रियां भाग लेती हैं।

बुजुर्ग में आज भी युवाओं जैसा जोश देखा जा सकता है। महेंद्रगढ़ जिले के एक छोटे से गांव सोहड़ी में 1947 में मुंशीराम जन्मे उस वक्त पढ़ाई के लिए कोई स्कूल नहीं होने के कारण उन्होंने गांव बड़राई से प्राथमिक शिक्षा ली। बाद में सतनाली स्कूल से 1967 में हायर सेकेंडरी पास की। अपने गुरु मास्टर भादर मल झागड़ोली से जीवन जीने की शिक्षा मिली। बचपन से ही खेलों के प्रति लगाव लगन रही। द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लेने वाले इनके पिता भंवर सिंह शेखावत अपने समय के अच्छे पहलवान रहे हैं। उनकी शिक्षा व प्रेरणा और माता अंजना देवी के संस्कार उनकी कामयाबी में अहम है। वर्ष 1970 में महेंद्रगढ़ कॉलेज से स्रातक की शिक्षा पास की। उस दौरान उन्होंने कॉलेज से बेस्ट एथलीट का खिताब भी जीता। वर्षीय मुंशीराम बताते हैं कि उन्होंने अब तक देश विदेश में 112 मेडल जीते हैं, जिनमें 88 गोल्ड, 13 सिल्वर और आठ ब्राॅन्ज मेडल है। दो बार एशियन गेम मेडल जीत चुके हैं। सिंगापुर, मलेशिया, जापान में वर्ल्ड चैंपियनशिप, फ्रांस में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन कर चुके हैं।

उन्होंने बताया कि वर्ष 1970 में वह सीआरपीएफ में भर्ती हुए और साल-2004 में कमांडेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए। इस बीच वर्ष 1999 में उन्हें राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। मुंशीराम ने कहा कि हमें परमात्मा ने भरपूर प्राकृतिक ऊर्जा का जीवन दिया है लेकिन ऊर्जा का सिर्फ 30 प्रतिशत ही प्रयोग करते हैं और 70 प्रतिशत चिंता, फ्रिक, तनाव, गुस्सा, चिड़चिड़ापन में गंवा देते हैं। सही मायनों प्राकृतिक ऊर्जा हमें निर्धारित लक्ष्य पर पहुंचाने में मददगार साबित होती है।

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