श्राद्ध आज से 6 अक्टूबर तक : पितृ पक्ष में भूलकर भी न करें यह काम, जाने पितरों के तर्पण और पिंडदान का तरीका

हरिभूमि न्यूज : सोनीपत
भाद्रपद माह की पूर्णिमा यानी सोमवार से शुरू होने वाले पितृपक्ष ( Pitru Paksha ) 6 अक्टूबर को अश्विनी माह की अमावस्या तक रहेंगे। पूर्णिमा का श्राद्ध ( Shradh ) पहला और अमावस्या का श्राद्ध अंतिम होता है। अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक तर्पण, श्राद्ध देने का पर्व व समय काल ही पितृपक्ष कहलाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि पर पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध मनाया जाता है। जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि याद ना रहे, अमावस्या के दिन उसका श्राद्ध करने का विधान होता है।
मॉडल टाऊन स्थित श्री नवदुर्गा मंदिर के पुजारी पंडित रामकृष्ण पाठक ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मण, भांजा, गुरु व नाती को भोजना कराना शुभ माना गया है। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन व कलह से दूर रहना चाहिए। पितृपक्ष में हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए। श्राद्धपक्ष में सही तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है। पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें।
पंडित रामकृष्ण पाठक बताते हैं कि हिदू धर्म अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने हिस्से का भाग किसी ना किसी रूप में ग्रहण करते हैं। सभी पितर इस समय अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं। भोजन में जो भी खिलाया जाता है, वह पितरों तक पहुंच ही जाता है। अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की शांति एवं मोक्ष के लिए किया जाने वाला दान एवं कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। जिसने हमें जीवन दिया उसके लिए, जिसने हमें जीवन देने वाले को जीवन दिया, उसके लिए तथा जो हमारे कुल एवं वंश का है। इस प्रकार तीन पीढ़ियों तक के लिए किया जाने वाला यज्ञ, पिंडदान तथा तर्पण ही श्राद्धकर्म कहलाता है।
पितरों को मिलती है शांति
पंडित रामकृष्ण पाठक कहते हैं कि विधि-विधान से जो कर्म तिल, जौ, कुशा व मंत्रों द्वारा श्रद्धापूर्वक किया जाए, वही श्राद्ध कहलाता है। धार्मिक मान्यता अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों के नाम पर तर्पण व पिंडदान देने से पितरों को शांति मिलती है और वह जातक को सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन ब्राह्मण व पंडितों को श्रद्धापूर्वक भोजन, मिष्ठान्न, वस्त्रादि का दान दक्षिणा सहित देना चाहिए।
किस दिन किसका श्राद्ध करें
प्रतिपदा : इस तिथि को नाना-नानी का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
पंचमी : जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
नवमी : सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
एकादशी व द्वादशी : एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
चतुर्दशी : इस तिथि में शस्त्र, आत्महत्या, विष और दुर्घटना यानी जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है। जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या : पितृपक्ष की तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।
यह हैं श्राद्ध की तिथियां
20 सितंबर पूर्णिमा का श्राद्ध
21 सितंबर प्रतिपदा का श्राद्ध
22 सितंबर द्वितीया का श्राद्ध
23 सितंबर तृतीया का श्राद्ध
24 सितंबर चतुर्थी का श्राद्ध
25 सितंबर पंचमी का श्राद्ध
26 सितंबर चंद्र षष्ठी व्रत
27 सितंबर षष्ठी का श्राद्ध
28 सितंबर सप्तमी का श्राद्ध
29 सितंबर अष्टमी का श्राद्ध
30 सितंबर नवमी एवं सौभाग्यवतियों का श्राद्ध
01 अक्टूबर दशमी का श्राद्ध
02 अक्टूबर एकादशी का श्राद्ध
03 अक्टूबर द्वादशी एवं संन्यासियों का श्राद्ध
04 अक्टूबर त्रयोदशी श्राद्ध
05 अक्टूबर चतुर्दशी का श्राद्ध (इस दिन शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतक का श्राद्ध होता है, चाहे उनकी मृत्यु किसी अन्य तिथि में हुई हो)।
06 अक्टूबर अमावस का श्राद्ध, अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, सर्वपितृ श्राद्ध।
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