हरियाणा के नए लोकायुक्त के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज का नाम चर्चा में

हरियाणा के नए लोकायुक्त के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज का नाम चर्चा में
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हरियाणा के मौजूदा लोकायुक्त जस्टिस (रिटायर्ड ) नवल किशोर अग्रवाल का पांच वर्षों का कार्यकाल आगामी 18 जुलाई को पूर्ण हो जाएगा। उन्होंने 19 जुलाई 2016 को हरियाणा लोकायुक्त के पद की शपथ लेकर पदभार ग्रहण किया था।

चंडीगढ़। हरियाणा के मौजूदा लोकायुक्त जस्टिस (रिटायर्ड ) नवल किशोर अग्रवाल का पांच वर्षों का कार्यकाल आगामी 18 जुलाई को पूर्ण हो जाएगा। उन्होंने 19 जुलाई 2016 को हरियाणा लोकायुक्त के पद की शपथ लेकर पदभार ग्रहण किया था। सम्भावना है कि उनके पदमुक्त होने के साथ ही प्रदेश के नए लोकायुक्त को राज्यपाल द्वारा शपथ दिलवाकर नियुक्त कर दिया जाएगा। सूत्रों के अनुसार इस पद के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज का नाम चर्चा में है एवं संभवत: इस पर सहमति भी बन गई है। वर्मा को सितम्बर, 2014 में हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था एवं वह साढ़े 6 वर्ष जज रहे के बाद इसी वर्ष अप्रैल, 2021 में सेवानिवृत्त हुए।

इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि हाल ही में गजट नोटिफिकेशन जारी कर अधिसूचित किया गया है कि हरियाणा लोकायुक्त कानून, 2002 की धारा 3 (2 ) में प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा के स्पीकर (अध्यक्ष ), सदन के नेता प्रतिपक्ष और पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस विषय पर (अर्थात प्रदेश के नए लोकायुक्त की नियुक्ति के सम्बन्ध में ) विचार- विमर्श कर लिया गया है जैसा कि उपरोक्त कानून की धारा 3 (1 ) अनुसार करना अनिवार्य है।

उन्होंने बताया कि हरियाणा लोकायुक्त कानून की धारा 3 के अनुसार प्रदेश के लोकायुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है एवं मुख्यमंत्री इस सम्बन्ध में विधानसभा के स्पीकर, सदन के नेता प्रतिपक्ष और अगर लोकायुक्त पर नियुक्त होने वाला व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का जज अथवा किसी हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस है या रह चुका हो, तो भारत के मुख्य न्यायधीश से और यदि वह व्यक्ति किसी हाई कोर्ट का जज है या रह चुका हो, तो इस सम्बन्ध में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से इस विषय पर विचार-विमर्श करेंगे। हालांकि इसके साथ साथ कानून में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि उक्त परामर्श मुख्यमंत्री पर बाध्य नहीं होगा। इसका अर्थ है कि बेशक उक्त तीनो पदाधिकारियों की किसी मौजूदा या रिटायर्ड जज के बारे में कोई भी राय या टिप्पणी हो, अंतत: लोकायुक्त की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की इच्छा/मर्जी ही चलेगी।

जुलाई, 2016 में खट्टर सरकार द्वारा लोकायुक्त के पद पर नियुक्त किए गए नवल किशोर अग्रवाल हालांकि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज थे। हेमंत ने यह भी बताया कि संसद द्वारा बनाए गए लोकपाल और लोकायुक्त कानून, 2013 में केन्द्रीय लोकायुक्त के चेयरपर्सन और सदस्यों के चयन के लिए हालांकि देश के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 5 सदस्यी सिलेक्शन कमेटी गठित करने का प्रावधान है जो इस कवायद की लिए एक 7 सदस्य सर्च कमेटी बनाएगी हालांकि हरियाणा के मौजूदा लोकायुक्त कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है और प्रदेश लोकायुक्त का चयन पूर्णतया मुख्यमत्री की अधिकार-क्षेत्र (हाथों) में है।

उन्होंने बताया 5 वर्ष पूर्व जब मौजूदा लोकायुक्त अग्रवाल को जुलाई, 2016 में नियुक्त किया गया था तो मुख्यमंत्री द्वारा उपरोक्त 3 पदाधिकारियों से विचार विमर्श संबंधी नोटिफिकेशन 1 अप्रैल 2016 को अधिसूचित की गई थी अर्थात तत्कालीन लोकायुक्त की नियुक्ति से साढ़े 3 माह पहले. इससे पूर्व तत्कालीन हुड्डा सरकार द्वारा जनवरी, 2011 में लोकायुक्त के पद पर नियुक्त पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रीतम पाल ने उनका 5 वर्ष का कार्यकाल जनवरी, 2016 में पूर्ण किया था जिसके 6 माह बाद लोकायुक्त अग्रवाल की नियुक्ति हुई. इस प्रकार वर्ष 2016 में 6 महीने की लिए प्रदेश लोकायुक्त का पद रिक्त रहा था।

उससे पूर्व जनवरी, 2006 में हुड्डा सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जज एन.के. सूद को हरियाणा लोकायुक्त कानून, 2002 के अंतर्गत प्रदेश का पहला लोकयुक्त नियुक्त किया था जो जनवरी, 2011 तक इस पद पर रहे। हेमंत ने बताया कि सर्वप्रथम प्रदेश की बंसीलाल सरकार द्वारा हरियाणा लोकपाल कानून, 1997 बनाया गया था जिसमें बाद में संशोधन कर लोकपाल के स्थान पर लोकायुक्त शब्द डाल दिया गया। जनवरी, 1999 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज आई. पी. वशिष्ठ को हरियाणा का पहला लोकायुक्त नियुक्त किया गया था परंतु जब जुलाई, 1999 में ओ.पी.चौटाला प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने नया लोकायुक्त कानून बनाने हेतु हरियाणा लोकायुक्त कानून, 1997 ही निरस्त(समाप्त) कर दिया जिसके फलस्वरूप जस्टिस वशिष्ठ को समयपूर्व उनके पद से हटा दिया गया. उन्हें अपने शेष कार्यकाल के वेतन-भत्तों हेतु न्यायालय जाना पड़ा क्योंकि वह हाई कोर्ट में अपनी 2 वर्ष की सेवा से त्यागपत्र देकर लोकायुक्त बने थे. इसी दौरान 1997 लोकायुक्त कानून के स्थान पर हरियाणा लोकायुक्त कानून, 2002 बनाया गया हालांकि चौटाला सरकार ने अपना कार्यकाल समाप्त होने तक अर्थात मार्च, 2005 तक लोकायुक्त नहीं नियुक्त किया।

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