Sunday Special : डिप्रेशन को हराकर पर्वतारोही सविता मलिक ने छुआ आसमान

Sunday Special : डिप्रेशन को हराकर पर्वतारोही सविता मलिक ने छुआ आसमान
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सविता ने हाल ही में हिमाचल में स्थित माउंट फ्रेंडशिप चोटी जिसकी ऊंचाई 5285 मीटर है पर फतह हासिल की है। इसके अतिरिक्त उसके नाम कई उल्लेखनीय उपलब्धियां दर्ज हैं।

शशि कांत चौहान : रोहतक

संघर्ष के मार्ग पर जो वीर चलता है वही इस संसार को बदलता है जिसने अंधकार मुसीबत और खुद से जंग जीती सूर्य बनकर वही निकलता है। किसी शायर की इन पंक्तियों को रोहतक की पर्वतारोही बेटी सविता मलिक ने बखूबी चरितार्थ करके दिखाया है। सविता ने हाल ही में हिमाचल में स्थित माउंट फ्रेंडशिप चोटी जिसकी ऊंचाई 5285 मीटर है पर फतह हासिल की है। इसके अतिरिक्त उसके नाम कई उल्लेखनीय उपलब्धियां दर्ज हैं।

रोहतक में जन्मी सविता मलिक के पिता राजपाल सिंह आर्मी की मेडिकल कोर में थे। वे फिलहाल रिटायर होकर लुधियाना में नौकरी कर रहे हैं। उनकी माता सरोज देवी गृहिणी थी। सविता जब मात्र 19 साल की थी तो उनकी मां का देहांत हो गया। इस घटना ने सविता को भीतर से तोड़कर रख दिया। मां की मौत का सविता के दिलो-दिमाग पर इतना असर हुआ कि वह डिप्रेशन में चली गई। ऐसा लगता था जैसे जीने का मकसद और इच्छा दोनों ही खत्म हो गए। वर्ष 2014 तक ऐसे ही चला। पर्वतारोहण ने ही जीने की इच्छा और प्रकृति को नजदीक से देखने की उत्सुकता जगाई। अंततः फिर पढ़ाई शुरू की।

ऐसे हुई शुरुआत

सविता जिस दौरान डिप्रेशन से गुजर रही थी उसी दौरान पढ़ने की आदत ने उन्हें एक नई रोशनी दिखाई सविता को बचपन से ही वन्य जीवन और जंगलों के बारे में जानने का शौक था। इसी के बारे में सविता ने कॉफी अध्ययन किया। इस दौरान उन्हें बछेंद्री पाल के बारे में पढ़ने और जानने का अवसर मिला। उनके संस्थान के बारे में जानकारी हासिल होने के बाद उन्हें पर्वतारोहण के शौक को पूरा करने की ठानी। अपने पैशन को पूरा करने के लिए उन्हें खास तरह की ट्रेनिंग और जानकारी की आवश्यकता थी इसलिए उन्होंने 2014 में उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग में बेसिक कोर्स किया और 2017 में एडवांस कोर्स पूरा किया ताकि अपने सपनों को उड़ान दे सके। यह उनके समर्पण का ही नतीजा था कि वह सफलता की सीढियां चढ़ती चली गई।

पैशन के लिए छोड़ी नौकरी

सविता ने अपने पैशन को पूरा करने के लिए नौकरी भी छोड़ दी थी। मात्र 29 वर्ष की आयु में ही वे तीन नौकरी कर चुकी हैं। वर्ष 2014 में उन्होंने सर्वप्रथम पहले ही प्रयास में कस्टम विभाग में नौकरी पाली थी लेकिन वहां अपने पैशन को पूरा करने के लिए छुट्टी नहीं मिल पा रही थी तो उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी थी। उसके बाद वर्ष 2016 में वे ऑडिटर के पद पर नियुक्त हुई लेकिन यह भी उन्हें रास नहीं आई। उन्होंने वहां से भी इस्तीफा दे दिया सविता फिलहाल ग्वालियर में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं और शौक को पूरा कर रही हैं।

देहरादून में प्राथमिक शिक्षा

सविता की पांचवी तक की स्कूल में देहरादून की एयरफोर्स स्कूल में हुई। क्योंकि उनके पिता आर्मी में थे और प्रारंभिक समय में परिवार साथ में ही रहता था। इसलिए उन्हें प्राथमिक शिक्षा के तौर पर एक अच्छा आधार मिला। इसके बाद वे रोहतक के विश्वकर्मा स्कूल में पड़ी। क्योंकि उन्हें बचपन से ही खेलों का शौक था इसलिए खेलों के अवसर को देखते हुए उन्होंने दसवीं कक्षा में वैश्य स्कूल में दाखिला लिया। इस दौरान उन्होंने खो खो और एथलेटिक्स में भाग लिया और नेशनल लेवल तक खेली। यहीं से उन्हें खेलों में बेहतर करने की प्रेरणा भी मिलती रही और उनके शिक्षक ने एथलेटिक्स और खो-खो में आगे बढ़ाया।

पिता से मिला पूरा सहयोग

सविता कहती है कि सपनों को पूरा करने के लिए परवाज की आवश्यकता होती है और परवाज पंखों से होती है। इंसान की परवाज उसको मिलने वाली आजादी और परिवार के सहयोग से होती है। इस मामले में वे लकी रही हैं। उन्हें अपने पैशन को पूरा करने के लिए पिता और भाई से पूरा सहयोग मिला। वे कहती हैं कि पिता ने मुझ पर पूरा भरोसा जताया। हालांकि अन्य रिश्तेदारों ने उन्हें खूब हतोत्साहित किया और मनोबल गिराने का प्रयास किया। यहां तक कि मेरे पिता पर माउंटेनियरिंग न करने देने के लिए दबाव भी बनाया, लेकिन उन्होंने हर आपत्ति को दरकिनार किया और मेरे सपने को पूरा करने के लिए हर मोड़ पर साथ दिया। बकौल सविता जब हम कुछ भी करने की ठान लेते हैं तो कोई भी ताकत हमे उस मुकाम तक पहुचने से नही रोक सकता। जरूरत है सिर्फ लगन और खुद पर पूर्ण विश्वास की , कि मैं ये हासिल करके ही दम लूंगा और जब तक वो मुकाम ना मिले हार नहीं माननी चाहिए।

बेटियों को मिलें अवसर

सविता कहती हैं कि भारत में लैंगिक आधार पर बहुत भेदभाव होता है। यह आधुनिक युग में बड़ी विडंबना है। बेटा-बेटी एक समान होती हैं तो समाज उनमें भेदभाव क्यों करता है। वे कहती हैं कि उन्हें उनके पिता ने भरपूर आजादी और अवसर दिए अपना मनपसंद करियर चुनने के लिए,इसलिए वे कहीं भेदभाव होते देखती हैं तो बहुत अखरता है। वे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का सेदेश देती रही हैं। यदि भविष्य में अवसर मिला तो वे लड़कियों के लिए अवश्य कुछ करना चाहेंगी।

ये हैं उपलब्धियां

> 2017 में उत्तरकाशी में स्थित 5670 मीटर ऊंचे माउंट द्रौपदी का डंडा ii काे फतह किया।

> 2017 में उत्तरकाशी में स्थित 6512 मीटर ऊंची माउंट भागीरथी ii पर विजय पाई।

> 2018 में विश्व के सबसे ऊंचे दर्रे खारदुंगला पर साइकिलिंग से चढ़ाई की

> 2018 में लेह में 6153 मीटर ऊंचे माउंट सटोक कांगड़ी पर तिरंगा फहराया।

> 2018 में लेह में 5950 मीटर ऊंचे माउंट गोलप कांगड़ी को फतह किया।

> 2018 में हिमाचल प्रदेश में 5953 मीटर ऊंची चोटी अंगदूरी को फतह किया।

> 2019 में बड़ा सिगड़ी ग्लेशियर में 6100 मीटर ऊंची चोटी कैथेड्रिल पर जीत हासिल की।

8 2019 में बड़ा सिगड़ी ग्लेशियर में 5648 मीटर ऊंची चोटी जाल्दी पर विजय पाई।

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