Monday Special : कैसे कुपोषण मुक्त होगा हरियाणा! भरकम पोषण आहार के नाम पर खर्च 'ऊंट के मुहं में जीरा'

ओपी पाल : रोहतक
राष्ट्रीय मिशन पोषण अभियान के चौथे चरण में हरियाणा में भी सितंबर माह को पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है। हरियाणा सरकार ने प्रदेश में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए वर्ष 2022 तक छह फीसदी कुपोषण कम करने का लक्ष्य रखा है। राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के अंतिम चरण के आंकड़ो पर गौर करें तो प्रदेश में कुपोषण के शिकार बच्चों में 34 प्रतिशत ठिगनापन, 21.2 प्रतिशत दुबलापन, 29.4 प्रतिशत कम वजन पाया गया है। सवाल ये है कि सरकार प्रदेश में करीब 10.91 लाख बच्चों को पोषित आहार देने का दावा कर रही है, जिसमें बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए भारी भरकम आहार में हर दिन एक बच्चे पर आठ से 12 रुपये खर्च कर रही है। सवाल उठता है कि इस ऊंट के मुहं में जीरा जैसे खर्च पर बच्चों को पोष्टिक आहर कैसे दिया जाएगा और प्रदेश से कुपोषण की समस्या से कैसे निपटा जा सकेगा।
पोषण माह में कुपोषित बच्चों ( Malnourished Children ) की पहचान
हरियाणा में कुपोषण से निपटने के लिए इस राष्ट्रीय मिशन के चौथे चरण में राष्ट्रीय पोषण माह के तहत महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चार सप्ताह चार अलग-अलग थीम के तहत विभिन्न गतिविधियों आयोजित की जा रही हैं। इस अभियान में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भोजन के सही तरीके से पकाने व खाने के बारे में जानकारी दी जा रही हैं। अभियान के प्रथम सप्ताह में आंगनबाड़ी केन्द्रों, विद्यालयों, पंचायतों एवं अन्य सार्वजनिक भूमि आदि में उपलब्ध स्थानों पर पोषण वाटिका के रूप में पौधारोपण, किया गया। दूसरे सप्ताह में गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किशोरियों जैसे विभिन्न समूहों के लिए आयुष और योग कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जबिकि तीसरे सप्ताह में आईसी सामग्री के साथ आंगनवाड़ी लाभार्थियों को पोषण किट वितरित की जाएंगी और कुपोषित यानि एसएएम की पहचान और उनके लिए पौष्टिक भोजन के वितरण के लिए अभियान चलाया जाएगा। चौथे सप्ताह के दौरान एसएम बच्चों की पहचान करने से पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा और एएनएम द्वारा बच्चों (पांच वर्ष तक की आयु तक) के लिए लंबाई व ऊंचाई और वजन मापन अभियान के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया जाएगा।
आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों पर जिम्मा
प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग बच्चों व महिलाओं के विकास के लिए अनेक योजनाओं को अंजाम दे रहा है, जिसमें बच्चों व महिलाओं में कुपोषण और एनीमिया जैसी बीमारियों के खिलाफ जंग में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं के कंधों पर पूरा जिम्मा है। प्रदेश में चार हजार से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्रों पर फिलहाल 24731 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और उनके सहयोग के लिए 23635 सहायिकाएं कार्य कर रही हैं। आंगवानवाड़ी केंद्रों पर पोषाहार के रूप में बच्चों को पंजीरी, भरवा परांठा, आलू पूरी, मीठे चावल व दलिया, पुलाव, गुलगुले, चने, मूंगफली का मिक्चर और सेंवइयां जैसा आहर दिया जा रहा है।
कुपोषण मुक्त में लगेगा लंबा समय
एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कम वजन के कारण बढ़ते कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए करीब तीन दशक लगेंगे। प्रदेश में फिलहाल कम वजन की समस्या 29.4 प्रतिशत है, इस अविधि तक इस समस्या से निपटने के लिए हर साल दो प्रतिशत की कमी लाना आवश्यक है, लेकिन मौजूदा स्थिति में यह वार्षिक दर 1.02 प्रतिशत ही आंकी गई है। ऐसे ही ठिगनापन और दुबलेपन की समस्या प्रदेश के सामने खड़ी हुई है। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ो के अनुसार प्रदेश में राज्य सरकार कुपोषण के खिलाफ चल रही जंग में 06 माह से 6 साल तक के 10,90,929 बच्चों को पोषित आहार मुहैया करा रही है। इन में छह माह से एक साल तक के 77,077 लड़के व 74,382 लड़कियां, एक साल से तीन साल तक आयु वाले 2,67,784 लड़के 2,53,879 लड़कियां और तीन से छह साल आयु के 2,11,999 लड़के व 2,05,808 लड़कियां शामिल हैं।
चौथे चरण में दिखा था सुधार
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे चरण 2015-16 में हरियाणा में कुपोषण की जो स्थिति सामने आई थी, उसमें तीसरे चरण की तुलना में कुपोषण के मामले में काफी सुधार देखा गया था। शायद यही कारण रहा है कि पांचवे चरण में हरियाणा को शामिल नहीं किया गया। वर्ष 2017 जारी की गई चौथे चरण के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 29.4 प्रतिशत तक कम वजन, 34 प्रतिशत ठिगनापन, 21.2 प्रतिशत दुबलापन, 29.4 प्रतिशत कम वजन के कुपोषित सामने आए। कुपोषण का यह आंकड़ा वर्ष 2005-06 को किये गये तीसरे चरण के सर्वेक्षण की तुलना में सुधारात्मक था और केवल ठिगनापन के मामले में 2.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि देखने को मिली। जबकि कम वजन वाले कुपोषित बच्चों में 10.2 प्रतिशत की कमी आई, जो देशभर में सर्वाधिक सुधार के रूप में देखा गया।
बच्चों के लिए पोषाहार
सरकार महिला और बाल विकास विभाग के माध्यम से कुपोषण से लड़ने के लिए आंगनवाडी कार्यकत्रियों और स्वयं सेवी संगठनों की मदद ले रही है। प्रदेश में आंगनवाड़ी केन्द्र में बच्चों को पूरक पोषाहार 6 रुपये प्रतिदिन और अति कुपोषित बच्चों को 9 रुपये प्रतिदिन प्रति बच्चा की दर से दिया जाता है। वहीं गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं को 7 रुपये प्रतिदिन है। प्रदेश में इस खर्च को बढ़ाकर हरियाणा सरकार ने इसी साल क्रमश: आठ रुपये, 12 रुपये प्रति बच्चा और महिला किया है। बच्चों को दिया जाने वाला यह पोषाहार प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट और विटामिन से युक्त होता है और कुपोषण से बचने के लिए 6 वर्ष तक प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन 500 कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन मिलना जरुरी है।
जब 12 हजार बच्चों की मौत ने झकझोरा
प्रदेश के लिए वर्ष 2018-19 बच्चों पर इस कदर भारी पड़ा कि अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के बीच कुपोषण और समुचित इलाज न मिलने और संक्रमण जैसे कारणों से एक से छह साल तक की आयु के 12031 बच्चे काल का ग्रास बने थे, जिनमें 6179 लड़के व 5852 लड़कियां शामिल थी। आयु वर्ग के हिसाब से एक साल तक के 9576 बच्चे, 1 से 3 साल तक 1502 तथा 3 से 6 साल तक के 953 बच्चे मौत का शिकार हुए। विभाग के आंकड़े के अनुसार इस वित्तीय वर्ष के दौरान प्रदेश में 3,63,375 बच्चों ने जन्म भी लिया, जिसमें 1,90,091 लड़के और 1,73,284 लड़कियां शामिल रही। सरकार छह साल तक के बच्चों के लिए मृत्यु दर कम करने, कुपोषण खत्म करने, टीकाकरण, सामान्य स्वास्थ्य जांच, रेफरल सर्विसेज व स्कूल से पहले प्री स्कूल में भेजने के नाम से समेकित बाल विकास योजना के तहत वर्ष 2018-19 में लगभग 300 करोड़ रुपये प्रदेश में खर्च किए थे।
सर्वे में बच्चों की मौतों की स्थिति
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 4 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्रति जीवित जन्म 33 प्रतिशत तक दर्ज किया गया। हरियाणा में शिशु मृत्यु दर में यह कमी अखिल भारतीय स्तर पर देखी गई 28 प्रतिशत की कमी से कम है। हरियाणा की पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 41 थी, जो तीसरे चरण के सर्वे रिपोर्ट की तुलना में 21.42 प्रतिशत सुधार दर्शाती है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में हरियाणा में डायरिया से होने वाली मौतों की संख्या 14 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2017 में यह बढ़कर 20 हो गई।
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