पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव : दो दशक से जिला प्रमुख का ताज पहनाने की पावर रखने वाले केंद्रीय मंत्री राव का इस बार...

नरेन्द्र वत्स : रेवाड़ी
लगभग दो दशक से जिला प्रमुख का ताज पहनाने वाली पावर हमेशा अपने हाथ में रखने वाले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के लिए इस बार पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में राजनीतक परिस्थितियां बदली हुई हैं। राव समर्थित प्रत्याशियों में से अधिकांश को मात देने के लिए तीन तरफा किलेबंदी ने अपना काम करना शुरू कर दिया है। राव समर्थित कई प्रत्याशी दूसरी बार जिला परिषद के चुनाव मैदान में हैं, परंतु जिला परिषद का इतिहास बता रहा है कि अभी तक किसी भी पार्षद को लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने का मौका नहीं मिला है।
राव समर्थित प्रत्याशियों को मात देने के लिए एक ओर जहां भाजपा में ही राव का विरोधी खेमा पूरी तरह एक्टिव हो चुका है, तो दूसरी ओर कई वार्डों में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने अपने समर्थित प्रत्याशियों को जिताने के लिए दांव खेल दिया है। अभी तक राव का खुलकर साथ निभाने वाले कुछ भाजपा नेता भी राव की बजाय अपने समर्थित प्रत्याशियों को पार्षद बनाने के लिए अंदरखाने राव के चहेतों को जमीन चटाने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं। हालांकि राव ने अभी तक किसी भी प्रत्याशी को खुलकर अपना समर्थन नहीं दिया है, परंतु ऐसा माना जा रहा है कि अपने सलाहकारों से खास प्रत्याशियों के बारे में निरंतर फीडबैक ले रहे हैं।
वार्ड नं. 11 से अजय पटौदा को राव समर्थित सबसे मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा था। उनके सामने पूर्व कैप्टन अजय सिंह यादव के खास मनीराम भी काफी मजबूत स्थिति में माने जा रहे हैं। जिला परिषद के पिछले चुनावों में मनीराम को अजय पटौदा ने मात तो दी थी, लेकिन जीत का अंतर काफी कम रहा था। इस वार्ड में अजय ने चुनावों की घोषणा के बाद से ही चुनाव प्रचार तेज किया हुआ था, परंतु राव के एक इशारे पर उन्हें अपना नामांकन वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ गया। अजय पटौदा को राजबीर के पक्ष में नाम वापस लेने के लिए तैयार किया गया। इसके बाद अजय समर्थकों में नाराजगी देखने को मिल रही है, जो राजबीर की 'चुनावी सेहत' के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
राव के हाथ रही जिला प्रमुख की चाबी
वर्ष 1995 के जिला परिषद के चुनावों में राव इंद्रजीत सिंह ने डा. शुभ्रा यादव को चेयरमैन बनाया था। इसके बाद वर्ष 2000 के चुनावों में इनेलो की क्षेत्र में मजबूत पकड़ के चलते उस समय चौ. ओमप्रकाश चौटाला के खास रहे प्रवीण चौधरी के सिर पर जिला प्रमुख का ताज सजा था। इसके बाद सभी चुनावों में जिला प्रमुख वहीं बना, जिसके सिर पर राव इंद्रजीत सिंह का हाथ रहा। राव की रणनीति के कारण दो जिला प्रमुखों को अपने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद गंवाना भी पड़ा था। पार्षदों का बहुमत साथ होने के कारण जिला प्रमुख बनाने में राव का पलड़ा विरोधियों की तुलना में लगातार भारी रहा। जिला प्रमुख बनाने में राव का एकछत्र आधिपत्य होने के कारण दूसरे दलों या नेताओं ने ज्यादा हस्तक्षेप भी नहीं किया था। बदली हुई परिस्थितियों में यह बाजी इस बार राव के हाथ से निकलती हुई साफ नजर आ रही है।
नहीं बना कोई भी दूसरी बार पार्षद
जिला परिषद का अतीत इस बात का साक्षी है कि अभी तक जिले में किसी भी पार्षद को अपने वार्ड से लगातार दूसरी बार जीतने का मौका नहीं मिला है। राव के कई निवर्तमान पार्षद मैदान में हैं। इनमें से विक्रम पांडे की पत्नी सुमन देवी को इस बाद नई प्रत्याशियों का सामना करना पड़ रहा है। निवर्तमान जिला प्रमुख शशिबाला अपने काम के दम पर वार्ड में मजबूत स्थिति में नजर आ रही हैं। निवर्तमान उप जिला प्रमुख जगफूल यादव भी वार्ड में कराए गए विकासकार्यों के दम पर लोगों के बीच एक बार फिर से मौजूद हैं। इसी तरह मुकेश जाहिदपुर अपने वार्ड में अच्छी पकड़ बनाए हुए हैं। महिलाओं के लिए आरक्षित होने के कारण वह अपनी भाभी नीलम को चुनाव लड़वा रहे हैं। वार्ड नं. 6 से राव के खास अनिल यादव की राह इस बार निवर्तमान पार्षद अमित यादव ने मुश्किल बना दी है। अमित ने वार्ड नं. 5 आरक्षित होने के बाद नए वार्ड से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।
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