प्रदेशभर में चर्चित हुआ 40 वर्ष से आबाद काॅलोनी बेचने का मामला, पुलिस के लिए चुनौती बनी शार्टकट FIR

हरिभूमि न्यूज : कलायत/कैथल
कलायत विधानसभा के गांव बात्ता में संत गुरु रविदास मंदिर के पास करीब चार दशक से 2 एकड़, एक कनाल व चार मरले में सरकार द्वारा आबाद की गई इंदिरा कालोनी को 50 लाख रुपए में बेचने का मामले हाईप्रोफाइल बन गया है। सरकार के साथ-साथ गरीब वर्ग को चूना लगाने का यह हरियाणा प्रदेश में अपनी तरह का अनूठा मामला है। इस कालोनी में केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर प्रदत्त सुविधाएं उपलब्ध हैं। नटवरलालों ने साजबाज कर सैकड़ों परिवारों के आशियानें, सार्वजनिक गलियों, बिजली, पेयजल, निकासी और रहन-सहन से जुड़ी तमाम सुविधाओं को फिल्मी तर्ज पर बेच दिया।
भगवान का मंदिर भी इस बिकावली में शामिल है। इंदिरा कालोनी के लोगों को जब आवासीय क्षेत्र को बेचने की भनक लगी तो वे बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता बीरभान सिंह की अगुवाई में जिला प्रशासन की चौखट पर जा पहुंचे। सीटीएम द्वारा मामले की जांच की गई। इस विस्तृत रिपोर्ट में बिंदुवार जांच अधिकारी ने सारे मामले में कानून की अवहेलना करने वालों का उल्लेख तथ्यों सहित किया।
जो एफआईआर पुलिस द्वारा दर्ज की गई उसमें केवल एक अकेली महिला को आरोपी बनाया गया। प्रभावितों का कहना है कि खरीददार से लेकर राजस्व विभाग के उस नेटवर्क के मुख्य कारकों को छोड़ दिया जो वास्तव में इस सहायक सूत्रधार रहे। इसके चलते ही पुलिस द्वारा की गई कानूनी कार्यवाही से प्रभावित लोग संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें रंज है कि जिला प्रशासन ने फास्ट ट्रैक पर जिस प्रकार निर्धारित समय अवधि में उन्हें न्याय दिया उसके अनुसार पुलिस प्रशासन ने वाजिब कार्रवाई नहीं की। उन्हाेंने आरोपियों को बचाने का प्रयास किया है।
हर एंगल पर होगी मामले की जांच: डीएसपी
कलायत डीएसपी सुनील कुमार ने बताया कि बात्ता गांव में सरकार द्वारा विकसित इंदिरा कालोनी को बेचने के संदर्भ में जो एफआईआर दर्ज की गई है उसके हर पहलु की जांच जारी है। थाना अधिकारियों से शिकायत अनुसार तमाम बिंदुओं को मामले में शामिल न करने की रिपोर्ट मांगी गई है। इसके साथ ही राजस्व विभाग के पटवारी, तहसीलदार, खरीददार और विभिन्न स्तरों पर रिकार्ड से जुड़े अधिकारियों को जांच में शामिल किया जाएगा। दो मर्तबा जमीन के जारी हुए मुआवजे व ट्रैक्टर लोन सहित हर उस एंगल की जांच होगी जिसमें कालोनी की वास्तु स्थिति को दर किनार किया गया है।
ये हैं मामले में बड़ी चूक
-जब वर्ष 1984 में गांव बात्ता में कामगारों के लिए 2 एकड़ से अधिक रकबे को सरकार द्वारा अधिकृत किया गया तो उसका उल्लेख सरकारी रिकार्ड में दर्ज क्यों नहीं हुआ।
-अलाट कालोनी की भूमि के इंतकाल सरकार या लाभार्थियों के नाम क्यों तबदील नहीं हुए।
-सरकार से भूमि का मुआवजा ले चुके परिवार का नाम जमाबंदी में आखिरकार क्यों चस्पा रहा।
-अक्टूबर 2021 में कालोनी की जमीन खरीदने वालों के नाम पलक झपकते ही इंतकाल कैसे दर्ज हो गया। जबकि सरकार ने 40 वर्ष पहले भूमि की कीमत चुकाई तो इंतकाल की प्रक्रिया अधूरी छोड़ दी गई। इस चूक को दूर करने की बजाए समय-समय पर तैनात रहे संबंधित पटवारी और तहसीलदारों ने दुरुस्त क्यों नहीं किया।
-वर्तमान में खरीददारों के नाम किस प्रकार इंतकाल दर्ज किया गया।
-जब भूमि पर कालोनी आबाद थी तो राजस्व विभाग के रिकार्ड में कृषि भूमि की प्रकृति कैसे कायम रही।
-सरकार जब जमीन के मालिक को मुआवजा दे चुकी थी तो वे इस भूमि पर लोन जैसी सुविधाएं कैसे लेते रहे।
-सरकार द्वारा अधिकृत भूमि पर ट्रैक्टर लोन देने पर तत्कालीन बैंक अधिकारियों ने मौका मुआयना क्यों नहीं किया।
-राजस्व विभाग के पटवारी से लेकर तहसीलदार तक इंदिरा कालोनी की वास्तु स्थिति से क्यों अनजान बने रहे।
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