सांसद दीपेंद्र हुड्डा बोले- किसानों से बातचीत को जीत-हार से न जोड़े सरकार

सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि प्रजातंत्र में जनता की मांग स्वीकार करना सरकार का पहला कर्तव्य है। उन्होंने आशा व्यक्त करी कि सरकार आठवें दौर की बातचीत में यदि सकारात्मक रवैया अपनाती है तो आगे और किसानों को बलिदान नहीं देना पड़ेगा। इसलिए, सरकार अपने सारे पूर्वाग्रह को छोड़कर किसानों से बात करे। प्रजातंत्र में जनता की मांगों को स्वीकार करना सरकार की हार नहीं होती।
दीपेंद्र ने किसानों को टैक्टर मार्च की सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि टैक्टर मार्च पूरी तरह से सफल भी था और अनुशासित भी रहा। 60 किसानों की कुर्बानी देने के बावजूद सफल और अनुशासित टैक्टर मार्च करके किसानों ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि संविधान और लोकतंत्र के दायरे में शांति व अनुशासन के साथ अपनी लड़ाई को कैसे लड़ा जाता है। अब तक सात दौर की बेनतीजा बातचीत में सरकार के रवैये से ऐसा लगता है कि वो किसानों की मांगों को स्वीकार करने में अपनी हार देख रही है। अपनी जिद पर अड़ी सरकार किसानों की मांग को अस्वीकार करके जो अपनी जीत मान रही है, वो असल में उसकी हार है।
उन्होंने सरकार को चेताया कि वो बड़ा दिल दिखाए। किसान अपने लिये कोई बड़ा पैकेज नहीं मांग रहे हैं। बल्कि देश भर के किसान संगठन एक स्वर में बोल रहे हैं कि 3 कृषि कानून किसान के हित में नहीं हैं, इन्हें सरकार वापस ले। उन्होंने यह भी कहा कि प्रजा की बात मानने से कोई छोटा नहीं होता। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि संविधान और लोकतंत्र के दायरे में अनुशासित व शांतिपूर्ण संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ रहे किसान और मजदूर की लड़ाई पूरे देश की लड़ाई है। वे किसानों के हर संघर्ष में साथ खड़े हैं और किसानों को जायज हक की लड़ाई में निश्चित तौर पर सफलता मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि कड़ाके की ठंड, ओले-बारिश के बीच विपरीत परिस्थितियों में हर रोज बार्डरों पर किसान अपनी कुर्बानी दे रहे हैं। सरकार इनकी और कुर्बानी न ले। सरकार किसानियत नहीं तो कम से कम इंसानियत के नाते स्थिति की गंभीरता को समझे।
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