कृषि का आधुनिकरण : ऑनलाइन योजनाओं को ऑपरेट नहीं कर पाते 80 फीसदी किसान

हरिभूमि न्यूज : नांगल चौधरी
कृषि का आधुनिकरण करने तथा पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार ने सभी योजनाओं को पोर्टल पर ऑनलाइन कर दिया। विभिन्न योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर सालाना करोड़ों रुपये खर्च भी किए जाते हैं। बावजूद सरकार को सकारात्मक परिणाम नहीं मिले। क्योंकि लगभग 80 फीसदी किसानों को ऑनलाइन साइट खोलने व आवेदन करने की नॉलेज ही नहीं। ये किसान परंपरागत खेती से ही परिवार की आजीविका चलाने को मजबूर हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक अर्थव्यवस्था की आधार कृषि होती है। जिससे सरकार के मुद्राकोष में बढोतरी होगी, साथ ही गांवों में संपन्नता आएगी। लेकिन भू-जल की किल्लत उत्पन्न होने पर किसानों को परंपरागत खेती (सरसों, गेंहू, बाजरा, जौ, चना) करना मुश्किल हो गया। एक सिंचाई लेटलतीफ होने पर पूरी लागत डूब जाती है। किसानों को घाटे से उभारने के लिए सरकार ने कृषि पद्धति को आधुनिक करने की योजना बना दी। विभाग को मिट्टी जांच, जल संरक्षण, बागवानी, भूमि सुधार समेत चार ब्रांचों में विभाजित कर दिया गया।
अधिकारियों को कम पानी में पकने वाली फसलों का प्रचार करने के निर्देश दिए गए हैं। करीब 10 साल बीतने के बावजूद कृषि व्यवसाय का आधुनिकरण नहीं हुआ। 2015 में सरकार ने क्रियाविंत योजनाओं को हाईटेक कर दिया। किसान पोर्टल पर आवेदन करके अनुदान व अन्य आवश्यक हिदायतों की जानकारी हांसिल कर सकते हैं। अनुदान संबंधित योजना विभाग पोर्टल पर ही लांच करता है, और पोर्टल द्वारा सीधा बैंक अकाउंट में अनुदान राशि जमा होती है। तर्क दिया गया कि इससे योजनाओं में पारदर्शिता बनी रहेगी। लेकिन अधिकतर किसान कंप्यूटर ऑपरेट करना नहीं जानते, उन्हें पोर्टल पर योजनाएं क्रियाविंत होने या साइट खोलनी भी नहीं आती। उनके सामने परंपरागत खेती करना ही विकल्प है। जिस कारण सरकार की योजना व करोड़ों का बजट नकारा साबित हो गया।
एडीओ की पोस्ट रिक्त होने से अटकी योजना
सरकार के निर्देशानुसार विभाग द्वारा प्रत्येक ब्लॉक को सर्कलों में बांटा गया है। प्रत्येक सर्कल में एक एडीओ की पोस्ट सैंक्सन कर दी गई। जिन्हें किसानों की पैदावार बढ़ाने, बीमारियों से सुरक्षा, किसानों को जागरूक करने के निर्देश हैं। लेकिन जिले के अधिकतर सर्कलों पर एडीओ ही नियुक्त नहीं। जिस कारण ऑनलाइन योजनाओं की जानकारी किसानों तक नहीं पहुंच पा रही।
कम पानी की फसलों से किसान अनजान
शहबाजपुर, भुंगारका, धोलेड़ा, थनवास, मौरूंड, दोस्तपुर के ग्रामीणों को कम पानी में पकने वाली फसलों की जानकारी नहीं। केवल सरसों, बाजरा, ग्वार, गेंहू की बीजाई करते हैं। उन्होंने कहा कि सिंचाई व्यवस्था नहीं होने के कारण कृषि व्यवसाय ठप हो चुका। आधुनिक कृषि व तकनीक से विभाग ने अवगत नहीं कराया। जिस कारण खेतीबाड़ी से कोई मुनाफा नहीं मिल रहा।
एडीओ स्टॉफ की किल्लत से उगााधिकारी अवगत
ब्लॉक कृषि विकास अधिकारी डॉ हरीश यादव ने बताया कि नांगल चौधरी ब्लॉक में एक भी एडीओ उपलब्ध नहीं। जिस कारण किसानों को असुविधा रहती है। समस्या से उगााधिकारी अवगत हैं, समाधान भी उगा स्तर से ही संभव है। उन्होंने बताया कि किसानों की सुविधा के लिए अन्य विकल्पों की सेवाएं ले रहे हैं।
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