झोलाछाप डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाइयों को बना रहे हथियार, मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर मंडराया संकट

- हाई डोज वाली एंटीबायोटिक दवाइयाें से लीवर और किडनी को सर्वाधिक खतरा
- एम्स ने अंधाधुंध ब्रिकी पर रोक लगाने की दी हिदायत, स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली सुस्त
Mahendragarh-Narnaul News : यदि आप गांव के झोलाछाप डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं तो रुक जाइए। पहले जांच कर लें कि टेबलेट या इंजेक्शन एंटीबोयाटिक तो नहीं है। क्योंकि इस दवाई से तत्काल राहत मिल जाएगी, लेकिन मरीज के शरीर में स्वास्थ्य रक्षक बैक्टिरिया नष्ट हो सकते हैं। जिनकी अन्य दवाईयों से रिकवरी करना संभव नहीं हो पाएगा। एम्स की रिसर्च रिपोर्ट में यहीं खुलासा हुआ है। इसके बाद अलर्ट हुए स्वास्थ्य विभाग को क्लीनिक व मेडिकल स्टारों पर औचक निरीक्षण करके एंटीबायोटिक दवाईयों पर अंकुश लगाने के निर्देश दिए गए हैं। इस बीच स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यशैली के चलते स्थिति गंभीर बनी हुई है।
आपको बता दें कि ग्रामीणों की सुविधा के लिए गांवों में स्वास्थ्य केंद्र खोल दिए गए। अधिकतर केंद्रों में कर्मचारी, संसाधन व अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। संबंधित रूटों पर रोडवेज बसें नहीं चलती। अवैध वाहनों में मरीजों को सीट नहीं मिल पाती। ऐसे में अधिकतर मरीज घर की चारपाई पर ही इलाज कराना उचित समझते हैं। उनकी डिमांड पर गांवों में झोलाछाप डॉक्टर पनप रहे हैं। सूत्रों की मानें ज्यादातर झोलाछाप डॉक्टरों ने स्टॉफ नर्स का डिप्लोमा कर रखा है। जो चिकित्सक के निर्देशानुसार इंजेक्शन या मरहम पट्टी कर सकते हैं लेकिन मौके की नजाकत देखकर उन्होंने विशेषज्ञ चिकित्सक की ड्यूटी करनी शुरू कर दी। उनके बैग में 100-150 टेबलेटों का बंडल तथा इंजेक्शन मिलेंगे। सुबह-शाम मौहल्ले में घूमते रहते हैं। बुखार, खांसी, जुकाम व अन्य बीमारी होने पर मरीज तुरंत इन्ही डॉक्टरों से संपर्क करता है। जोकि एंटीबायोटिक व दर्द नाशक दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं। एंटीबायोटिक से मरीज को तत्परता पूर्वक राहत मिल जाएगी। जिससे संतुष्ट ग्रामीण डॉक्टर की तारीफ करते नहीं थकते। रिश्तेदार या परिचित को भी इसी डॉक्टर से इलाज कराने की सलाह देते हैं। एम्स की रिसर्च के अनुसार बार-बार एंटीबायोटिक टेबलेट खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो जाएगी। धीरे-धीरे शरीर हैवी डोज की डिमांड करने लगेगा। जिसके आभाव में पीडि़त को राहत मिलना संभव नहीं। समाधान को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने एंटीबायोटिक टेबलेटों पर रोक लगाने की योजना बनाई है। निजी क्लीनिक, मेडिकलों स्टारों का औचक निरीक्षण तथा संतुलित दवाइयों के इस्तेमाल की हिदायत दी जाएगी।
हानिकारक कीटाणुओं का खात्मा करते हैं बैक्टीरिया
चिकित्सकों के मुताबिक शरीर में दो प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। एक बैक्टीरिया पाचन, शूगर व अन्य स्वास्थ्य प्रक्रिया को सुचारू रखेगा। दूसरे जीवाणु बीमारियों से संबंधित होते हैं, जिनका खात्मा दवाई की सीमित व उचित डोज से संभव है। एंटीबायोटिक टेबलेट सभी बैक्टीरिया पर अटैक करेगी, जिससे शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत (श्वेत रक्त कणिकाएं) कमजोर होती हैं।
मरीज पर अन्य दवाई नहीं करती असर
विभाग के अनुसार एंटीबायोटिक दवाई की रेंज निर्धारित होती है। बहुत अधिक जरूरत होने पर कम डोज की एंटीबायोटिक इस्तेमाल करने के निर्देश हैं। लेकिन झोलाछाप या अनट्रैंड डॉक्टर शुरू में ही हाई डोज खुराक देते हैं। पांच-छह साल के बाद मरीज को हाई डोज खुराक से भी राहत मिलनी बंद हो जाएगी। उनके शरीर पर अन्य दवाइयां असर नहीं करती, ऐसे में पीडि़त को पीड़ा दायक जानलेवा खतरा रहता है।
ग्रामीण मरीजों की स्थिति खराब
एम्स दिल्ली की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण मरीज एंटीबायोटिक टेबलेट अधिक खाते हैं। जुकाम या दर्द होने पर मोनोसेफ व डेक्सा इंजेक्शन लेते हैं। जिनमें खतरनाक सॉल्ट होने के कारण नाजुक स्थिति होने लगी है। इसलिए स्वास्थ्य विभाग ने झोलाछाप डॉक्टरों की धरपकड़ करने की योजना बनाई है।
एंटीबायोटिक दवाइयां सर्वाधिक घात्तक, जितना संभव हो बचें
नांगल चौधरी सीएचसी केएसएमओ डा. धर्मेश कुमार सैनी ने बताया कि एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल घातक साबित हो रहा है। अत्याधिक संक्रमण होने की स्थिति में विशेषज्ञ चिकित्सक के परामर्श से इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन मेडिकल स्टोर व कुछ निजी क्लीनिकों पर धड़ल्ले से मरीजों को दी जाती हैं, जिससे उनके शरीर की रिकवर पावर कमजोर होती है। ड्रग कंट्रोलर को औचक छापेमारी करके कार्रवाई करने की हिदायत है।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS