लंपी वायरस ने जींद में दी दस्तक : कई गांवों में मामले आए सामने, पशु विभाग अलर्ट

हरिभूमि न्यूज. जींद
गाय और भैंसों में लंपी वायरस संक्राम रोग ने अब जींद जिला में भी दस्तक दे दी है। गांव कोयल, बेलरखां, खेडाखेमावती, दरियावाला, लोधर में कुल 42 मामले सामने आए हैं। हालांकि जिला पशुपालन विभाग पहले से ही बीमारी को लेकर अलर्ट था। विभाग के उपनिदेशक डा. रविंद्र हुड्डा ने कहा है कि बीमारी को लेकर पशु पालकों को घबराने की जरूरत नहीं है। जींद में जो मामले सामने आए हैं उसमें पशुओं को केवल दो दिन बुखार रहता है। दवा देने के बाद यह बुखार उतर जाता है। इसलिए पशुपालक इस रोग को लेकर चिंतित न हों। उन्होंने कहा कि लंपी वायरस से जहां पशुओं की मौत हुई है वहां या तो पशु बुढ़े थे या फिर उन्हें ठीक से खाने को नहीं मिल रहा था। जिसके चलते उन पशुओं की मौत हुई है। उम्मीद है कि आगामी एक सप्ताह में यह बीमारी समाप्त हो जाएगी। पशुपालक अपने पशुओं का ध्यान रखें और पशु को बुखार है तो उसे दवा दें और बढिया आहार दें।
पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा. रविंद्र हुड्डा ने बताया कि लंपी वायरस मक्खी, मच्छर समेत दूसरे खून चूंसने वाले कीड़ों से फैलता है। इसलिए पशुपालक अपने पशुओं की सेफ्टी के लिए मच्छरदानियां लगाएं। बाकायदा विभाग द्वारा इसे लेकर एडवाइजरी जारी की हुई है तो पशुपालक इस एडवाइजरी की पालना करें। जींद में पशुपालन विभाग के तहत चार सब डिवीजनों को 50-50 हजार रुपये का बजट उपलब्ध करवा दिया गया है। इस बजट से दवा लेकर बीमार पशुओं को उपलब्ध करवा दिया जाएगा।
हुड्डा ने सभी वेटनरी चिकित्सकों की बैठक लेकर निर्देश दे दिए हैं कहीं पर भी पशुओं में संदिग्ध लक्षण मिलते ही तुरंत सूचना दी जाए। विभाग के पास करीब 39 चिकित्सक हैं जो अलग-अलग क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं। हर तीन से चार गांवों पर एक विशेषज्ञ चिकित्सक की नियुक्ति की गई है। पशुपालकों को भी लगातार सूचित किया जा रहा है कि अगर भैंस या गाय के शरीर में गांठें पड़ने लगें या तेज बुखार हो तो तुरंत विभाग को सूचना दी जाए ताकि समय रहते बीमारी पर काबू पाया जा सके और पशु को आइसोलेट कर इसे फैलने से रोका जा सके।
लंपी वायरस से बचाव के लिए यह करें पशुपालक
पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा. रविंद्र हुड्डा ने बताया कि जैसे ही पशु को बुखार हो, शरीर पर गांठें, चकते पड़ने लगें तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल के चिकित्सक को इसकी सूचना दें। बीमार पशु को अन्य पशुओं से दूर रखें। जिन हाथों से बीमार पशु का उपचार किया जा रहा है वह दूसरे पशुओं को नहीं लगाएं। दस्ताने आदि का जरूर प्रयोग करें। साफ.-सफाई का विशेष ध्यान रखें। बीमार पशुओं को तालाब पर नहलाने से बचें और मक्खी, मच्छर को बीमार पशु पर नहीं बैठने दें। क्योंकि यह मक्खी, मच्छर, चीचड़, खलील या दूसरे खून चूंसने वाले कीड़ों से जल्दी फैलता है।
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