म्यांमार में सैन्य तख्तापलट से पानीपत टेक्सटाइल उद्योग को झटका, करोड़ों रुपये फसे

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट से पानीपत टेक्सटाइल उद्योग को झटका, करोड़ों रुपये फसे
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म्यांमार (बर्मा) में सर्वोच्च नेता आंग सान सू की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रासी की सरकार को वहां की सेना ने पलटते हुए देश का राजताज अपने हाथों में ले लिया है।

विकास चौधरी : पानीपत

कहते हैं बुरा वक्ता घर की कुंडी खटखटा कर नहीं आता, अचानक आता है और व्यवस्था को हिला देता है। विश्वविख्यात पानीपत टेक्सटाइल उद्योग जहां वैश्वीक कोराना माहमारी से जूझ रहा है, वहीं सर्दी के मौसम से भी दो चार हो रहा है, ऐसे में पड़ोसी देश म्यांमार (बर्मा) में सर्वोच्च नेता आंग सान सू की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रासी की सरकार को वहां की सेना ने पलटते हुए देश का राजताज अपने हाथों में ले लिया, जबकि देश में एक साल के लिए आपातकाल लागू कर दिया। म्यांमार में तख्ता पलट होने से पानीपत के उन टेक्सटाइल एक्सपोर्टरों को कड़ा झटका लगा है जिन्होंने म्यांमार में अपने टेक्सटाइल उत्पादों का निर्यात कर रखा है और आयातकों के पर भुगतान बकाया है। अनुमान है कि म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट से पानीपत के टेक्सटाइल एक्सपोर्टरों पर वहां के इंपोटरों के पास 100 करोड़ रूपये का भुगतान फंस गया है और बकाया रकम मिलने में लंबा समय लग सकता है और यह भी संभव है कि भुगतान ना भी मिले।

भारत का हिस्सा था म्यांमार

म्यांमार का पुराना नाम बर्मा था और सन् 1937 तक यह देश भारत का हिस्सा था। सन् 1857 में लडे गए देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाले भारत के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर को और फिर भारत को आजादी मेरा जन्म सिद्ध अधिकारी है और इसे मैं लेकर रहूंगा का नारा देने वाले बाल गंगा तिलक को भी अंग्रेजी हुकूमत ने बर्मा में कैद रखा था। बादशाह जफर रंगून (यंगून) की जेल में और स्वतंत्रता सेनानी तिलक को मांडले शहरों की जिलों में बंद रखा गया था। वहीं जफर व तिकल के अलावा हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजी हुकूमत ने बर्मा की जेलों में बंद रखा था। वर्तमान में भारत का अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड की सीमा म्यांमार से मिली हुई।

असुरक्षित देशों की श्रेणी में आया म्यांमार

म्यांमार की सीमा भले ही भारत के चार राज्यों से लगती हो, पर दोनों देशों के बीच वैध तरीके से व्यापारिक रिश्ते विशेषकर टेक्सटाइल का कारोबार नहीं के बराबर था। इसका मुख्य कारण म्यांमार में लंबे समय तक सैन्य शासन होना रहा। स्मरणीय है कि जिन मुल्कों मंे सैन्य शासन होता है उन्हें कारोबार के लिहाज से असुरक्षित माना जाता है, म्यांमार के साथ पानीपत से टेक्सटाइल उत्पादों का व्यापार वहां की सर्वोंच्च नेता आंग सान सू के सत्ता में आने के साथ 2012 में शुरू हुआ था, जैसे जैसे म्यांमार में प्रजातांत्रिक सरकार का कार्यकाल बढा, वहीं पानीपत से म्यांमार के बीच टेक्सटाइल उत्पादों का निर्यात भी बढा। हालांकि सैन्य सरकारों के दौरान म्यांमार में चीन से टेक्सटाइल उत्पादों का कारोबार होता था।

पानीपत के एक्सपोर्टरों के 100 करोड़ रुपये फसे

पानीपत के टेक्सटाइल उद्योग व म्यांमार के बीच रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे थे। पर्यटन देश होने के चलते म्यांमार में पानीपत से टेक्सटाइल उत्पादों की मांग दिन प्रति दिन बढती जा रही थी, अनुमान है कि म्यांमार के साथ पानीपत टेक्सटाइल उद्योग का कारोबार करीब डेढ सौ करोड रूपये तक पहुंच गया था। माल का अधिकतर आवागमन सडक मार्ग से होता था। गौरतलब है म्यांमार बौद्ध धर्म बाहुल है और प्रकृति के मनोहर दृश्यों, मंदिरों आदि के लिए प्रसिद्ध म्यांमार में दुनिया भर से पर्यटक जाते है। इसके चलते वहां का होटल उद्योग काफी मजबूत है, जिस में कंबल, रजाई, दरी, कारपेट, फुटमेट, कमरे, हॉल आदि की सजावट के लिए पर्द, सोफे का कपडा, कुशन कवर, बैड रनर, बैडशीट, बैड कवर आदि का निर्यात पानीपत से होता था। इंडियन एक्सपोर्टर कौंसिल के मैंबर व प्रसिद्ध टेक्सटाइल एक्सपोर्टर विनोद धमीजा ने बताया कि म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट होने से पानीपत टेक्सटाइल उद्योग को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान होने की आशंका है, म्यांमार में एक साल का आपातकाल लगाया गया है, ऐसे में निर्यात किए गए टेक्सटाइल उत्पादों का बकाया भुगतान प्रभावित हो सकता है।

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