झाडू-पोछा कर पैरालाइज्ड बेटे के इलाज पर खर्च कर देती मां, मदद के लिए आगे आई समाज कल्याण समिति

Sonipat News : समाज कल्याण समिति द्वारा मंदबुद्धि तथा बेसहारा लोगों को दिल्ली व राजस्थान के आश्रम में भेजा जाता है। जहां पर ऐसे लोगों को आसरा मिलता और उपचार भी मिलता है। इसी कड़ी में समिति ने शनिवार को एक मां-बेटा को भी अपना घर आश्रम भेजा है। इनमें से बेटा पैरालाइज्ड और मां उसकी सेवा में लगी रहती है। घर में आय का कोई अन्य साधन नहीं है और दोनों मां-बेटा लोगों की दया पर ही गुजारा कर रहे थे। मां आसपास के घरों में झाडू-पोछा कर कुछ पैसे इकट्ठा करती थी, जोकि बेटे पर लग जाता था। शनिवार को अपना घर आश्रम भरतपुर, राजस्थान भेजा गया।
समिति के प्रधान आनंद कुमार ने आश्रम के संचालक डा. बीएम भारद्वाज से बात की तो उन्होंने इन्हें लाने की मंजूरी दे थी। थाना शहर में सभी तरह की कागजी कार्रवाई करवाकर दोनों को राजस्थान के भरतपुर स्थित आश्रम में भेजा गया। आनंद कुमार ने बताया कि सालों से किराए पर रहे इन मां-बेटा की सेवा काफी दिनों से सब इंस्पेक्ट जगत सिंह और लाल सिंह कर रहे थे। ये दोनों इनके लिए सहायता जुटा रहे थे, जिसमें दवाइयां और घरेलू सामान शामिल था। आनंद ने बताया कि आश्रम में इस तरह से परिवार के लोगों को नहीं रखते सिर्फ मरीज को रखा जाता है, लेकिन इस केस में निवेदन करने के बाद आश्रम संचालक ने मां और बेटा दोनों को रखने की हां भर ली थी। इसके बाद ही दोनों को आश्रम भेजा गया है।
मां-बेटे को आश्रम भेजते हुए समिति के पदाधिकारी।
कांवड़ लाते समय हादसे का शिकार हो गया था बेटा
बताया गया है कि 9 साल पहले दीपक कांवड़ लेने के लिए हरिद्वार गया था। वापस आते समय हादसे का शिकार हो गया, जिसके बाद से वह पैरालाइज है। घर में और कोई सहारा नहीं था। इसके बाद से मां संतरा ने आसपास में झाडू-पौछा, बर्तन आदि करते हुए घर का गुजारा शुरू किया। कुछ सालों तक एक डॉक्टर के कमरे पर किराये पर रहे इन मां-बेटे को उस समय बेघर होना पड़ा जब 4 साल पहले डॉक्टर की मौत हो गई। इसके बाद ये दूसरी जगह चले गए, यहां से फिर डेढ़ साल पहले दहिया कॉलोनी में आकर रहने लगे थे। यहीं पर एसआई जगत सिंह और लाल सिंह को इनके बारे में पता लगा। जिसके बाद अब जाकर दोनों को आश्रम भेजा जा सका।
पूत कपूत सुने हैं पर माता ना सुनी कुमाता
समिति के प्रधान आनंद कुमार ने कहा कि बेटे के पैराइलाइज्ड होने के कारण मां उसकी सेवा में लगी रहती है। आसपास के घरों में काम कर जो पैसे इकट्ठे होते थे वो बेटे के इलाज पर खर्च कर देती थी। ऐसी माताओं की वजह से ही आज कहावत जिंदा है कि पूत कपूत सुने हैं पर माता ना सुनी कुमाता। आज भी ऐसी माताएं हैं जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार है। आनंद कुमार ने बताया कि संतरा अपने पति और बेटे के साथ दिल्ली रहती थी, लेकिन दीपक के हादसे से कुछ समय पहले उसने पति खो दिया था। इसके बाद दीपक पैरालाइज्ड हो गया तो वह सोनीपत अपने मायके के पास आकर रहने लगी थी।
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