हरियाणा सिविल सेवा की प्रतियोगी परीक्षा में उर्दू विषय न रखने पर सरकार व HPSC को नोटिस

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा लोक सेवा आयोग ( Hpsc ) द्वारा हरियाणा सिविल सेवा (कार्यकारी और संबद्ध सेवाओं) की प्रतियोगी परीक्षा में उर्दू विषय को न रखने पर सरकार व आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हाई कोर्ट ने यह नोटिस मेवात निवासी मोहम्मद इमरान की याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया। मामले में बहस के दौरान याची के वकील मोहम्मद अरशद ने दलील दी कि संविधान भी आठवीं अनुसूची के तहत उर्दू को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता देता है, लेकिन हरियाणा में प्रतियोगी परीक्षा के लिए वैकल्पिक विषयों से उर्दू को बाहर करना इस भाषा से भेदभाव करने के समान है।
हाई कोर्ट को बताया गया कि देश के कई राज्यों में उर्दू मुख्य भाषा है, हरियाणा में काफी तादाद में उर्दू भाषी लोग रहते है। देश में 6,27,72,631 लोग उर्दू भाषा बोलते व जानते है। संघ लोक सेवा आयोग में भी उर्दू भाषा को एक विषय के रूप में रखा हुआ है। कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता ने हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा एचसीएस परीक्षा के लिए 26 फरवरी, 2021 को विज्ञापित ग्रुप-ए और बी पदों के लिए मुख्य परीक्षा के विषयों की सूची में उर्दू को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करने के निर्देश देने की मांग की है। याचिकाकर्ता के अनुसार उर्दू को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक परीक्षा के रूप में शामिल किया जाना चाहिए था कि देश में उर्दू के बोलने वालों की संख्या अधिक है और यहां तक कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने भी अखिल भारतीय सिविल सेवाओं के लिए अपनी मुख्य परीक्षा में शामिल किया है।
याचिकाकर्ता उम्मीदवार उर्दू में पारंगत हैं और उन्होंने इसे अपने पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में पढ़ा है या अपनी मातृभाषा के रूप में उर्दू सीखी है। , इस लिए वह वैकल्पिक विषय के रूप में उर्दू ले सकते हैं। लेकिन आयोग ने एचसीएस की परीक्षा के लिए तय 29 विषयों में उर्दू को न रख कर मनमाना व गैर कानूनी काम किया है। हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा ने याची पक्ष की दलील सुनने के बाद हरियाणा सरकार व राज्य लोक सेवा आयोग को 9 सितंबर तक जवाब दायर करने का निर्देश दिया है।
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