ओमप्रकाश चौटाला के चुनाव लड़ने की राह में नया रोड़ा, चुनाव आयोग में हस्तक्षेप याचिका दायर

चंडीगढ़। जूनियर बेसिक ट्रेनिंग ( जेबीटी ) टीचर भर्ती घोटाले में सजा पूरी कर चुके हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के चुनाव लड़ने के मामले में नया मोड़ आ गया है। चंडीगढ़ के शिक्षाविद देवेन्द्र बल्हारा ने हाईकोर्ट के 5 वकीलों के माध्यम से चुनाव आयोग के सामने हस्तक्षेप याचिका दायर की है। हाईकोर्ट के वकीलों की टीम: प्रदीप रापडिया, हरद्रिं पाल सिंह, संजीव तक्षक, प्रवीण कुमार व संजीव गोदारा के माध्यम से दायर की गई याचिका में मीडिया में छपी ख़बरों का हवाला देते हुए कहा है कि ओमप्रकाश चौटाला के चुनाव लड़ने की ख़बरें सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी हैं, जिनमें दावा किया गया है कि याचिका दायर करने पर चुनाव आयोग चुनाव न लड़ पाने की अवधि को कम कर सकता है या उनको चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध को पूरी तरह खत्म कर सकता है।
लोक प्रतिनिधत्वि कानून 1951 की धारा 8(1) के अनुसार, रिहाई से 6 साल की अवधि तक यानी जून 2027 तक ओपी चौटाला चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन, चौटाला के पास उक्त कानून की धारा-11 के तहत अपनी 6 वर्ष की अयोग्यता अवधि को कम करने या खत्म करने के लिए भारतीय चुनाव आयोग के पास अर्जी दायर करने का विकल्प है। इसके लिए 3 सदस्यीय चुनाव आयोग कानूनन सक्षम है। ऐसे में 5 वकीलों ने अपनी याचिका में कहा है कि अगर ओमप्रकाश चौटाला के तरफ से ऐसी कोई याचिका दायर होती है तो हरियाणा का निवासी होने के नाते व राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए उनके मुवक्किल को भी सुनवाई का मौका दिया जाए।
याचिका में सोशल मीडिया पर अफवाहों के गर्म बाज़ार का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि लोगों में इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के चुनाव लड़ने के मामले में लोगों में कई तरह के भ्रम फैले हुए हैं जो चुनाव आयोग की निष्पक्षता, राजनीति के अपराधीकरण और नए राजनितिक समीकरणों पर पर गंभीर सवाल उठाते हैं। हालांकि याचिकर्ता के वकीलों ने याचिका में कहा है कि उन्हें चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर पूर्ण विश्वास है, इसलिए वो भी मामले में चुनाव आयोग के सामने अपना पक्ष रखना चाहते हैं । राजनीति के अपराधीकरण का अर्थ राजनीति में आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों और अपराधियों की बढ़ती भागीदारी से है। सामान्य अर्थों में यह शब्द आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का राजनेता और प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने का घोतक है। दरअसल, जनप्रतिनिधत्वि कानून में प्रावधान है कि सजा पूरी करने के बाद छह वर्ष तक संबंधित व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य रहेगा। यह प्रावधान भ्रष्टाचार निरोधक कानून, आतंकवाद निरोधक कानून और सती निरोधक कानून के तहत सजायाफ्ता व्यक्तियों पर भी लागू होता है।
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