सिर पर बाप का साया न छत की छाया, फिर भी बेटी बनी हॉकी नेशनल प्लेयर

सिर पर बाप का साया न छत की छाया, फिर भी बेटी बनी हॉकी नेशनल प्लेयर
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हॉकी में दम दिखाने वाली 14 वर्षीय संजना आठवीं कक्षा की छात्रा है। अगर उसके घर की हालत की चर्चा की जाए तो परिवार गरीबी के कारण अपने नाना के घर में रह कर उसको मिलने वाली दो हजार रुपये बुढ़ापा पेंशन से ही गुजारा कर रहा है।

अजमेर गोयत : महम

गिरावड़ की रहने वाली हॉकी खिलाड़ी संजना बुलंद हौसले का दूसरा नाम है। सिर पर न तो पिता का साया, न ही रहने के लिए घर फिर भी बन गई नेशनल प्लेयर। संजना 17 से 27 मार्च तक ओड़िशा के भुवनेश्वर स्थित कलिंगा स्टेडियम में होने वाली राष्ट्र स्तरीय सब जूनियर हॉकी प्रतियोगिता में भाग लेंगी।

हाल ही में नेशनल के लिए सोम कोन्वेंट गुरुकुल कुरुक्षेत्र में 5 मार्च को ली गई ट्रायल में यहां की खिलाड़ी का चयन नेशनल के लिए हुआ है। हॉकी में दम दिखाने वाली 14 वर्षीय संजना आठवीं कक्षा की छात्रा है। अगर उसके घर की हालत की चर्चा की जाए तो परिवार गरीबी के कारण अपने नाना के घर में रह कर उसको मिलने वाली दो हजार रुपये बुढ़ापा पेंशन से ही गुजारा कर रहा है।

लापता हो गए थे पिता

मां उषा की शादी फतेहाबाद के कंहड़ी गांव निवासी महेंद्र सिंह से हुई थी। वे किसानों के खेतों में काम किया करते थे। लेकिन पिछले पांच साल पहले वे अचानक लापता हो गए। तब से लेकर आज तक उनका अता पता नहीं है। मां उषा बताी हैं कि उनकी तीन संतान हैं बड़ा बेटा उसके बाद दोनों बेटी। संजना सबसे छोटी है।

मां करती है घरों में साफ सफाई का काम : पिता के लापता होने के बाद परिवार को खाने का संकट हुआ तो वह परिवार सहित पिता के घर गिरावड़ आ गई। अब पिता के पास भी न तो घर है और न ही किसी प्रकार का रोजगार। संजना की मां उषा पिता को मिलने वाली दो हजार बुढ़ापा पेंशन पर निर्भर है और भाई के प्लॉट में बांस की फट्टियों पर पोलीथीन डालकर बनाई छत के नीचे रहकर अपना गुजर बसर कर रही है। इसके अलावा खिलाड़ी की मां आस पास के घरों में साफ सफाई का काम करने के बाद बस रोटी लेकर आती है।

सरकार ने बंद कर दी थी नर्सरी : राजकीय कन्या उच्च विद्यालय की मुख्याध्यापिका मूर्ती देवी ने कहा कि अगस्त 2019 में स्कूल में नर्सरी लेकर आए। सरकार ने उसे जल्द बंद कर दिया। लेकिन कोच संदीप दांगी ने खिलाडि़यों की प्रेक्टिस जारी रखी। इसी प्रकार उनके इस काम में गांव के ही कोच वीरेंद्र कुमार सहायता कर बेटियों का मनोबल बढ़़ा रहे हैं। स्कूल में ज्यादातर गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए अपने कोष से उन पर कुछ खर्च करना पड़ता है। लेकिन अब प्रतिभा में निखार आने लगा है।

70 बेटियां करती हैं अभ्यास : गिरावड़ गांव हमेशा से ही खिलाडि़यों की जननी रहा है। यहां से निकल कर खिलाड़ी अपने गांव ही नहीं प्रदेश व देश का नाम रोशन कर चुके हैं। अब यह गांव हॉकी की नर्सरी बनता जा रहा है। यहां पर हर रोज 70 बेटियां सुबह शाम हॉकी का अभ्यास कर रही हैं। अगस्त 2019 से स्कूली छात्राओं के लिए बनी हॉकी की नर्सरी सरकार की ओर से तो कबकी बंद हो चुकी है। लेकिन यहां के कोच व लड़कियों ने अपनी प्रेक्टिस बंद नहीं की। परिणाम यह है कि अब यहां की टीम अपना नाम चमकाने लगी है।

नहीं है पता क्या होता है नेशनल

मां ने बताया कि वह अपनी बेटी को बाहर नहीं भेजना चाहती थी। स्कूल की मुख्याध्यापिका मूर्ती देवी ने घर आकर बेटी के अच्छी खिलाड़ी होने की बात बताई तो उसको बाहर भेजने के लिए राजी हो गई। लेकिन खर्च के नाम पर घर में कुछ भी नहीं। बताया कि खिलाड़ी का बाहर रहने, खाने व आने जाने का किराया भी स्कूल सदस्य अपने कोष से अदा कर रहे हैं। मां का कहना है कि उसे नेशनल के बारे में कुछ भी पता नहीं लेकिन जब पता चला कि बेटी का कहीं चयन हुआ है तो खुशी के आंसू झलक पड़े।

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