Narnaul : मेरी फसल मेरा ब्यौरा फसल पंजीकरण में फर्जीवाड़ा, मेवात से जुड़े तार

Narnaul : मेरी फसल मेरा ब्यौरा फसल पंजीकरण में फर्जीवाड़ा, मेवात से जुड़े तार
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  • अज्ञात लोग किसानों की जमीन का करा रहे पंजीकरण
  • भावांतरण भरपाई योजना के तहत किसानों को फर्जी पंजीकरण से हो सकता है आर्थिक नुकसान
  • मार्केट कमेटी, कृषि विभाग एवं तहसील कार्यालय पहुंच रहे शिकायतकर्ता

Narnaul : किसान हित में बनाई गई स्कीम मेरी फसल मेरा ब्यौरा में फर्जीवाड़ा उजागर हुआ। किसानों की जमीन को अज्ञात लोगों द्वारा अपने नाम से पोर्टल (Portal) पर पंजीकरण कराया हुआ है, जिससे किसानों द्वारा फसल बेचने पर जो रकम सरकार द्वारा किसान के खाते में डाली जाती है, वह फर्जी लोगों के अकाउंट में ट्रांसफर होने का खतरा है। ऐसे पीड़ित किसान मार्केट कमेटी, कृषि विभाग एवं तहसील कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने मेरी फसल मेरा ब्यौरा नामक एक स्कीम शुरू की हुई है, जिसके तहत किसान को अपनी बोई हुई फसल का पंजीकरण कराना होता है। पंजीकरण में जमीन का किला नंबर आदि विवरण चढ़ाया जाता है। इस स्कीम की खास बात यह है कि सरकार द्वारा सरकारी समर्थन मूल्य पर जो फसलें समय-समय पर खरीदी जाती हैं, उस खरीद में केवल वही किसान शामिल हो सकते हैं, जिन्होंने इस स्कीम में अपनी फसल का पंजीकरण करवाया हुआ होता है। अन्यथा वह इसमें भाग नहीं ले सकता। प्रदेश सरकार द्वारा रबी एवं खरीफ फसलों के समय दोनों बार ही सरकारी समर्थन मूल्य पर फसलें खरीदी जाती हैं। दक्षिणी हरियाणा में सरकार रबी के वक्त मूलत: सरसों तथा खरीफ के वक्त बाजरा फसल की खरीद सरकारी समर्थन मूल्य पर करती रही है और इसकी अमाउंट किसान के खाते में ऑनलाइन डिजीटलीकरण के जरिए की जाती है।

ऐसे हुआ फर्जीवाड़ा उजागर

इन दिनों खरीफ फसल का मेरी फसल मेरा ब्यौरा पर ऑनलाइन पंजीकरण चला हुआ है और अनेक किसान पंजीकरण करवा रहे हैं। जब मंडलाना के किसान देवेंद्र एवं सतनाली के खेमकर्ण ने अपनी फसल का पंजीकरण करवाना चाहा तो पता चला कि उनके खेत का पहले से पंजीकरण हो चुका है। पोर्टल उनकी जमीन के नंबरों पर पहले से ही एक मोबाइल नंबर एवं नाम-पता दर्शा रहा था। जब इन किसानों ने संबंधित नंबरों पर कॉल की तो और भी कमाल की बात उजागर हुई कि उक्त नंबर वाले व्यक्ति को पता ही नहीं उसका मोबाइल नंबर फसल पंजीकरण में प्रयोग हुआ है। इन किसानों ने उक्त व्यक्ति से भरोसे में लेकर बात की तथा उक्त पंजीकरण को एडिट करने पर जब उक्त मोबाइल नंबरों पर ओटीपी गया तो उसने वह ओटीपी नंबर भी बता दिया, जिससे उक्त जमीन नंबरों पर दिया गया नाम-पता एवं मोबाइल नंबर एडिट हो गए। अन्यथा सरकार जब भी ऑनलाइन फसल के ट्रांसफर करती तो उस जमीन से लिंक किए गए बैंक खाता नंबर में पैसा ट्रांसफर हो जाता और किसान खाली हाथ रह जाता।

भावांतर भरपाई में हो सकता है नुकसान

सरकार ने बाजरा खरीद में भावांतर भरपाई योजना लागू की हुई है। इस योजना के तहत किसान जिस रेट में मार्केट में बाजरा बेचता है, उस रेट तथा सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य (रेट) के बीच के अंतर को निकाल लिया जाता है। इसी बीच के अंतर की राशि किसान के खाते में डाली जाती है। उदाहरण के तौर पर बाजरा का सरकारी समर्थन मूल्य 2150 रुपए है और बाजार भाव 1600 रुपए प्रति क्विंटल है तो इसमें 550 रुपए भावांतर के हो गए। एक किला में सरकार आठ क्विंटल की पैदावार की औसत निकालती है। ऐसे में एक किला के भावांतर के 4400 रुपए हो गए। यदि सरकार यह 4400 रुपए डिजीटलीकरण के तहत डालती है तो यह राशि उस खाते में जाती है, जिस जमीन नंबर से जो बैंक खाता अटैच होता है। बस इसी को ध्यान में रखकर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है, ताकि किसान को पता भी न चले और पैसा भी खाते में ट्रांसफर हो जाए।

मेवात के लोग हैं शामिल

इस फर्जीवाड़े में मेवात के लोग शामिल बताए जा रहे हैं। पीड़ित किसान देवेंद्र ने बताया कि उसकी जमीन से जो नाम-पता एवं मोबाइल पंजीकृत थे, वह मेवात के एक व्यक्ति के थे। मेवात के लोग बैंकों के एटीएम का पासवर्ड, ओटीपी एवं अन्य विवरण लेकर भोलेभाले बैंक खाताधारकों को चूना लगा रहे हैं। यह मामला भी ठीक उसी तरह का है, जिसकी ठगी के किसान भी हो रहे हैं। झारखंड का जामताड़ा एवं हरियाणा का मेवात आजकल डिजीटलीकरण ठगी के मामलों में कुख्यात हो रहे हैं।

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