विनोद पाठक का लेख : किसी की लहर नहीं, मुकाबला दिलचस्प

विनोद पाठक का लेख : किसी की लहर नहीं, मुकाबला दिलचस्प
X
राजस्थान में वैसे तो किसी की स्पष्ट लहर नजर नहीं आ रही है। सभी पार्टियों की रैलियों में जनता भी खूब उमड़ रही है। जनता अपना पक्ष उस तरह से नहीं रख रही, जिससे स्पष्ट पता चल सके कि हवा किसी ओर बह रही है। कांग्रेस की सात गारंटियों और योजनाओं की काट में भारतीय जनता पार्टी केंद्र सरकार की योजनाओं को सामने रख रही है। फिर राजस्थान में तीसरे मोर्चे के रूप में तीन पार्टियां और चुनावी मैदान में हैं। इसलिए मुकाबला दिलचस्प है। कांग्रेस और भाजपा दोनों प्रमुख पार्टियां आपसी कलह के संकट से जूझ रही हैं। सीएम का चेहरा किसी ने भी घोषित नहीं किया है, सबने समय व आलाकमान पर छोड़ दिया है।

राजस्थान में चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में पहुंच गया है और दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। कांग्रेस की कोशिश है कि राजस्थान में उस रिवाज को बदला जाए, जो प्रत्येक पांच साल में सरकार बदलने का है। भाजपा इसी रिवाज के भरोसे सत्ता में वापसी को आतुर है। कांग्रेस जहां अपनी सात गारंटियों और पांच साल के शासन को लेकर जनता के बीच है, वहीं भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हिंदुत्व और अपनी केंद्र सरकार की योजनाओं पर भरोसा है, लेकिन दोनों ही पार्टियों में नेताओं की एकता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। कांग्रेस का खेमा एक नहीं है और भाजपा में मुख्यमंत्री पद के ढेरों उम्मीदवार हैं।

यह सच है कि पिछले पांच साल से कांग्रेस में राज्य के नेतृत्व को लेकर एक खींचतान चली आ रही है। वर्ष 2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई थी, तब मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इसको लेकर एक लंबी जद्दोजहद चली थी और अंततः कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे अशोक गहलोत पर ही दांव लगाया था। उस समय राहुल गांधी ने सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ अपनी एक फोटो सोशल मीडिया पर साझा की थी और लिखा था- राजस्थान के संयुक्त रंग। पिछले सप्ताह राहुल गांधी ने एक बार फिर दोनों नेताओं के साथ एक और फोटो साझाकर एकता दिखाने का प्रयास किया। कांग्रेस नेतृत्व जानता है कि पिछले पांच साल कुर्सी को लेकर राजस्थान में कैसी खींचतान चली है? इसका असर वो विधानसभा चुनाव में महसूस भी कर रहे हैं। कांग्रेस ने वर्ष 2020 व वर्ष 2022 में सचिन पायलट और अशोक गहलोत की तरफ से बगावत को भी देखा है।

दोनों बड़े नेताओं के टकराव के बावजूद कांग्रेस ने संतुलन बनाने की भरपूर कोशिश की है। दोनों ही खेमों के नेताओं को चुनाव में टिकट दिए हैं। हालांकि, गहलोत खेमे के दो प्रमुख नेताओं महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को टिकट नहीं दिया गया है। शायद इसकी कसक भी मुख्यमंत्री गहलोत को है। कांग्रेस चुनाव में बागियों से भी जूझ रही है। कई सीटों पर कांग्रेस के बागी ताल ठोक रहे हैं और इसका नुकसान पार्टी को नतीजे में हो सकता है। इस समय मुख्य रूप से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रचार का मोर्चा संभाला हुआ है। सचिन पायलट भी कुछ-कुछ सभाएं कर रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस का खेमा एकता दिखाने की भरपूर कोशिश कर रहा है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने काम और अपनी ओपीएस, चिरंजीवी योजना, 500 रुपये में गैस सिलेंडर, दो रुपए किलो गोबर, अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा जैसी गारंटियों को आगे दिखाकर जनता से पुनः सत्ता में वापसी की आस लगाए हुए हैं। उन्होंने बिजली बिलों में छूट, महिलाओं को मुफ्त मोबाइल, पेंशन में बढ़ोतरी समेत कई लोकलुभावन योजनाएं भी चुनाव से पहले लागू की हैं। हालांकि, कांग्रेस ने साफ किया है कि चुनाव के बाद यदि सत्ता आती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा? यह पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और विधायक तय करेंगे, लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अशोक गहलोत सत्ता वापसी पर कुर्सी नहीं छोड़ने वाले और इसका संकेत भी वो बार-बार दे रहे हैं कि कुर्सी उन्हें छोड़ नहीं रही है।

कांग्रेस की सात गारंटियों और योजनाओं की काट में भारतीय जनता पार्टी केंद्र सरकार की योजनाओं को सामने रख रही है। पार्टी ने अपना संकल्प पत्र जारी कर इन गारंटियों की काट में 450 रुपये में गैस सिलेंडर, किसान सम्मान निधि दोगुनी करने समेत कई वादे किए हैं। भाजपा ने पेपर लीक, भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था और तुष्टीकरण को बड़ा मुद्दा बनाया हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के लिए संकट यह है कि उसका खेमा भी एक नहीं है। शायद यही कारण है कि भाजपा हाईकमान ने किसी एक चेहरे पर दांव लगाने के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को ही आगे किया है और पार्टी बार-बार यही बात दोहरा रही है कि चुनाव के बाद केंद्रीय संसदीय बोर्ड और विधायक दय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा? लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी ओर से पूरा जोर लगाए हुए हैं। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, राजसमंद सांसद व विद्याधर नगर से प्रत्याशी दीया कुमारी, अलवर सांसद व तिजारा से प्रत्याशी बाबा बालकनाथ के अलावा डार्क हॉर्स के रूप में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में बताया जा है।

भाजपा को अपने हिंदुत्व के मुद्दे पर भी भरोसा है और चुनाव के अंतिम चरण में पार्टी ने इसी मुद्दे पर ज्यादा फोकस किया है। पार्टी ने तीन संत भी तीन सीटों से मैदान में उतारे हैं। तिजारा से बाबा बालकनाथ, हवामहल से बालमुकुंद आचार्य और पोखरण से महंत प्रताप पुरी भगवा पहनकर वोटरों को लुभा रहे हैं। यही कारण है कि हिंदुत्व की काट के रूप में कांग्रेस ने भी एक साध्वी को अपने खेमे में शामिल किया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जहां खुद को बड़ा हिंदू बता रहे हैं, वहीं पिछले दिनों प्रियंका गांधी वाड्रा ने मंच से गायत्री मंत्र का जाप किया और वो अशोक गहलोत के साथ शिवालय में जलाभिषेक करती नजर आईं। दोनों पार्टियां हिंदुत्व के मुद्दे पर खुद को पीछे नहीं रहने देना चाहती हैं।

राजस्थान में वैसे तो किसी की स्पष्ट लहर नजर नहीं आ रही है। सभी पार्टियों की रैलियों में जनता भी खूब उमड़ रही है। जनता अपना पक्ष उस तरह से नहीं रख रही, जिससे स्पष्ट पता चल सके कि हवा किसी ओर बह रही है। फिर राजस्थान में तीसरे मोर्चे के रूप में तीन पार्टियां और चुनावी मैदान में हैं। मुख्य रूप से नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। हनुमान बेनीवाल कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि बेनीवाल कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं और जहां उनका प्रत्याशी टक्कर में है, वहां बीजेपी को थोड़ा लाभ हो रहा है। बसपा पिछले चुनावों से 4-6 सीटें राजस्थान में जीतती आ रही है, इस बार भी उम्मीद है कि वो कुछ सीटें जीत सकती है। यही स्थिति भारतीय ट्राइबल पार्टी की है, जिसका प्रभाव बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर क्षेत्र में है। आम आदमी पार्टी, जो कुछ समय पहले तक बेहद सक्रिय थी, अब लगभग नदारद है। उसके प्रत्याशी कुछ सीटों पर खड़े जरूर हैं, लेकिन वो लड़ते हुए नजर नहीं आ रहे हैं।

भाजपा इस बात को लेकर थोड़ा उत्साहित है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में उसके और कांग्रेस के बीच मतों का अंतर कोई डेढ़ लाख वोट ही था। उस समय लोगों की ज्यादा नाराजगी वसुंधरा राजे से थी। इस बार भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का लाभ मिल सकता है।

(लेखक- विनोद पाठक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

Tags

Next Story