बिना एसएलसी के दाखिला देने से बच रहे निजी स्कूल संचालक

योगेंद्र शर्मा. चंडीगढ़
हरियाणा के सरकारी स्कूलों में बिना एसएलसी के दाखिला देने के झंझट और इसके साइड इफेक्ट को देखते हुए स्कूल मुखिया दाखिला देने से बच रहे हैं। इस पूरे मामले में बिना एसएलसी( स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट) विवाद को लेकर निजी स्कूल संचालकों ने कानूनी नोटिस देकर हरियाणा स्कूल शिक्षा विभाग अफसरों से जवाब मांगा है। साथ ही पूरे मामले में पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट की शरण ली है।
भरोसेमंद उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि हरियाणा शिक्षा विभाग के पंचकूला शिक्षा निदेशालय की ओर से बिना स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट के दाखिला देने के मौखिक आदेश प्रदेश के सभी जिलों में जिला शिक्षा अधिकारियों को दिए गए थे। लेकिन अधिकांश स्कूलों में स्कूल के प्रिंसिपल और मुख्य अध्यापक इसके साइड इफेक्ट व लीगल पचड़े को देखते हुए हाथ पीछे खींच रहे हैं। बिना एसएलसी प्रवेश देने के पीछे सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाना उद्देश्य है। लेकिन इसमें कई प्रकार की तकनीकी दिक्कतें भी हैं। दाखिला लेने वाले बच्चे और उसके अभिभावकों को देर सवेर एसएलसी जमा करना ही होगा। निजी स्कूलों में भारी-भरकम फीस और कोविड-19 चुनौती में वित्तीय संकट में जूझ रहे अभिभावकों ने इस बार सरकारी स्कूलों पर रुख किया है। विभाग के अफसरों को उम्मीद है कि इस बार अच्छे खासे दाखिले होंगे। लेकिन निजी स्कूल संचालकों ने पूरे मामले में मोर्चा खोलते हुए सरकारी स्कूलों में इस प्रकार से दाखिला देने की प्रक्रिया को पूरी तरह से अनैतिक बताया है।
पहली से आठवीं और नौवीं से 12वीं के विद्यार्थी लेते दाखिला
इस बार शिक्षा विभाग के अफसरों को अच्छी-खासी तादाद में दाखिले मिलने की उम्मीद है। वैसे भी हर साल पहली से लेकर आठवीं तक और 11वीं से लेकर 12वीं तक विद्यार्थी दाखिला लेने के लिए सरकारी स्कूलों में आते हैं। पहली कक्षा को छोड़ने तो उसके बाद हर क्लास में स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। अगर कोई दूसरा स्कूल बच्चे को रिलीव नहीं करें, तो बिना एसएलसी के दाखिल देने वाले स्कूल संचालकों को दिक्कत होना तय है। हरियाणा प्रदेश में 14 हजार से ऊपर सरकारी स्कूल है लेकिन इस बार उम्मीद से कम बच्चे सरकारी स्कूलों में आ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अकेले पंचकूला जिले पर नजर डालें तो 20 से ज्यादा सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए कोई भी बच्चा नहीं आया।
कोविड की तीसरी लहर और बच्चों में संक्रमण भी डर का कारण
सरकारी स्कूलों में छोटे बच्चों के दाखिले की संख्या इस बार काफी कम दिखाई दे रही है। इसके पीछे शिक्षा क्षेत्र में कई दशकों से काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों में अभी तक भी पढ़ाई का माहौल नहीं है। निजी स्कूल हो या फिर सरकारी सभी में ऑनलाइन क्लास चल रही हैं । ऊपर से दूसरी लहर समाप्त नहीं हुई है, तीसरी लहर की आशंका स्वास्थ्य विशेषज्ञों और कई मेडिकल कॉलेजों की तरफ से जाहिर कर दी गई है। इस बार बच्चों में संक्रमण के संकेत के बाद अभिभावक किसी भी प्रकार का सिरदर्द लेने को तैयार नहीं है। शिक्षा जगत में काम करने वाले अनुभवी लोगों में सुरेंद्र शर्मा, करण सिंह, कादियान, ओम प्रकाश, आभा शर्मा वेद प्रकाश, सतबीर शर्मा का कहना है कि कोविड-19 के कारण अभिभावकों में दहशत का माहौल है और वह किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहते।
सरकार की नीति भी बनी गले की फांस
हरियाणा शिक्षा विभाग की नीति में 5 साल से कम बच्चे का दाखिला नहीं किया जा सकता। भले ही बच्चा एक या दो माह कम क्यों ना हो? इसके विपरीत निजी स्कूलों ने नर्सरी केजी, एलकेजी जैसी क्लास की व्यवस्था की है। जिसके कारण वे किसी भी उम्र के बच्चे को दाखिला दे देते हैं और निजी स्कूलों में दाखिले के बाद अभिभावक बच्चों को वहीं पढ़ाना पसंद करते हैं। ऐसे में हरियाणा शिक्षा विभाग के अनुभवी लोगों और शिक्षकों ने प्रदेश के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर को सुझाव भेजकर सरकारी स्कूलों में नर्सरी की व्यवस्था करने की अपील की है। या फिर 5 साल से कम उम्र वाले बच्चों को दाखिले के लिए पॉलिसी में बदलाव का सुझाव दिया है, कई बार एक या दो माह बच्चा छोटा होने की स्थिति में दाखिला नहीं हो पाता और अभिभावक परेशान होकर निजी स्कूलों की नर्सरी में दाखिला करा देते हैं। सरकारी स्कूल में नर्सरी केजी एलकेजी होने की स्थिति में बच्चों की संख्या में जबरदस्त उछाल आएगा।
शिक्षा मंत्री के सामने रखी पूरी बात
हरियाणा के निजी स्कूल एसोसिएशन के नेता कुलभूषण शर्मा और उनके साथियों का कहना है कि हमने निजी स्कूल संचालकों की मजबूरी और बिना एसएलसी के दाखिला देने के मामले में हरियाणा के शिक्षा मंत्री और अफसरों के सामने अपना पक्ष रखा था। कोरोना की चुनौती वह पहली दूसरी लहर के कारण प्राइवेट स्कूल संचालक बेहद संकट के समय में है, जब सरकारी अफसरो सुनवाई नहीं की गई तो मजबूर होकर कानून की मदद लेनी पड़ रही है। इनका कहना है कि कई अभिभावक उनका बिना भुगतान किए सरकारी स्कूलों में दाखिला कराने जा रहे हैं, यह गलत परंपरा है।
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