नारनौल नागरिक अस्पताल में फिजिशियन ही नहीं, कैसे हो उपचार

राजकुमार : नारनौल
इलाके में जटिल ही नहीं, सामान्य बीमारियों के रोगी तो हैं, लेकिन उन्हें उपचार प्रदान करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक ही नहीं हैं। अस्पतालों में सबसे ज्यादा जरूरत फिजिशिएन एमडी डाक्टर की होती है, लेकिन जिला स्तरीय नागरिक अस्पताल में लंबे समय से चिकित्सक नहीं है। न्यूरो एवं नफ्रो के विशेषज्ञ होने तो यहां दूर की कोड़ी है। कैंसर के भी बहुत सारे रोगी हैं, लेकिन जांच एवं उपचार की सुविधा नहीं है। ऐसे में जिले में स्वास्थ्य विभाग की सेवाएं आज भी चुनौतीपूर्ण ही बनी हुई हैं।
उल्लेखनीय है कि नारनौल में जिला स्तरीय सरकारी अस्पताल को 50 के दशक में उस समय बनाया गया था, जब पंजाब को पैप्सू कहा जाता था। कई दशक बीते, लेकिन जिला स्तरीय अस्पताल आज भी विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं जांच सुविधाओं का मोहताज ही बना हुआ है। जब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री यहां के विधायक राव नरेंद्र सिंह थे, तब इस अस्पताल को स्पेशलिटी अस्पताल का दर्जा दिया गया था और कुछ सुविधाएं भी बढ़ी थी, लेकिन तब भी जटिल बीमारियों का उपचार संभव नहीं हो पाया था। गब्बर के नाम से मशहूर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज दूसरी बार यह कार्यभार संभाल रहे हैं, लेकिन वह पहले कार्यकाल की शुरूआत में ही नारनौल आए थे, उसके बाद से उन्होंने आज तक इस अस्पताल की सुध नहीं ली है।
अस्पताल की नींव से आज तक नहीं मिला न्यूरो : आपातकालीन वार्ड में जब कोई गंभीर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति लाया जाता है तो उसे प्राथमिक उपचार से ज्यादा सेवाएं नहीं मिल पाती हैं। इसका साफ कारण आवश्यक जांच सुविधाएं, दवाएं एवं विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं होना है। न्यूरो की सबसे ज्यादा जरूरत ऐसे ही मामलों में होती है, लेकिन अस्पताल की नींव से आज तक न्यूरो विशेषज्ञ नहीं मिला है। इस कारण यहां से मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। लोग दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को अक्सर जयपुर या गुरुग्राम लेकर जाने की कोशिश करते हैं। न्यूरो नहीं होने से ब्रेन व स्पाइनल के रोगों का उपचार नहीं हो पाता है।
एमडी ही नहीं : किसी भी अस्पताल में फिजिशिएन एमडी डाक्टर की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे डाक्टर का कार्य बिना किसी चीरफाड़ के रोगी को महज दवाओं के सहारे ही ठीक करना होता है। नागरिक अस्पताल में करीब तीन सालों से फिजिशिएन एमडी नहीं है। पहले डा. अमित सिंघानिया और फिर डा. सुरेंद्र मित्तल ने निजी कारण जताते हुए इस्तीफा दे दिया था। तबसे लेकर अब तक यह पद रिक्त ही बने हुए हैं। जबकि इनकी मांग बहुत ज्यादा है।
नेफ्रो स्पेशलिस्ट की भी है कमी : इलाके में अनेक रोगी किडनी रोगों से ग्रस्त हैं। मगर नारनौल अस्पताल ही नहीं, रेवाड़ी अस्पताल तक में नेफ्रो स्पेशलिस्ट नहीं हैं। गेस्ट्रोलोजिस्ट का पद भी रिक्त बना हुआ है। पेट संबंधी बीमारियों की आधुनिक जांच सुविधा एवं चिकित्सकीय सेवाएं यहां उपलब्ध नहीं हैं।
कैंसर रोगी भी रहते हैं परेशान : नागरिक अस्पताल में कैंसर रोग का उपचार भी उपलब्ध नहीं है, जबकि इस रोग के अनेक मरीज जिले में मौजूद हैं और अब भी इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। कैंसर का उपचार नहीं होने से मरीज जयपुर, दिल्ली एवं अन्य जगहों पर जाकर महंगा इलाज लेने को मजबूर हैं। गरीब मरीजों का तो जीवन ही संकट में रहता है।
जांच की पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं हैं मौजूद : जिला स्तरीय अस्पताल में इस समय केवल एक ही अल्ट्रासाउंड मशीन काम कर रही है, जबकि इसकी दो मशीनें उपलब्ध हैं। दूसरी मशीन को चलाने के लिए विशेषज्ञ ही उपलब्ध नहीं है। सिटी स्कैन एवं एमआरआई की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।
इनके चिकित्सक हैं उपलब्ध : नागरिक अस्पताल में पहले कई चिकित्सकों के पद रिक्त थे, लेकिन सिविल सर्जन डा. अशोक कुमार के प्रयासों से इसमें सुधार हुआ है। अब नारनौल अस्पताल में आंखों के साथ स्कीन, हड्डी, मनो चिकित्सक आदि के विशेषज्ञ चिकित्सक मौजूद हैं। अन्य कई रोगों के चिकित्सक भी अस्पताल को मिले हैं।
सिविल सर्जन डा. अशोक कुमार ने बताया कि बेशक से अस्पताल में फिजिशिएन एमडी नहीं है, लेकिन अब से पहले इतने डाक्टर कभी नहीं रहे। चिकित्सकों की बार-बार मांग करके मंगवाए गए हैं और अब भी प्रयास जारी हैं। चिकित्सा सेवाओं में कोई कमी नहीं आने दी जा रही।
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