विधायक प्रदीप चौधरी की विधानसभा सदस्यता पर खतरा

Haryana : हिमाचल प्रदेश की एक निचली अदालत (न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट) द्वारा हरियाणा के कालका विधानसभा हलके से कांग्रेस पार्टी के मौजूदा विधायक प्रदीप चौधरी सहित कुल 15 आरोपियों को दस वर्ष पुराने एक क्रिमिनल मामले में दोषी घोषित कर तीन वर्षों की सजा दी गयी है हालांकि उन्हें अभी तत्काल जेल नहीं जाना पड़ेगा एवं वह सभी उक्त कोर्ट के फैसले के विरूद्ध एक माह में सेशंस कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
बहरहाल, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने इस विषय पर बताया की 10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय - लिलि थॉमस बनाम भारत सरकार के अनुसार, जिसे सुप्रीम कोर्ट के एक संवैधानिक बेंच द्वारा मनोज नरूला बनाम भारत सरकार द्वारा सितम्बर, 2014 में सही ठहराया गया, के अनुसार अगर किसी मौजूदा सांसद या विधायक को किसी कोर्ट द्वारा लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा (1), (2) एवं (3) में दोषी घोषित किया जाता है तो उन्हें धारा (4) में अपने पद के कारण किसी प्रकार की विशेष रियायत प्राप्त नहीं होगी एवं उन्हें अपनी संसद या विधानसभा'/विधानपरिषद सदस्यता से तत्काल हाथ धोना पड़ेगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जुलाई, 2013 के निर्णय से पहले ऐसे दोषी घोषित सांसदों /विधायकों को उक्त कानून की धारा 8 (4 ) में तीन माह की समय अवधि की रियायत मिल जाती थी जिस दौरान वह ऊपरी अदालत में अपील या रीविसंन याचिका दायर कर उनको दोषी घोषित करने वाले निचली अदालत के फैसल के विरूद्ध स्टे प्राप्त कर लेते थे एवं इस प्रकार उनकी सदन की सदस्यता बच जाती थी परन्तु अब ऐसा संभव नहीं है।
हेमंत ने बताया की जुलाई, 2013 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सर्वप्रथम सितम्बर, 2013 में राज्य सभा के तत्कालीन कांग्रेसी सांसद राशिद मसूद को और फिर अक्टूबर,2013 में राष्ट्रीय जनता दल के सांसद लालू प्रसाद यादव को अपनी लोक सभा सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था चूंकि दोनों को अलग अलग मामलो में सम्बंधित कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में दोषी घोषित कर हालांकि अलग अलग वर्षो के लिए कारवास की सजा सुनाई गयी थी।
हेमंत ने बताया कि प्रदीप चोधरी के मामले में उन्हें दोषी घोषित कर कारावास की अवधि तीन वर्ष है जो धारा 8(3) में उल्लेखित दो वर्ष की अवधि से उपर है, इसलिए उन्हें भी हरियाणा विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यह पूछे जाने पर कि ऐसे मामलो में चुनाव आयोग से परामर्श भी लिया जाना चाहिए, हेमन्त ने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 192 के अनुसार केवल ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ के पद ) मामलो में अयोग्य घोषित करने के मामलो में राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा चुनाव आयोग से परामर्श करना आवश्यक होता है जो मौजूदा केस में लागू नहीं होता. विधानसभा स्पीकर/सचिवालय द्वारा एक नोटिफीकेशन जारी कर उन्हें सीधे भी सदन से अयोग्य घोषित किया जा सकता है. अगर प्रदीप चोधरी को सेशंस कोर्ट से स्टे मिल भी जाता है, तो उपरोक्त सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार उनकी विधानसभा सदस्यता नही बचती. अढ़ाई वर्ष पूर्व मई, 2018 मे मौजूदा पंजाब विधानसभा में कांग्रेसी विधायक नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 323 आईपीसी (उपहति/चोट पहुँचाना) के तहत दोषी घोषित कर मात्र 1000 रुपये का जुर्माना लगा दिया, इस प्रकार उनकी सदस्यता बच गयी क्योंकि वह दो वर्षो से कम थी।
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