Syl Dispute : हरियाणा को पंजाब से फिर मिली निराशा, CM मनोहर लाल और भगवंत मान में नहीं बनी सहमति

चंडीगढ़। सतलुज-यमुना लिंक ( एसवाईएल ) नहर के मुद्दे पर शुक्रवार को हरियाणा और पंजाब के बीच बैठक हुई। बैठक में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान सहित दोनों राज्यों के कई अधिकारी भी मौजूद रहे। करीब दो घंटे चली बैठक में एसवाईएल नहर बनाने पर सहमति नहीं बन पाई। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने बताया कि बैठक में किसी प्रकार की सहमति नहीं बन पाई है।
सीएम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार आज हमने बैठक की। SYL का निर्माण हमारे लिए जीवन मरण का सवाल है। इससे पहले भी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के साथ बैठक की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने SYL के निर्माण के लिए कहा है परंतु पंजाब उस पर सहमत नहीं है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत को बैठक के विषय में बताएंगे। पानी के लिए पहले भी ट्रिब्यूनल बनाया गया था, उसके बाद 3 जजों का नया ट्रिब्यूनल बनाया गया, लेकिन ट्रिब्यूनल के फैसले अनुसार पानी के लिए भी एसवाईएल का निर्माण जरूरी है। सीएम ने बताया कि बैठक में दोनों राज्यों के ज्वाइंट पर पानी बंटवारे, साडा नाला, घग्गर नदी के पानी को साफ करने के विषय पर भी बातचीत हुई। घग्गर नदी के पानी को साफ करने के लिए दोनों राज्यों के सिंचाई विभाग के अधिकारियों की कमेटी बनाई।
#SYL का निर्माण हरियाणा के लिए जीवन मरण का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा SYL के निर्माण हेतु दिए गए निर्देशानुसार आज हमने पंजाब सरकार के साथ चंडीगढ़ में बैठक की।
— Manohar Lal (@mlkhattar) October 14, 2022
पंजाब सरकार इस विषय पर सहमत नहीं हुई, अब हम केंद्रीय मंत्री श्री गजेंद्र शेखावत जी को आज की बैठक के विषय में बताएंगे। pic.twitter.com/TIUAfYJZs5
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश दिनांक 24.3.1976 के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था। एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है।पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा। पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं।
यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती, प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता। इस पानी के न मिलने से दक्षिणी-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है।
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