सफाई के नाम पर घोटाले की आशंका : मि‍ट‍्टी से ज्यादा सरकार के खजाने काे साफ कर रही 76 लाख की मशीन

सफाई के नाम पर घोटाले की आशंका : मि‍ट‍्टी से ज्यादा सरकार के खजाने काे साफ कर रही 76 लाख की मशीन
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प्रदेश के निगमों में इन दिनों डिवाइडर के किनारों से मिट्टी निकालने के लिए सफाई मशीनें काम कर रही हैं। लेकिन इनकी कीमत और सारे खर्चों से ऐसा लगता है की है सड़कों की सफाई कम और सरकार के खजाने की सफाई ज्यादा कर रही हैं।

हरिभूमि न्यूज : करनाल

प्रदेश के निगमों में इन दिनों डिवाइडर के किनारों से मिट्टी निकालने के लिए सफाई मशीनें काम कर रही हैं। लेकिन इनकी कीमत और इनके सारी खर्चों से ऐसा लगता है की है सड़कों की सफाई कम और सरकार के खजाने की सफाई ज्यादा कर रही हैं। इससे प्रदेश मैं अरबों रुपए के घोटाले की आशंका जाहिर की जा रही है इसका खुलासा करनाल मैं लगाई गई एक आरटीआई के जरिए हुआ है लेकिन हैरत की बात है कि आरटीआई में खर्चों की जानकारी तो सही दी गई है लेकिन उसे घुमा कर बताया गया है जिससे अफसरों की नियत पर संदेह होना लाजमी है। आपको मोटी मोटी जानकारी यह दे दे कि इस सफाई मशीन की कीमत 76 लाख रुपए है और इसका सालाना खर्च साढ़े 56 लाख है।

क्या है इन मशीनों की सच्चाई

आइए अब आपको बताते हैं सिलसिलेवार कि यह मशीन कैसे खरीदी गई और कंपनी को रखरखाव के लिए क्या टेंडर दिया गया कितनी सफाई करती है और कितना इस पर खर्च होता है। जी हां प्रदेश सरकार ने निगमों के लिए 44 मशीनें खरीदी थी एक मशीन की कीमत 76 लाख रुपए है। मशीन की कंपनी को ही 4 लाख 70 हजार रुपये प्रतिमाह रखरखाव का ठेका दे दिया गया। जिसमें चलाने वालों की तनख्वाह भी शामिल है अनुबंध के अनुसार डीजल का खर्चा निगम वहन करता है। एक मशीन 1 साल में 27 लाख रुपये का डीजल पी जाती है ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है किस साल में छप्पन लाख रुपये रखरखाव और 27 लाख रुपये डीजल का खर्च मशीन पर किया जा रहा है जबकि उसकी कीमत 76 लाख रुपये है।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन मशीनों पर किया जा रहा है या खर्चा सरकारी खजाने को साफ करने के लिए काफी है। इतना ही नहीं यह अनुबंध 5 साल के लिए किया गया है। जिसके अनुसार एक मशीन पर 130 करोड़ रुपये रखरखाव के लिए खर्च किया जाएगा। जबकि मशीन की हकीकत यह है यह अच्छे से डिवाइडर किनारे फसी मिट्टी की सफाई नहीं कर सकती तो ऐसी मशीन की जरूरत ही क्या है या या इस खेल में बड़े घोटाले की आशंका है जो की जांच का विषय है।

आरटीआई में यह दी जानकारी

इस संबंध में करनाल में आरटीआई लगाने वाले एडवोकेट राजेश शर्मा को निगम की ओर से यह जानकारी दी गई इस मशीन का 470000 रुपये किराया दिया जाता है। जब पड़ताल की गई तो सामने आया कि यह मशीन अर्बन बॉडी के निदेशक के नाम रजिस्टर्ड है तो आखिर किराया किस बात का दिया जा रहा है यह बड़ा सवाल है।

निष्पक्ष जांच कराई जाए

आरटीआई लगाने वाले एडवोकेट राजेश शर्मा का कहना है एक मशीन पर कितना खर्च समझ से परे है इसमें कहीं ना कहीं घोटाले की आशंका है करोड़ों रुपए सरकार का बर्बाद किया जा रहा है इसलिए इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

सरकार की तरफ से खरीदी गई

यह मशीन सरकार की तरफ से खरीदी गई थी और इसके रखरखाव का खर्च का जो टेंडर है वह चंडीगढ़ से ही लगाया गया था लो लोकल लेवल पर कंपनी की ओर से कोई अनुबंध नहीं किया गया। -रेनू बाला गुप्ता, मेयर करनाल

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