अब हरियाणा का कुश्ती संघ बना राजनीति का अखाड़ा, खेल मंत्री के नेतृत्व में बना नया संघ, भारतीय कुश्ती संघ ने ठहराया गलत

रवींद्र राठी. बहादुरगढ़। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में प्रथम एशियाई खेलों के दौरान दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में नारा दिया था कि खेल को खेल की भावना से खेला जाना चाहिए। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। देश और प्रदेश के खेल संगठन राजनीतिक दखलअंदाजी के शिकार हो रहे हैं। ताजा मामला हरियाणा की कुश्ती से जुड़ा है। सूबे के खेल मंत्री के नेतृत्व में एक नए कुश्ती संघ ने जन्म लिया है। हालांकि भारतीय कुश्ती संघ ने इसे मान्यता देने से इंकार कर दिया है। खेल संगठनों पर कब्जे की राजनीतिक खींचतान में खेल और खिलाड़ी लगातार पिस रहे हैं।
खेलों के लिए हरियाणा देश-दुनिया में विख्यात है। हरियाणा के युवाओं में योग्यता और क्षमता की कोई कमी नहीं है। वे देश के लिए पदकों के ढेर लगाने को आतुर हैं। लेकिन खेल संगठनों की खींचतान ने सदैव उनका मनोबल गिराया है और तैयारियों को भी झटका दिया है। दरअसल, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने 30 जून को दिल्ली में हुई बैठक में कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा कुश्ती संघों को भंग कर दिया था। इसके बाद 31 जुलाई को गुरुग्राम में हरियाणा कुश्ती एसोसिएशन के लिए हुए चुनाव में रोहतास सिंह को अध्यक्ष और राकेश सिंह (कोच) को महासचिव का दायित्व सौंपा गया। इनके नेतृत्व में रोहतक में 24 से 26 अगस्त तक फेडरेशन कप का सफल आयोजन भी हुआ। लेकिन अब भारतीय हाकी टीम के कप्तान रह चुके हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह के नेतृत्व में अलग से हरियाणा कुश्ती संघ का गठन किया गया है। इसका महासचिव गोहाना से चुनाव लड़ चुके तीर्थ सिंह राणा को बनाया गया है। हालांकि देश में कुश्ती की सर्वोच्च संस्था भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण के अनुसार पूरी प्रक्रिया के तहत नई कार्यकारिणी चुनी गई थी। किसी को भी इस तरह नया कुश्ती संघ बनाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। यह गलत है।
बता दें कि हरियाणा में दो दर्जन से अधिक खेलों के अलग-अलग संगठन बने हुए हैं। इन खेल संगठनों में राजनीति शुरू से ही हावी रही है। अधिकतर खेल संगठनों पर राजनेताओं और अधिकारियों का ही कब्जा है। इतना ही नहीं अपने अलग संगठन बनाने का रिवाज भी काफी पुराना है। खेल संगठनों में बढ़ती राजनीतिक दखलअंदाजी का असर खिलाडि़यों के प्रदर्शन, उनके चयन में गंभीरता और कुल मिलाकर समूचे खेल ढांचे पर पड़ता है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के चार्टर के मुताबिक सभी राष्ट्रों के खेल संगठन स्वायत्त होते हैं। सरकार उनके कामकाज में दखलंदाजी नहीं कर सकती। स्वायत्तता का यह नियम खेल संगठनों को काम की आजादी देने के उद्देश्य से रखा गया है। लेकिन, हमारे देश में खेल संगठनों के चुनाव मजाक बनकर रह गए हैं। यही कारण था कि 2012 में अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति ने भारतीय ओलिंपिक संघ को निलंबित कर दिया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलाडि़यों की सफलता का श्रेय केवल और केवल खिलाडि़यों की प्रतिभा, लगन और मेहनत को जाता है। राजनेताओं को खेलों को बढ़ावा देने के लिए आगे आना चाहिए, ना कि खेलों में राजनीति करने के लिए। जब तक ऐसा होता रहेगा, खेलों के साथ खिलवाड़ होता रहेगा।
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