रेलवे भूमि पर कब्जा, नए प्रोजेक्ट नहीं पकड़ पा रहे रफ्तार

ओ.पी. पाल : रोहतक
प्रदेश में शायद आमजनों ने रेलवे की संपत्ति को बाबा का माल समझ रखा है। जहां तहां अवैध कब्जे करके रेल महकमें की जमीन को दबाया जा रहा है। यहां तक कि बहुत से जिलों में अवैध कब्जा करने का तरीका भी नाजायज है, जिसमें पहले मंदिर, मजार बनावाकर उसे आस्था का केंद्र बनाया जाता है और फिर उसे पक्का निर्माण करके जमीन हथिया ली जाती है। यहां तक कि रेलवे अधिकारी चाहकर भी अवैध कब्जों को हटवाने में बेबस हैं।
कई जगह तो ऐसा भी देखने को मिल रहा है कि लोगों ने रेलवे प्लेट फार्म व रेलवे लाइन के पास ही पक्का निर्माण कर लिया है। ऐसा रोकने में लाख कोशिशों के बावजूद महकमा लाचार ही नजर आ रहा है। हरियाणा में कुल 163 रेलवे स्टेशन हैं, जिनमें 114 उत्तर रेलवे और 49 उत्तर पश्चिम रेलवे जोन के अंतर्गत हैं। प्रदेश में दस जंक्शन रेलवे स्टेशनों के अलावा 19 सब कैटेगिरी के रेलवे स्टेशन शामिल हैं। ऐसा भी नहीं है कि केंद्र सरकार रेल बजट में हरियाणा के रेलवे विकास के लिए परियोजनाएं नहीं देती। प्रदेश में ऐसी कई बड़ी परियोजनाएं प्रदेश में चल रही है, लेकिन अधिकांश जगह रेलवे की भूमि पर अवैध कब्जों के कारण परियोजनाएं भी अधूरी रह जाती है। जबकि भारतीय रेलवे ने रेलवे की आर्थिक सेहत सुधारने की दिशा में देशभर में रेलवे स्टेशनों के पास और रेलवे लाइनों के दोनों और रेलवे की खाली पड़ी भूमि का इस्तेमाल वाणिज्यक यानि व्यवसायिक के रूप में करने का फैसला किया था। लेकिन देशभर में रेलवे की खाली पड़ी ज्यादातर जमीन पर अवैध कब्जे हैं।
रेलवे अधिकारी बेबस
रेलवे की जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त कराना रेलवे के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से महकमें को हरियाणा में भी झेलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि प्रदेश में रेलवे के विस्तार की परियोजनोओं को पूरा करने के लिए दो साल पहले ही हरियाणा सरकार और रेलवे मंत्रालय के संयुक्त उद्यम के रूप में हरियाणा रेल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड का गठन किया गया था, जो प्रदेश में रेलवे सुविधाओं के विकास और रेल सुविधा विस्तार को कार्यान्वित कर रहा है।
ट्रैक के साथ- साथ बनाए धार्मिक स्थल
प्रदेश में रेलवे की जमीनों पर करीब हर जिले में कई जगह अवैध अतिक्रमण है, लेकिन यह देखने में आया है कि रेलवे लाइन के किनारे सबसे ज्यादा जमीन पर कब्जा किया हुआ है। कई बार इन्हें हटाने के लिए अभियान भी चलाया जाता है, लेकिन कुछ दिन बाद फिर से कब्जा कर लिया जाता है। रेल प्रशासन खाली जमीन का नक्शा तैयार कर उसे डिजिटलाइज करने दावा भी कर रहा है, जिसमें रेलवे भूमि की जीपीएस सिस्टम से निगरानी करना शामिल है। अवैध कब्जों के हालातों को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि यह योजना अभी धरातल से कोसो दूर है। रेलवे स्टेशनों के आसपास की जमीन भी सुरक्षित नहीं हैं, जहां पक्के मंदिर, पक्की मजार, कैफेटेरिया, पशुओं का तबेला, गोबर के उबले बनाने में गैरकानूनी रूप से कब्जा है। यही नहीं खासकर बाहर शहरी और ग्रामीण इलाकों में सैकड़ो की संख्या में रेलवे लाइन की तरफ लोगों ने अपने मकान के दरवाजे करके बाड़ तक बना रखी है। रेलवे स्टेशनों के पास रेलवे भूमि पर अवैध रूप से खोखे चलाए जा रहे है, जिन्हें समय समय पर रेलवे व प्रशान मिलकर हटाता भी है, लेकिन कुछ दिन बाद फिर कब्जा शुरू हो जाता है।
13 परियोजनाओं लिए 1201 करोड़ रुपये का आवंटन
प्रदेश में रेलवे के विस्तार के लिए केंद्र से मंजूर परियोजनाओं की भी कमी नहीं है। केंद्रीय बजट में उत्तर रेलवे को आंवटित 15,818.49 करोड़ रुपये में हरियाणा राज्य में 13 प्रमुख रेल परियोजनाओं में को पूरा करने के 1,201 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है। उत्तर रेलवे के मुख्य जनंसपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने महाप्रबंधक आशुतोष गंगल के हवाले से बताया कि रेलवे को वर्ष 2021-2022 के लिए मिले 15818.49 करोड़ रुपये के रेल बजट में हरियाणा में चालू परियोजनाओं के अलावा स्वीकृत नई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए इस आवंटित बजट से राज्य में 1,721 किलोमीटर लंबाई के लिए 19,555 करोड़ की योजना है, जिसमें कुछ परियोजनाएं प्रगति पर हैं और कुछ आंशिक रूप से पूरी हो चुकी है या अनुमोदन और निष्पादन स्तर पर हैं। हरियाणा की इन 13 रेल परियोजनाओं में 570 किमी लंबाई की सात नई रेल लाइन परियोजनाओं के लिए 8,145 करोड़ रुपये और 1151 किमी लंबाई रेलवे लाइन के दोहरीकरण की छह परियोजनाओं के लिए 11,410 करोड़ रुपये खर्च किये जाने हैं।
ऑर्बिटल रेल कॉरिडोर : हरियाणा रेल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड यानि एचआरआईडीसी के निदेशक मंडल पलवल से सोहना-मानेसर-खरखौदा होते हुए सोनीपत तक ऑर्बिटल रेल कॉरिडोर परियोजना शुरू कर रहा है। इस परियोजना के तहत पलवल से सोनीपत तक लगभग 130 किलोमीटर लंबे इस मार्ग की नई दोहरी रेल लाइन बिछाई जा रही है। इसकी पृथला में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर नेटवर्क से भी होगी, जिसमें न्यू पलवल, सिलानी, सोहना, धूलावतट, चंदला डूंगरवास, मानेसर, नया पाटली, बाढसा, देवरखाना, बादली, मंडोथी, जसौर खेड़ी, खरखौदा, तारकपुर के स्टेशन शामिल होंगे। इसके बाद दिल्ली-अम्बाला लाइन से हरसाना कलां से भी यह कॉरिडोर जुड जाएगा। इसके अलावा गुड़गांव, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, पलवल, मानेसर और फारुखनगर इत्यादि के लिए सीधी रेल कनेक्टिविटी होगी और हरियाणा के पलवल, नूह, गुरुग्राम, झज्जर और सोनीपत जिले इस रेल लाइन से लाभान्वित होंगे।
183.10 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा
भारतीय रेलवे के पास 31 मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार कुल 480875.4 हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से करीब 871.46 हेक्टेयर यानि 0.17 फीसदी रेलवे भूमि मुकदमे बाजी के कारण अनाधिकृत कब्जा के अधीन है। हरियाणा में ज्यादातर रेलवे संपत्ति उत्तर रेलवे के क्षेत्राधिकार में है। मसलन उत्तर रेलवे जोन के पास कुल 44005.54 हेक्टेयर भूमि में से 183.10 हेक्टेयर भूमि पर अवैध रूप से कब्जा किया है, जिसमें हरियाणा में रेलवे की संपत्ति भी शामिल है। हालांकि रेलवे की खाली भूमि से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने के मकसद से उसके वाणिज्यक विकास में रेल भूमि विकास प्राधिकरण की मार्फत भूमि मौद्रीकरण से आय अर्जित कर रहा है।
प्रशासन के साथ मिलकर हटवा रहे अतिक्रमण
रेलवे की भूमि पर गैर कानूनी कब्जों को लेकर कानूनी प्रावधान भी हैं, जिनके तहत गैर कानूनी कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाती है। रेलवे के अनुसार इस बारे में रेलवे नियमित तौर पर रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण की रोकथाम व हटाने के लिए सर्वेक्षण करती है और भूमि को मुक्त कराने की कार्रवाई भी करती है। यदि अतिक्रमण झुग्गियों, झोंपड़ियो और अवैध आवास के रूप में अस्थाई रूप का हो तो उसे रेलवे सुरक्षा बल और स्थानीय प्रशासन के परामर्श करके हटवाया जाता है। ऐसे पुराने कब्जों के लिए समझाया भी जाता है। इसके लिए सरकारी स्थान अनधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971 के तहत राज्य सरकार तथा पुलिस की मदद से बेदखली की।
रेलवे के सामने ये परेशानी
रेल मंत्रालय के अनुसार रेलवे को अतिक्रमण हटाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि अधिकांश कब्जाधारी कार्रवाई से पहले ही अदालत पहुंच जाते हैं। जहां किसी एक स्थान पर बड़ी संख्या में अतिक्रमण होता है। वहां अतिक्रमण हटाने के दौरान ऐसे लोग विरोध करते हैं। जिसके परिणामस्वरुप कानून एवं व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इन समस्याओं के बावजूद रेलवे अपनी भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए सक्रिय रूप से कार्रवाई करता रहता है। इन्हीं प्रयासों के बीच पिछले तीन साल (2016 से 2018) के दौरान रेलवे ने 58.01 हेक्टेयर भूमि कब्जामुक्त कराई है।रेल मंत्रालय के अनुसार मुकदमों की वजहों में अनधिकृत कब्जा, पट्टा और लाइसेंस करार की शर्तों का उल्लंघन और भूमि के स्वामित्व को लेकर विवाद शामिल हैं। उन्होंने कहा कि अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए रेल भूमि विकास प्राधिकरण के जरिये से खाली भूमि का मौद्रीकरण किया जाता है। आरएलडीए की तरफ से साल 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में जमीन के मौद्रीकरण से क्रमशः 43 करोड़ रुपये, 83 करोड़ रुपये और 933 करोड़ रुपये की इनकम हुई। वहीं वित्त वर्ष 2019-20 में लीज पर जमीन देने आरएलडीए द्वारा रिकार्ड 1550 करोड़ रुपये की रेलवे जमीन लंबे समय के लिए लीज पर दी गई है।
प्रदेश में कई जगह रेलवे की जमीन खाली पड़ी
रेलवे का रेवाड़ी में अनउपयोग पड़ी अपनी भूमि पर कॉमर्शिलय एक्टिविटी शुरू करने का अभी कोई विचार नहीं है। रेवाड़ी में रेलवे कालोनी में करीब डेढ़ एकड़ का ग्राउंड, लोको शेड व क्वाटरों के पीछे भी जमीन पड़ी हुई है। कोसली में रेलवे की जमीन पर पार्क बनाया जा रहा है। इसके अलावा अन्य स्थानों पर भी कंडम क्वाटर व जमीन रेलवे की पड़ी हुई है। रेवाड़ी व जयपुर रेलवे अधिकारियों ने ऐसी जमीन की अधिकारिक डिटेल देने में तत्काल असमर्थता व्यक्त की है। - गौरव गौड़, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, उत्तर-पश्चिम रेलवे
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