हरियाणा के इस कृषि वैज्ञानी को मुंह मांगी चीज देने को तैयार था पाकिस्तान, नोबेल विजेता ने छुए थे पांव

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डॉक्टर रामधन सिंह का जन्म 1 मई 1891 को रोहतक जिले के किलोई गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान जब चौधरी रामधन सिंह हुड्डा से मिले तो हाथ मिलाने की बजाय उन्हें गले ले लगा लिया। डॉ अयूब ने कहा कि आप नहीं होते तो पाकिस्तान में गेहूं और चावल भी नहीं होता।

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक

आप कभी ना कभी हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में तो गए ही होंगे। वहां एक फार्म का नाम डाक्टर रामधन सिंह कृषि फार्म है। ये रामधन सिंह जी कौन थे ? क्यों इनके नाम पर एक पूरे फार्म का नाम रखा गया ? खेती में इनका क्या योगदान था ? अगर आज की पीढी से पूछा जाए तो अधिकतर तो इनका नाम ही नहीं पता होगा ? काम क्या किया ये भी नहीं पता होगा ? ऐसा इसलिए है क्योंकि हरियाणा की धरती पर जो महान लोग पैदा हुए उनके बारे में लिखा नहीं गया, बताया नहीं गया तो हम जानेंगे कैसे उन लोगों के बारे में। आज हम बात करेंगे राव बहादुर डॉ रामधन सिंह हुडडा के बारे में। रामधन सिंह हुडडा का 17 अप्रैल 1977 को निधन हुआ था और आज उनकी पुण्यतिथि है।

अगर जन्म की बात की जाए तो डॉक्टर रामधन सिंह का जन्म 1 मई 1891 को रोहतक जिले के किलोई गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। वो बचपन से ही पढाई में तेज थे और अक्सर अपने पिता से ये सवाल किया करते थे कि ऐसी गेहूं का बीज लेकर नहीं आ सकते जो दोगुनी पैदावार दे। इस पर उनके पिता शंकर सिंह हंसकर कहते थे कि तूं बड्डा होके बणाइए इसा बीज। चौ. राम धन सिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने पैतृक गांव किलोई में हासिल करने के बाद उन्होंने अपनी मिडिल स्कूल की परीक्षा और मैट्रिक की परीक्षा राजकीय हाई स्कूल रोहतक से पास की। 1907 में डीएवी कॉलेज लाहौर में एडमिशन लिया और 1909 में पंजाब कृषि कॉलेज, लायलपुर (अब पाकिस्तान में फैसलाबाद) में दाखिला लिया। इस कॉलेज में उसी साल कृषि में तीन साल डिप्लोमा शुरू किया गया था। उन्होंने 1912 में पहले बैच में अपना डिप्लोमा पूरा किया।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से एमए और कृषि में डिप्लोमा

रामधन सिंह ने पटना विश्वविद्यालय से 1919 से बीएसई की पढाई की और कैम्ब्रिज इंग्लैंड में आगे की पढाई के लिए चले गए। केंब्रिज उस समय राष्ट्रमंडल देशों में सबसे प्रसिद्ध कृषि अनुसंधान केंद्र था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डॉ रामधन सिंह ने प्राकृतिक विज्ञान (ट्रिपोस) में एम.ए. की डिग्री और कृषि में डिप्लोमा भी पूरा किया। डिग्री करते ही उनके पास एक एक नौकरी के अवसर थे लेकिन डॉ रामधन सिंह को पिता की बात याद आती थी कि तूं बणा लिए इसा बीज जो दोगुनी पैदावार दे। वो अपनी मां का दिया खेस और लोई हमेशा अपने साथ रखते थे ताकि किसान के प्रति अपने फर्ज को याद रख सकें। डॉ रामधन सिंह ने सबसे पहले सर अल्बर्ट हॉवर्ड के साथ काम किया, जो जैविक खेती को बढ़ावा देने, गेहूं की कुछ नई किस्मों के चयन और प्रजनन की कोशिशों में जुटे थे। इस अवधि के दौरान उन्होंने पौधों के प्रजनन में गहरी दिलचस्पी ली क्योंकि किसान की किस्मत को बदलने का यही एक रास्ता उनको तब नजर आ रहा था। गरीब किसानों की स्थिति में सुधार के लिए फसलों की उन्नत किस्मों को विकसित करने का जैसे उनपर भूत सवार था। चौ. राम धन सिंह एक ऐसे कृषि वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपना जीवन खेतों में खपा दिया। या तो वे रिसर्च करते या फिर खेतों में अपने रिसर्च का परिणाम देखते। विदेश में पढने के बावजूद ठेठ हरियाणवी में बातें किया करते और सिर पर खंडवा भी बांधकर रखा करते। वो कहा करते थे एक किसान को खुद को कृषि वैज्ञानिक बनाना होगा और एक कृषि वैज्ञानिक को किसान बनना होगा तभी दोनों में बेहतर तालमेल बन सकता है।

गेहूं की खेती का पूरा चेहरा बदल दिया

किसान परिवार से आने वाले चौ. राम धन सिंह किसानों के बीच परंपरागत कृषि तरीका और पुरानी गरीबी के दुष्चक्र को अच्छी तरह से जानते थे। वह इस दुष्चक्र को अपने तरीके से तोड़ना चाहते थे और ये तरीका था बेहतर अनाज की गुणवत्ता वाली रोग प्रतिरोधी और अधिक उपज देने वाली फसल किस्मों का विकास। गेहूं और जौ तत्कालीन पंजाब प्रमुख फसल थी। राम धन सिंह ने 1933-34 में न केवल तत्कालीन पंजाब में बल्कि दूर-दूर तक गेहूं की किस्मों पीबी-518 और पीबी-591 के साथ गेहूं की खेती का पूरा चेहरा बदल दिया। डॉ रामधन सिंह हुड्डा द्वारा विकसित गेहूँ Pb-518 अपेक्षाकृत छोटे कद की किस्म थी, मौसम की मार सहने का जज्बा था। जबकि Pb-591 एक रोग प्रतिरोधी, अच्छी उपज और उत्कृष्ट चपाती बनाने की विशेषताओं के साथ बोल्ड चमकदार अनाज वाली फसल थी। Pb-591 अपनी मोती और गोल उपस्थिति और बेहतर गुणवत्ता के साथ हमेशा अन्य गेहूं की तुलना में ज्यादा मूल्यावान साबित हुई। इन किस्मों की वजह आजादी से पहले पंजाब में खेती का चेहरा बदल दिया, बल्कि तेजी से उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत, सिंध, तत्कालीन संयुक्त प्रांत, राजस्थान और गुजरात में के किसानों ने भी हाथों हाथ ली। कनाडा, ब्राजील, मैक्सिको, सोवियत संघ और अन्य राष्ट्रीय सीमाओं के पार भी इसकी भारी डिमांड थी।

उन्नत गेहूं के क्रॉस ब्रीडिंग की शुरुआत

चौ. राम धन सिंह पर तो जैसे उन्नत किस्मों का भूत ही सवार हो चुका था इसलिए उन्नत गेहूं के क्रॉस ब्रीडिंग की शुरुआत उन्होंने की। गेहूं की अन्य प्रसिद्ध किस्में C-217, C-228, C-250, C-253, C-273, C-281, C-285 उन्होंने विकसित की ओर कई किस्में तो सेवानिवृत्ति के बाद जारी की गईं। 1934 में गेहूं के बीजों से खरपतवार के बीजों को पूरी तरह से खत्म करने के लिए एक रोटरी स्क्रीन भी विकसित की थी जो बहुत ज्यादा लोकप्रिय और मददगार साबित हुई। डॉ. नॉर्मन ई बोरलॉग एक प्रसिद्ध गेहूं प्रजनक और CIMMYT के निदेशक थे। डॉ रामधन सिंह हुड्डा के कामों पर उनकी नजर थी और उन्होंने 1963 में IARI, नई आए थे तो सोनीपत में डॉ रामधन सिंह हुड्डा से मिलने उनके घर पर गए। विदेशी होने के बावजूद उन्होंने भारतीय परंपरा के अनुसार रामधन सिंह जी के पैर छू कर कहा कि - आपने संसार को बेहतर किस्में देकर 100 करोड़ लोगों को भूखे मरने से बचा लिया। उस समय दोनों ही महान वैज्ञानिकों की आंखों में आंसू थे। डॉ. बोरलॉग ने 1961-62 में जंग प्रतिरोधी मैक्सिकन गेहूं के साथ स्टॉकी जापानी गेहूं की किस्म नोरिन -10 को पार करने और सोनोरा-63, सोनोरा-64, लेर्मो-रोजो जैसी उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्मों को विकसित करने के माध्यम से सफलता हासिल की थी। इसके बाद नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद डॉ. बोरलॉग ने राम धन सिंह को एक विशेष सिक्का भेजा, जो मैक्सिकन गेहूं को जारी रखने के लिए दुनिया को भूख के खिलाफ लड़ाई में राम धन सिंह द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना करने के लिए भेजा गया था।

चावल की कई उन्नत किस्मों का भी विकास किया

चौधरी राम धन सिंह हुड्डा मुख्य रूप से अपने उत्कृष्ट गेहूं अनुसंधान के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उन्होंने चावल की समान रूप से उत्कृष्ट उन्नत किस्मों का भी विकास किया। बहुत कम वर्षा को देखते हुए पंजाब प्रांत पारंपरिक रूप से चावल उगाने वाला क्षेत्र नहीं था, फिर भी राज्य के मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में सिंचित परिस्थितियों में चावल उगाया जाता था। उनके द्वारा विकसित आठ नई किस्मों में से पांच बासमती-370, झोना-349, मुशकंस-7 और 41 और पालमन प्रत्यय 246 मैदानी इलाकों के लिए थे और राम जवाईं 100, फूल पात-72 और लाल ननकंद 41 पर्वतीय क्षेत्रों के लिए थे। जंगली चावल की समस्या से लड़ने के लिए आमतौर पर कांगड़ा जिले में उगाए जाने वाले बैंगनी पत्ते वाले चावल क्रॉस-ब्रीडिंग प्रयासों के परिणाम थे।बासमती-370 चावल की किस्मों में से इसकी उत्कृष्ट गुणवत्ता और सुगंध के कारण बहुत लोकप्रिय है और पश्चिमी देशों आज भी इसकी भारी मांग है। अपने समय में बासमती किस्म विकसित करके चौ. राम धन सिंह ने भारत के तत्कालीन पंजाब और पाकिस्तान को बासमती जर्मप्लाज्म का मालिक बनाया है।

दालों की किस्में भी विकसित की

रामधन सिंह ने बचपन से ही देखा था कि किसान जौ की भी रोटी खाते थे इसलिए उन्होंने जौ की उन्नत किस्में जैसे T4, T5, C138, C141 और C155 विकसित की, जो वर्षा सिंचित या सीमित सिंचाई स्थितियों और नमक प्रभावित क्षेत्रों के अनुकूल हैं। इन किस्मों ने निम्न आय वर्ग के किसानों की मदद की क्योंकि जौ का सेवन मुख्य रूप से निम्न आय वर्ग के उपभोक्ताओं द्वारा भोजन के रूप में किया जाता है। राव बहादुर चौ. राम धन सिंह ने जौ के माल्ट में प्रसंस्करण के लिए 1933 में एक योजना प्रस्तुत की। इस प्रकार चौ. राम धन सिंह ने अनाज की उन किस्मों को विकसित करने का प्रयास किया जो प्रसंस्करण के लिए कृषि-उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप हो सकते हैं ताकि किसानों के लिए अधिक रोजगार और आय के अवसर पैदा हो सकें। चौ. राम धन सिंह के शोध केवल अनाज तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उन दालों तक भी फैले हुए थे जिनकी उन दिनों आम तौर पर कम आपूर्ति होती थी। उन्होंने मूंग की दो किस्में नामतः मूंग नंबर 54 और 305 विकसित की और एक मैश किस्म नंबर 48 भी विकसित की। इस प्रकार चौ. राम धन सिंह ने इन फसलों की कई उन्नत किस्मों को विकसित करके गेहूं, जौ, चावल और दालों के सुधार में उत्कृष्ट योगदान दिया। शायद दुनिया में किसी अन्य ब्रीडर के पास इतनी किस्में नहीं हैं, जितना कि Ch. राम धन सिंह के खाते में दर्ज हैं। चौ. राम धन सिंह 1947 में सेवा से सेवानिवृत्त हो गए लेकिन अपने काम को जारी रखा। वे आठ वर्षों तक रोहतक में कई जाट शैक्षणिक संस्थानों के शासी निकायों के अध्यक्ष रहे और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत किया और उनके व्यवस्थित नियमों और विनियमों को करने का काम किया।

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के प्रबंधन बोर्ड के सदस्य रहे

वे फरवरी 1971 से मई 1974 तक हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के प्रबंधन बोर्ड के सदस्य रहे। वे विश्वविद्यालय के फार्म का दौरा किया करते थे और क्रास बनाने और वांछित सामग्री के चयन के लिए प्रजनकों के साथ बातचीत करते थे। खंडवा बांधे इस कृषि वैज्ञानिक से बातचीत करते हुए किसान भी गच्चा खा जाते थे कि ये आदमी कोई किसान नहीं बल्कि एक महान कृषि वैज्ञानिक हैं। उन्होंने हमेशा उन युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया जिन्होंने बहुत मेहनत की और कई उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित किया, जिससे फसल की पैदावार में और वृद्धि हुई। विशेष रूप से गेहूं की दो बहुत अधिक उपज देने वाली किस्मों C306 को 1965 में सीमित सिंचाई के लिए और WH147 को मध्यम उर्वरक और सिंचाई की स्थिति के लिए 1975 में विकसित किया था - जिसमें डॉ राम धन सिंह द्वारा विकसित सामग्री शामिल थी। इन दो किस्मों को देश के बड़े क्षेत्रों में विभिन्न राज्यों में उगाया गया और गेहूं उत्पादन में हरित क्रांति आई। ये किस्में अभी भी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय हैं।WH147 किस्म एक बार पाकिस्तान में 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई गई थी, जिसने पाकिस्तान में भी खाद्य उत्पादन को मजबूत किया। C306 एकमात्र देसी किस्म है जो अपने चमकीले मोटे अनाज और अच्छी चपाती बनाने की गुणवत्ता के लिए जानी जाती है जो बाजार में उच्च दर प्राप्त करती है।

पाकिस्तान ने की थी वहीं रहने की पेशकश

राव बहादुर चौ. भारत के एक महान सपूत राम धन सिंह का निधन 17 अप्रैल, 1977 को हुआ। भारत के कृषि विज्ञान और किसानों के लिए उनकी कड़ी, समर्पित और निस्वार्थ सेवा के लिए उनका नाम हमेशा याद रखा जाएगा। राव बहादुर की उपाधि उनके असाधारण शोध कार्य के लिए उन्हें प्रदान की गई थी। उन्होंने भारत और विदेशों में बहुत सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1961 में पाकिस्तान के लायलपुर कृषि कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान जब चौधरी रामधन सिंह हुड्डा से मिले तो हाथ मिलाने की बजाय उन्हें गले ले लगा लिया। डॉ अयूब ने कहा कि आप नहीं होते तो पाकिस्तान में गेहूं और चावल भी नहीं होता। राष्ट्रपति अयूब खान ने चौ. राम धन सिंह ने उनके योगदान की सराहना की और उन्हें पूरे सम्मान के साथ पाकिस्तान में रहने और कृषि विकास को आगे बढ़ाने में मदद करने की पेशकश की लेकिन चौधरी रामधन सिंह ने कहा कि अयूब साहब मैं आखिरी सांस अपनी माटी पर ही लूंगा। डॉ सी. सुब्रमण्यम, जो केंद्रीय कृषि मंत्री थे ने 5 अगस्त, 1965 को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में गेहूं पर अखिल भारतीय गेहूं अनुसंधान कार्यकर्ता संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि पीबी 591, जो तीस के दशक में विकसित हुआ था, अभी भी सबसे ज्यादा बोई जाती है और डॉ रामधन सिंह का पूरे भारत को शुक्रगुजार होना चाहिए।

रामधन सिंह को राज्यपाल बनाना चाहते भे लाल बहादुर शास्त्री

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के ओल्ड बॉयज एसोसिएशन ने उन्हें 1964 में रोल ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। भारत के सबसे शानदार गेहूं प्रजनक के रूप में उनकी सेवाओं की मान्यता में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें 23.2.1970 को आयोजित एक विशेष दीक्षांत समारोह में डॉक्टर ऑफ साइंस (मानद कारण) की उपाधि प्रदान की और लुधियाना परिसर में प्लांट ब्रीडिंग प्रयोगशाला का नाम उनके नाम पर रखा। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने चौ. राम धन सिंह ने उनके नाम पर हिसार परिसर में एक आवासीय परिसर का नाम राम धन सिंह हाउस रखा है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने भी उन्हें डी.एससी की मानद उपाधि के रूप में एक और सम्मान प्रदान किया। 7 अप्रैल 1973 को चौ. राम धन सिंह को विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और एचएयू के संस्थापक कुलपति, ए एल फ्लेचर भी उनके प्रशंसक रहे। डॉ रामधन सिंह के नाम पर एचएयू आज भी वार्षिक दीक्षांत समारोह में मास्टर ऑफ साइंस इन प्लांट ब्रीडिंग के सबसे मेधावी छात्र राव बहादुर राम धन सिंह को सालाना स्वर्ण पदक भी प्रदान करता है। 4000 एकड़ के बीज उत्पादन फार्म का नाम डॉ. राम धन सिंह बीज फार्म, सीसीएसएचएयू हिसार रखा गया है, जो विभिन्न फसल किस्मों के किसानों की बीज आवश्यकता को काफी हद तक पूरा करता है। किलोई में उनके नाम पर डॉ राम धन सिंह स्पोर्ट स्टेडियम बना हुआ है। 1965 में लाल बहादुर शास्त्री जी ने डॉ. रामधन सिंह जी को किसी भी राज्य राज्यपाल बनने के लिए कहा था लेकिन डॉक्टर रामधन सिंह ने कहा राज्यपाल बनने से ज्यादा भला मैं वैज्ञानिक के तौर पर देश के किसानों का भला कर सकता हूँ। उन्होंने जीवन भर यही किया। आप चाहते हैं कि इन महान वैज्ञानिक के बारे में हमारी युवा पीढी जानें तो इस वीडियो को शेयर कर सकते हैं। यही उन महान व्यक्ति के प्रति हमारी श्रद्धांजलि होगी।

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