Narnaul : ग्रामीण रूटों पर शिक्षण संस्थाओं के शेड्यूल अनुसार नहीं चलती बसें, छात्राओं का कॉलेज में पहुंचना हो रहा मुश्किल

- जहां बसें नहीं चल रही, उन गांवों में छोटे टेंपो चलाने वाली सीएम की घोषणा कागजों में सिमटी
- उच्च शिक्षा के लिए धक्के खाने को मजबूर विद्यार्थी, नहीं हो रहा कोई समाधान
Narnaul : कॉलेजों में शैक्षणिक सत्र आरंभ हो चुका है और विद्यार्थियों को नियमित रूप से कक्षा अटैंड करने के निर्देश हैं, लेकिन जिले के अधिकतर ग्रामीण रूटों पर शिक्षण संस्थाओं के शेड्यूल के अनुसार परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस समस्या पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने चिन्हित रूटों पर छोटे टैंपो या मिनी बसें चलाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक उनकी घोषणा के अनुसार टैंपो चलाने का बजट कॉलेजों तक नहीं पहुंचा है और ना ही परिवहन विभाग को दिशा-निर्देश मिले हैं। परिवहन संसाधनों के आभाव में छात्राओं का नियमित रूप से कक्षा अटैंड करना संभव नहीं हो रहा।
आपको बता दें कि जिले के लगभग 30 ग्रामीण रूटों पर बसें चल रही हैं, जिनसे करीब 450 गांवों को अटैच कर दिया गया। जबकि जिले में 344 पंचायत तथा 650 से अधिक गांव व ढाणियां हैं। इन गांवों से सैकड़ों विद्यार्थी व ग्रामीणों को शहर आना-जाना पड़ता है। विभागीय बस सुविधा नहीं मिलने के कारण उन्हें अवैध वाहनों की मदद लेनी पड़ती है। जिनमें क्षमता से अधिक सवारियां होने के कारण छात्राओं को बैठने की जगह तक नहीं मिलती। उनकी सुविधा के लिए मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने जिन गांवों में परिवहन संसाधनों की व्यवस्था नहीं, उनमें छोटे टैंपो चलाने की घोषणा की थी। किराये का भुगतान सरकार करेगी, सभी पंजीकृत छात्राओं को नि:शुल्क सुविधा मिलेगी। घोषणा को करीब तीन साल बीत चुके है, अभी तक अमल नहीं हुआ।
दूसरी ओर अन्य ग्रामीण रूटों पर चल रही बसों में 50 से 80 सवारियां सफर करती हैं। जिनमें अधिकतर स्कूली छात्र-छात्राएं शामिल होती हैं। चालक स्टाफ के मुताबिक किराया मांगने पर लड़के विवाद करना शुरू कर देते हैं। उनकी देखा-देखी में 50 प्रतिशत अन्य सवारियां भी पैसे नहीं देती। एक चक्कर पूरा होने पर 150-200 रुपए से अधिक टिकटें नहीं बिकती, जिससे डीजल की भरपाई करना भी संभव नहीं होता। सूत्रों की मानें तो ग्रामीण रूटों पर अधिकतर बसें घाटे में दौड़ रही हैं। घाटे की सूची में शामिल टॉप आठ रूटों की बसें बंद की गई थी, लेकिन राजनीतिक दबाव में कुछ बसें दुबारा शुरू कर दी गई। अभी भी लगभग 20 बसें बंद होने के कगार पर हैं, जिससे दैनिक यात्री व छात्राओं की समस्या बढ़ जाएगी।
35 रुपए किलोमीटर का खर्चा 10 रुपए की आमदनी नहीं
नारनौल रोडवेज डिपो के डीआई रोहताश कुमार ने बताया कि ग्रामीण रूटों पर सभी बसें घाटे में हैं, क्योंकि विभाग को एक किलोमीटर बस चलाने पर करीब 35 रुपए खर्च करना पड़ता है। जबकि आमदनी 10 रुपए की भी नहीं है। यही कारण है कि रूट सुचारू रूप से नहीं बन पाता है।
अवैध सवारी वाहनों में जोखिम, किराये की भी लूट
दोस्तपुर, डापड़ा, गोठड़ी्र गोलवा, मूसनोता, बायल, ढाणी रावता, दौंखेरा रूट के विद्यार्थियों ने बताया कि सुबह रोडवेज बस आती है, लेकिन इसका टाइम स्कूल या कॉलेज के अनुसार नहीं। स्कूल खुलने का समय आठ बजे, वहीं कॉलेजों में नौ बजे बाद कक्षाएं शुरू होती हैं। इतना ही नहीं कॉलेज से घर जाने के लिए कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं। अवैध सवारी वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं। जिनमें जानलेवा जोखिम के साथ मनमर्जी किराय की वसूली होती है।
छोटे टैंपो चलाने का प्रपोजल नहीं मिला
विभागीय अधिकारी ने बताया कि जिन गांवों में बसे नहीं चल रही, उनमें छोटे टैंपो चलाने का प्रपोजल नहीं मिला। विभाग के पास टैंपो उपलब्ध भी नहीं हैं। सीएम ने घोषणा की है, तो शिक्षा विभाग अपने स्तर पर प्रबंध करेगा। दूसरी ओर कॉलेज प्राचार्यों ने भी बजट मिलने से इंकार किया है।
यह भी पढ़ें - Kaithal : अमेरिका भेजने के नाम पर 38 लाख की ठगी, दंपत्ति नामजद
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS