Neeraj Chopra : नीरज के Gold में कई लोगों की मेहनत, भाले और पानीपत का भी रहा है पुराना नाता

पानीपत। भारत की तकदीर बदल देने वाले तीन महान युद्धों की गवाह पानीपत की धरती पर जन्मे नीरज चोपड़ा के भाला फैंकने की पूरी दुनिया कायल हो गई है। वहीं भाले व पानीपत का पुराना नाता रहा है। पानीपत की धरती पर फरगना के भगौड़े बाबर व दिल्ली के आखिरी सुल्तान इब्राहिम लोदी, अकबर व भारत के आखिरी सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य, मराठाओं व अफ्गानिस्तान के अक्रांता अहमद शाह अब्दाली के बीच हुए युद्धों में भालों का प्रयोग खून बहाने के लिए हो चुका है। जबकि मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के भाले को आज भी भारत वासी याद करते है। वहीं पानीपत के गांव खंडरा के मूल निवासी एवं भारतीय थल सेना में सूबेदार नीरज चोपड़ा ने भारत की ओर से टोक्यो में इतना लंबा भाला फैंका जो गोल्ड मेडल की सौगात लेकर आया।
नीरज के भारी शरीर को जितेंद्र ने फिट किया था
पानीपत के गांव खंडरा में सतीश व सरोज के घर जन्मे नीरज चोपड़ा उर्फ निज्जू का बचपन में अधिक धी व दूध खाने-पीने के चलते वजन 80 किग्रा पहुंच गया था। नीरज के बढते वजन को कम करने के लिए चाचा सुरेंद्र उसे लेकर जिम पहुंचे लेकिन यहां बात नहीं बनी, वे नीरज को लेकर पानीपत के शिवाजी स्टेडियम पहुंचे। चाचा सुरेंद्र ने नीरज को फिटनेस ट्रेनर व जैवलिन थ्रोअर जितेंद्र जागलान को सौंप दिया। जितेंद्र ने नीरज की जमकर कसरत करवाई, नीरज बहाने करता लेकिन जितेंद्र और अधिक सख्त हो जाते। जितेंद्र ने नीरज का वजन कम किया और उसे एथलीट बनने की सलाह दी।
जयवीर ने नीरज को थमाया था भाला
पानीपत के निकटवर्ती गांव बिंझौल निवासी जैवलिन थ्रोआर जयवीर सिंह, पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में अभ्यास करते थे, वहीं नीरज को उन्होंने ही सबसे पहले जैवलिन थमाया था, नीरज ने पहली ही बार में 25 मीटर भाला फैंका तो जयवीर को नीरज भा गया और फिर शुरू हुआ टोक्यो में गोल्ड मेडल जीतने के सिलसिले की शुरूआत। नीरज का भी जैवलिन थ्रो में मन भा गया और उन्होंने बहाने छोड़ कर कठोर परिश्रम शुरू किया। पानीपत के बाद नीरज को अभ्यास के लिए पंचकूला भेज दिया गया।
परिवार ने हर अभाव को झेलकर नीरज को आगे बढ़ाया
नीरज के परिवार पर सिर्फ गुजारे लायक ही भूमि है, वहीं नीरज के पिता सतीश, भीम सिंह व सुरेंद्र तीन भाइयों का 19 सदस्यीय संयुक्त परिवार है, तीनों भाई कठोर परिश्रम कर जैसे तैसे अपना व परिवार का पेट पालते थे, वहीं नीरज के खेल की दुनिया में कदम रखते ही खर्च बढने लगा। तीनों भाइयों ने आर्थिक कमजोरी का अहसान कभी नीरज को न हो यह तीनों भाइयों ने तय किया और नीरज को सफल बनाने में उसका हर संभव सहयोग किया। नीरज की खेल संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए कई बार परिवार को ऐसे त्याग करने पड़े जिनका जिक्र वे नहीं करना चाहते।
पंजाबी गीत सुनने का शौकिन है नीरज
नीरज बचपन से ही पंजाबी गीत सुनने का शौकिन है, वहीं नीरज धी खाने व दूध पीने का भी जबरदस्त शौक रखता है। बाइक चलाने का शौक रखने वाली नीरज को अपने लंबे बाल बहुत पसंद है, फौज में जाने के बाद भी नीरज के बाल लंबे ही रहे। कोच के कहने पर उन्होंने अपने बालों का आकार कुछ कम किया था। वहीं पिछले एक साल से नीरज टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में जुट गया था, एक साल से तो उसका मोबाइल फोन भी बंद था, परिजन भी कोच के माध्यम से नीरज से कुछ देर ही बात करते थे। जैवलिन थ्रो में एक के बाद एक सफलता मिलने के बाद भी नीरज को घमंड छू नहीं सकता। नीरज जब भी अपने घर आता तो परिवार के साथ गांव वालों से भी मिलता और पिता सतीश के साथ जाकर अपने खेत खलियान भी देख कर आता। अपने बचपन के दोस्तों से भी नीरज दिल खोल कर मिलता। आस पड़ाेसियाें का भी हाल चाल जानता।
दादा बोले - पौते को कोली में उठाकर खिलाऊंगा
नीरज के दादा धर्म सिंह ने कहा कि उन्होंने नीरज से वादा किया था कि यदि उसने गोल्ड मेडल जीता तो उसे गोदी में उठाकर खिलाउंगा जैसे बचपन में खिलाता था। वहीं पौते को मिली सफलता से दादा धर्म सिंह गदगद है और कहते है पौते ने दुनिया भर में मान बढा दिया। ऐसा पौता सब को दे। नीरज के पिता सतीश व माता सरोज ने कहा कि भगवान नीरज जैसा बेटा सबको दे, नीरज ने सफलता प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम किया था और भगवान ने उसे उसकी मेहनत का फल गोल्ड मेडल के रूप में दे दिया। चाचा भीम सिंह व सुरेंद्र को अपने भतीजे नीरज पर गर्व है। वहीं भीम सिंह व सुरेंद्र ने कहा कि उन्हें विश्वास था कि नीरज गोल्ड जीत कर दुनिया भर में भारत का मान बढाएगा। गोल्ड मेडल जीत कर नीरज ने साबित कर दिया कि कठोर परिश्रम व अनुशासन के बल पर ही इंसान को सफलता मिलती है।
नीरज का खेल देखने को बड़ी एलईडी लगाई गई थी
टोक्यो में नीरज का खेल देखने के लिए परिवार वालों ने बडी एलईडी, शनिवार की सुबह ही लगाई थी, वहीं परिजनों ने टैंट लगवा कर कुर्सियां भी बिछवाई थी, ताकि नीरज का खेल लाइव देखा जा सके। नीरज का खेल देखने के लिए उपायुक्त सुशील आदि अधिकारी भी पहुंचे। डीसी ने नीरज के पिता सतीश व चाचा भीम के साथ बैठक कर नीरज का खेल देखा। नीरज के गोल्ड मेडल जीतने पर सभी लोग झूम उठे। जबकि माता सरोज भगवान का जप करती रही।
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