अंबाला : विकास के नाम पर डेढ़ साल में नहीं लगी एक ईंट, 13 गांवों के ग्रामीणों ने नगर निगम से की तौबा, खुद को अलग करने की मांग

अंबाला : विकास के नाम पर डेढ़ साल में नहीं लगी एक ईंट, 13 गांवों के ग्रामीणों ने नगर निगम से की तौबा, खुद को अलग करने की मांग
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ग्रामीणों ने सरकार से फिर उनके गांवों में पंचायती राज स्थापित करने की मांग की है। उधर मेयर शक्ति रानी शर्मा ने भी इन गांवों के लोगों को सुविधाएं देने की वकालत की है। मेयर ने कहा कि जब तक इन गांवों को निगम की ओर से बुनियादी सुविधाएं नहीं दी जाती तब तक इनसे किसी तरह के टैक्स की वसूली न की जाए।

हरिभूमि न्यूज.अंबाला

एक साल में ही 13 गांवों के ग्रामीणों ने नगर निगम से तौबा कर ली। अब तक निगम की ओर से इन गांवों के लोगों को किसी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई गई। उल्टा उनसे प्रॉपर्टी टैक्स, सेनिटेशन व दूसरे टैक्सों की वसूली की जा रही है।

इन ग्रामीणों ने सरकार से फिर उनके गांवों में पंचायती राज स्थापित करने की मांग की है। उधर मेयर शक्ति रानी शर्मा ने भी इन गांवों के लोगों को सुविधाएं देने की वकालत की है। मेयर ने कहा कि जब तक इन गांवों को निगम की ओर से बुनियादी सुविधाएं नहीं दी जाती तब तक इनसे किसी तरह के टैक्स की वसूली न की जाए। इस मामले को लेकर जल्द ही वे निगम कमिश्नर से बात करेंगी।

2018 में सरकार ने भंग किया था निगम

2018 में राज्य सरकार ने अंबाला निगम भंग करने का फैसला किया था। तब नगर निगम में अंबाला शहर के साथ अंबाला छावनी के भी वार्ड आते थे। छावनी के लोगों की बढ़ती दिक्कत के कारण खुद गृहमंत्री अनिल विज ने सरकार से नगर निगम को भंग करने की मांग की थी। इसके बाद अंबाला नगर निगम भंगकर छावनी को नगर परिषद का दर्जा बहाल कर दिया गया था जबकि अंबाला शहर को नगर निगम का दर्जा मिल गया। तब नगर निगम की संख्या तय करने के लिए आसपास के 13 गांवों को निगम में शामिल किया गया था। इन गांवों में गांव लोहगढ़, मानकपुर, डंगडेहरी, डडियाना, देवीनगर, छोटी घेल, बड़ी घेल, कालू माजरा, लिहारसा, कांवला, कांवली, निजामपुर को शामिल किया गया था। इसके साथ ही इन गांवों में पंचायती राज भी खत्म हो गया।

ग्रामीणों ने भी उत्साह के साथ वोटिंग की

अंबाला शहर नगर निगम के चुनाव में 13 गांवों के लोगों ने भी इस मकसद से उत्साह के साथ वोटिंग की थी उनके यहां विकास की बयार बहेगी। पंचायत से ज्यादा काम होगा। तब किसी को यह पता नहीं था कि बिना विकास के ही उनसे कई तरह के टैक्स वसूले जाएंगे। चुनाव खत्म होते ही इन गांवों के बुरे दिन शुरू हो गए। निगम चुनाव हुए एक साल से ज्यादा का समय हो गया लेकिन अभी तक इन गांवों में विकास के नाम पर एक ईंट तक नहीं लगी। न तो ग्रामीणों को सफाई की सुविधा मिल पा रही है न ही टूटी गलियों व सड़कों का निर्माण हो पा रहा है। जबकि इससे पहले पंचायती राज में इन गांवों में अभूतपूर्व विकास हुआ था। उल्टा इन गांवों के लोगों से अब प्रॉपर्टी, सेनिटेशन समेत कई तरह के टैक्स वसूले जा रहे हैं। निगम की ओर से इन लोगों को भेजे जा रहे नोटिस अलग मुश्किल बढ़ा रहे हैं। इन गांवों को पंचायती जमीन से काफी लाभ मिलता था लेकिन यह जमीन भी अब निगम के पास चली गई है। इसी वजह से सभी गांवों के लोग अब निगम से छुटकारा चाहते हैं। मामले को लेकर पिछले दिनों ही मानकपुर के ग्रामीण भी डीसी से मिल चुके हैं। इससे पहले कांवला, कांवली, छोटी घेल व बड़ी घेल समेत सभी गांवों के लोग खुद को निगम से बाहर करने की मांग कर चुके हैं।

देखो यह तो अभी संभव नहीं है कि किसी भी गांव को नगर निगम से बाहर निकाला जाए। चुनाव हो चुके हैं पूरी व्यवस्था बन चुकी है। इन गांवों में विकास के लिए निगम प्लान बना रहा है। जल्द ही इनमें पंचायत की तरह काम शुरू होंगे। हां इतना जरुर इन गांवों के लिए किया जाएगा कि जब तक यहां के लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलती तब तक इनसे किसी तरह के टैक्स के वसूली न की जाए। मैं खुद निगम कमिश्नर से बात करुंगी। - शक्ति रानी शर्मा, मेयर, अंबाला शहर


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