पर्यावरण बचाने का संदेश : ग्रामीणों ने किया पेड़ों का विवाह, मंगल गीतों के बीच हु़ए फेरे, पूरे गांव और रिश्तेदारों को कराया भोज

पर्यावरण बचाने का संदेश : ग्रामीणों ने किया पेड़ों का विवाह, मंगल गीतों के बीच हु़ए फेरे, पूरे गांव और रिश्तेदारों को कराया भोज
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पीपली के पेड़ को दुल्हन की तरह सजाया गया और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पुरोहित ने पाणिग्रहण संस्कार पूरा कराया और कन्यादान, प्रीतिभोज, मंगलगीत सहित रस्मों का निर्वाह किया।

हरिभूमि न्यूज : भिवानी

गांव लालावास में शुक्रवार को वैदिक रीति रिवाजों के बीच पीपल और पीपली की शादी कराई गई। हिंदू परंपराओं के अनुसार मंगल गीतों के बीच पुरोहित ने मंत्रोचारण कर फेरे कराए। शादी के मौके पर महिलाओं और गांव के युवाओं ने गीतों पर थिरके और पूरे गांव के अलावा रिश्तेदारी के सैकड़ों लोग भोज में शामिल हुए। यह शादी पर्यावरण बचाव का संदेश देने के लिए करवाई गई है ताकि लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक रहे और अधिक से अधिक पेड़ लगाएं।

इस विवाह का गवाह था लालावास गांव में पर्यावरण प्रेमी रहे स्वर्गीय चिरंजीलाल शर्मा का खेत। मास्टर राजकुमार, गिरीराज, जनकराज और एएसआई कृष्ण कुमार ने बताया कि उनके पिता चिरंजीलाल शर्मा ने कहा था खेत में लगाए सैकड़ों पेड़ों में शामिल यह पीपली उसकी बेटी के समान है, इसलिए इसके बालिग होने पर वह इसकी शादी करेगा। मगर उनके पिता चिरंजीलाल का आकस्मिक निधन हो गया। इसलिए उनके लड़कों ने उनकी इच्छा को पूरी करने का वादा किया ।

दुल्हन की तरह सजाया गया पीपली के पेड़

पीपली की पीपल के साथ शादी कर इस शादी में उन सभी रस्मों को पूरा किया गया जो कि एक कन्या की शादी में निभाई जाती हैं। पीपली के पेड़ को दुल्हन की तरह सजाया गया और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पुरोहित ने पाणिग्रहण संस्कार पूरा कराया और कन्यादान, प्रीतिभोज, मंगलगीत सहित रस्मों का निर्वाह किया। गौरतलब होगा कि भारतीय संस्कृति में तुलसी व पीपल के मादा पेड़ की शादी कराने की परंपरा है। तुलसी की शादी जहां शालीग्राम के साथ कराई जाती है, वहीं मादा पीपल की शादी चांदी के पीपल से कराई जाती है।

ऐसी मान्यता है कि तुलसी या पीपली लगाने वाले को इनकी शादी करानी होती है अन्यथा दोष लगता है। ग्रामीणों का यह भी मानना है कि तुलसी व पीपल अपने दिव्य औषधीय गुणों और पर्यावरण रक्षक होने के कारण आदिकाल से भारतीय समाज में सम्मान पाते रहे हैं। इन वृक्षों के संरक्षण के लिए भी इस प्रकार के धार्मिक कार्य संपन्न कराए जाते हैं।

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