राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं सांस्कृतिक उत्सव : 32 सालों में 10 नेशनल अवार्ड प्राप्त कर चुका है गुजरात का ये बुनकर परिवार

रवींद्र राठी. बहादुरगढ़। गुजरात के कच्छ इलाके का गांव भुजोड़ी पूरी दुनिया में दुर्लभ शिल्प कौशल के लिए विख्यात है। इस कला के संरक्षण और संवर्धन में जुटे बुनकर परिवार की 12वीं पीढ़ी अन्य उत्साही बुनकरों को भी प्रशिक्षित करने में आगे रहती है। यह परिवार गत 32 सालों में 10 नेशनल अवार्ड प्राप्त कर चुका है। हैंडलूम के लिए दुनिया में ख्याति प्राप्त बुनकर परिवार के उत्पाद जापान, यूएस, कनाडा, थाईलैंड आदि में भी एक्सपोर्ट होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विशेष मौकों पर उनके द्वारा तैयार उत्पाद के साथ नजर आए हैं।
बहादुरगढ़ में आयोजित नौंवे राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं सांस्कृतिक उत्सव में गुजरात के कच्छ इलाके से आए दामजी बुनकर के पिता प्रेमजी भाई को 1991 में राष्ट्रीय योग्यता प्रमाणपत्र और फिर 2005 में शिल्पगुरु पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जबकि उनके भाई हीर जी को 1995, भाई देव जी को 1997, भाई चमन जी को 2001 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2006 में इस परिवार को दो नेशनल अवार्ड मिले। देव जी की पत्नी बाया बेन और दाम जी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। देव जी के पुत्र हंसराज को 2007, हीर जी की पत्नी कंकु बेन को 2014 और दाम जी की पत्नी लक्ष्मी बेन को 2018 में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
एक समारोह में पुरस्कार प्राप्त करने के बाद बुनकर परिवार।
गुजरात के कच्छ की यह 12वीं पीढ़ी प्रदर्शनियों और कार्यशालाओं के माध्यम से अपनी अनूठी कला को आगे बढ़ा रही है। दाम जी बुनकर ने 22 महीने में हाथ से बुनकर एक स्टोल तैयार किया, जिसके लिए उन्हें 2006 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। अपने पिता प्रेमजी से शिल्पकला के गुर सीखने वाले दाम जी के अनुसार वे अपने सूत भी स्वयं ही रंगते हैं। खूबसूरत गांव भुजोड़ी के अधिकांश लोग कपड़ा हस्तशिल्प उत्पादन में शामिल हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ मुलाकात में दाम जी के हाथ का बना स्टॉल ओढ़े पीएम नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)
आधुनिकता, फैशन और प्रतिस्पर्धा के युग में कच्छी कपड़ों और बुनाई को विश्व बाजार में चमकाए रखने के लिए बुनकर परिवार अथक प्रयास और प्रयोग करने से पीछे नहीं हटते। प्राकृतिक रंगाई में उनकी रुचि बरकरार है। बुनाई के विभिन्न डिजाइन और धागे प्रयोग करते हैं। बेहतरीन बुनाई के साथ कलात्मक और रचनात्मक हैं। उनके समुदाय में बुनाई की परंपरा यहां कई वर्षों से चली आ रही है। इस कुनबे का हर सदस्य पारिवारिक विरासत को आगे बढ़़ाने में सफल रहा है। क्योंकि बच्चे भी इसी काम से खुश हैं और आजीविका भी ठीक-ठाक चल रही है। दाम जी के अनुसार वे कॉटन से सूट, शर्ट पेंट, चादर, साड़ी के अलावा वूल से बने शॉल आदि में सिल्क का भी प्रयोग करते हैं।
ऐसे मिले नेशनल अवार्ड
- 1991 में पिता प्रेमजी बुनकर को नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट
- 1995 में भाई हीर जी बुनकर को नेशनल अवार्ड
- 1997 में भाई देव जी बुनकर को नेशनल अवार्ड
- 2001 में भाई चमन जी बुनकर को नेशनल अवार्ड
- 2005 में पिता प्रेम जी बुनकर को शिल्पगुरु अवार्ड
- 2006 में भाभी बाया बेन पत्नी देव जी को नेशनल अवार्ड
- 2006 में दाम जी बुनकर को नेशनल अवार्ड
- 2007 में भतीजे हंसराज पुत्र देवजी को नेशनल अवार्ड
- 2014 में भाभी कंकु बेन पत्नी हीरजी को नेशनल अवार्ड
- 2018 में पत्नी लक्ष्मी बेन को नेशनल अवार्ड
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