New Excise Policy : कॉरपोरेट घरानों को रास नहीं आई नई आबकारी नीति

New Excise Policy : कॉरपोरेट घरानों को रास नहीं आई नई आबकारी नीति
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कंपनियों को लाइसेंस आ जाने के बाद में अपने कर्मियों और अफसरों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव होने का डर सता रहा है। वहीं शर्तों के जंजाल और भारी भरकम कर्मचारी, फीस आदि शर्तों ने इस योजना में पलीता लगाने का काम किया है।

योगेंद्र शर्मा / चंडीगढ़। हरियाणा में कॉर्पोरेट घराने ऑफिस में कर्मचारियों की सुविधा के लिए लाइसेंस लेकर बीयर और वाइन सर्व करने की नीति बड़े घरानों को रास नहीं आ रही है। खास बात यह है कि नीति में जहां बहुत ज्यादा संख्या वाले कारपोरेट हाउस को इसमें लेना था, वहीं फीस भी कोई कम नहीं है। साथ कंपनियों को लाइसेंस आ जाने के बाद में अपने कर्मियों और अफसरों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव होने का डर सता रहा है। शराब और वाइन के दफ्तरों में इस्तेमाल के बाद में अनुशासनहीनता के मामले बढ़ जाएंगे साथ ही आपसी रिश्तों में भी कई प्रकार की खटास आ सकती है।

दूसरा तरफ दफ्तरों में इस तरह का माहौल हो जाने के बाद में ऑफिस से घर जाने और घरों में भी इसके कई साइड इफेक्ट हो सकते हैं। रास्ते में दुर्घटना आदि की संभवाना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि कॉर्पोरेट घरानों द्वारा कर्मचारियों को शराब परोसने के लिए आवेदन नहीं किया गया है। यहां पर गौरतलब रहे कि सरकार ने इस व्यवस्था के लिए एल-10 एफ लाइसेंस के तहत, कॉर्पोरेट घरानों को बीयर, वाइन और रेडी-टू-ड्रिंक पेय जैसे कम मात्रा वाले अल्कोहल पेय परोसने की अनुमति के लिए रास्ता खोल था। इसकी जमकर आलोचना भी विपक्ष द्वारा की जा रही थी। एक्साइज पॉलिसी 2023-24 में 12 जून से लागू यह प्रावधान सुर्खियां बटोरता रहा है।

लाइसेंस की ये शर्तें

9 मई को स्वीकृत पॉलिसी के तहत कम से कम 5 हजार कर्मचारियों वाले कॉर्पोरेट कार्यालय में शराब रखने और उपभोग करने की अनुमति लाइसेंस लेने की स्थिति में दी जानी थी। ऑफिसर परिसर में एक लाख वर्ग फुट का न्यूनतम कवर क्षेत्र होना चाहिए, जो स्व-स्वामित्व या पट्टे पर हो सकता है। अगर कैंटीन या भोजनालय का न्यूनतम क्षेत्र 2,000 वर्ग फुट से कम नहीं है, तो यह लाइसेंस की अनुमति देता है।अनुदान की प्रक्रिया बार लाइसेंस के समान ही है। आवेदन करने वाली कंपनी को 3 लाख की सुरक्षा राशि के अलावा 10 लाख वार्षिक शुल्क का भुगतान करना होगा। शर्तों के जंजाल औऱ भारी भरकम कर्मचारी, फीस आदि शर्तों ने इस योजना में पलीता लगाने का काम किया है। इस आकर्षक प्रस्ताव को राज्य की कंपनियों ने कई कारणों से ठंडे बस्ते में डाल दिया।

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