सात साल में घटे 85 हजार से ज्यादा पशु, अकेले भैंसों की संख्या में ही 71 हजार की आई कमी

सतीश सैनी : नारनौल
हरियाणा को भारत में भैंसों का हब कहा जाता है। 2012 से इनकी संख्या 24 फीसदी तक घटी है। महेंद्रगढ़ जिला की बात करें तो पांच पशु गाय, भैंस, भेंड, बकरी व सूअर की संख्या में 7 साल में बहुत कमी आई है। इन पांच तरह के पशुओं में 22 फीसदी की कमी आई है। इनमें सर्वाधिक भैंसों की संख्या में 71 हजार का आंकड़ा गिरा है। निरंतर घटे रहे पशुधन के पीछे तीन अहम कारण 'घटती जमीन, बढ़ते शहरीकरण व दूसरे राज्यों को पशु बेचना' जिम्मेदार माना जा रहा है।
पशुधन की जनगणना हर पांच साल में की जाती है। हालांकि यह नवीनतम जनगणना सात साल के बाद हुई है। हरियाणा के पशुपालन और डेयरी विभाग ने डेटा एकत्र किया है। हरियाणा के पशुपालन व डेरी विभाग ने 2019 के आंकड़े के मुताबिक 2012 में राज्य में कुल 57.64 लाख भैंसों के मुकाबले अब यह संख्या 43.76 लाख भैंसों की रह गई है। 2007 में राज्य में 59.53 लाख भैंसें की तुलना में देखें तो इसमें 27 फीसदी की गिरावट है। आंकड़ों से पता चलता है कि भिवानी, जींद व हिसार जिलों में भैंसों की संख्या में ज्यादा गिरावट आई है। ये मुर्रा बेल्ट के हिस्से हैं, मुर्रा जोकि राज्य में भैंस की सबसे लोकप्रिय नस्ल है। महेंद्रगढ़ जिला में साल 2012 के सर्वे में 2 लाख 58 हजार 551 भैंस थी। अब सात साल बाद यह संख्या 1 लाख 87 हजार 207 पर आ गई है। मतलब 71 हजार 349 भैंस कम हुई है।
किस डिविजन में कितने पशु
नारनौल डिविजन : इस डिविजन में गाय 20381 व बैल 4211 है। भैंस 92178 व भैंसा 7632 है। भेड़ 10457 व मेंढा 890 है। बकरी 21440 व बकरे 3818 है। शुकरी (सुअरी)107 व शुकर (सूअर) 37 है।
महेंद्रगढ़ डिविजन : इस डिविजन में गाय 14648 व बैल 2179 है। भैंस 51240 व भैंसा 3010 है। भेड़ 7402 व मेंढा 748 है। बकरी 14009 व बकरे 1590 है। शुकरी (सुअरी)180 व शुकर (सूअर) 33 है।
कनीना डिविजन : इस डिविजन में गाय 8433 व बैल 1261 है। भैंस 30412 व भैंसा 2735 है। भेड़ 2982 व मेंढा 516 है। बकरी 4272 व बकरे 838 है। शुकरी (सुअरी) 840 व शुकर (सूअर) 157 है।
पशुधन की संख्या कम होने की पांच वजह अहम
- शहरों में पशुपालन की इजाजत नहीं है और जो पशुपालन कार्य से जुड़े है, उन्हें शहर में चारा महंगा होने का हर्जाना उठाना पड़ रहा है। शहरीकरण भी इसके पीछे एक बड़ा कारण रहा है।
- पिछले सालों से जमीन कम हुई है। इस कारण लोगों ने पशुओं की संख्या कम कर दी है। जो किसान पहले 4 भैंसें पाल रहा था, वह अब 1 भैंस ही पाल रहा है। अब लोग बेहतर क्वालिटी के पशुओं को पालना की सोच पर चल रहे है। पहले क्वालिटी से ज्यादा क्वान्टिटी पर ध्यान देते थे।
- दूसरे प्रदेश यूपी, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक ने प्रदेश व जिला से भैंसों की खरीदारी की है। यह भी एक वजह समाी जा रही है।
- आंध्र प्रदेश तरह के अन्य प्रदेश पिछले कई सालों से मुर्रा नस्ल की भैंसों की खरीद कर रहे हैं। इन राज्यों में भैंसों के पालन को लेकर क्रेज देखा गया है। उसके विपरीत हमारे यहां इसका क्रेज खत्म हो रहा है। हालांकि यहां समय-समय पर भैंसों के ब्यूटी कॉन्टेस्ट और रैंप वॉक शो किए जा रहे हैं। हाल ही में अटेली क्षेत्र में इस तरह का कार्यक्रम भी किया गया था।
- युवाओं के प्राइवेट व सरकारी नौकरियों के तरफ बढ़े रुझान को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। अब कोई भी पशुपालन में खुद को नहीं खपाना चाहता।
क्या कहते है अधिकारी
पशु पालन एवं डेयरी विभाग के उपनिदेशक डा. नसीबसिंह ने बताया कि हाल ही में गाय, भैंस, भेड़, बकरी व सूअर पशुओं के आंकड़े जारी हुए है। इन पांचों पशुओं की जिला में 308636 संख्या है। जिला में 67 पशु अस्पताल है। यहीं नहीं, प्रदेश की पहली टेलीमेडिसिन सुविधा (ई-पशु चिकित्सा) हमारे यहां है। पशु पालक अपने पशुओं की बीमारियों से संबंधित जानकारियां व अन्य बातें नारनौल उप स्वास्थ्य केंद्र में आकर या मोबाइल के मार्फत लिक पर जाकर लाला लाजपतराय यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ चिकित्सकों व अन्य चिकित्सकों से जानकारी ले सकते है।
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