हरियाणा के इस गांव को मिलेगी इंटरनेशनल पहचान, सहेजकर रखा जाएगा 5 हजार वर्ष पुराना इतिहास

Rakhigarhi
सिंधू घाटी सभ्यता के हरियाणा के एतिहासिक गांव राखीगढ़ी को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिलने जा रही है। सरकार द्वारा राखीगढ़ी में म्यूजियम का निर्माण करवाया जा रहा है, जिसमें लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी सिंधू घाटी सभ्यता की कलाकृतियों को सहेज कर रखा जाएगा। राखीगढ़ी के पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित होने से एक ओर जहां पर्यटन बढ़ेगा वहीं हरियाणा के राजस्व में भी वृद्धि होगी और यहां पर्यटकों के आने से गांव के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का विजन राज्य में धार्मिक, ऐतिहासिक और इको-टूरिज्म को मजबूत करना है, ताकि हरियाणा के इतिहास और यहां की संस्कृति के बारे में देश और विदेश के लोग करीब से जान सकें। मुख्यमंत्री राखीगढ़ी का तीन बार दौरा कर चुके हैं।
राखीगढ़ी में बनाया जा रहा म्यूजियम कई मायनों में होगा खास
राखीगढ़ी में बन रहे इस म्यूजियम में फोटोग्राफ्स लैब्स तैयार की गई है, जिनमें चित्रों के माध्यम से आगंतुक राखीगढ़ी के इतिहास को जान सकेंगे। इसके अलावा, म्यूजियम में किड्ज़ ज़ोन भी बनाया गया है। पहली बार हरियाणा में किसी म्यूजियम में किड्स जोन का निर्माण करवाया गया है ताकि ताकि बच्चे भी खेल खेल में अपने इतिहास से अवगत हो सकें। इसके अलावा, ओपन एयर थिएटर, गैलरी, पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया गया है, जिससे आगंतुक, विशेष तौर पर युवा पीढ़ी को इतिहास की जानकारी मिलेगी। केंद्र सरकार द्वारा देश में पर्यटन स्थलों व पांच ऐतिहासिक स्थल बनाने के लिए 2500 करोड़ रुपये की घोषणा की थी। उनमें राखीगढ़ी भी शामिल है। प्रदेश सरकार भी यहां 32 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक संग्रहालय बना रही है। इसमें रेस्ट हाउस, हॉस्टल और एक कैफे का निर्माण किया जा रहा है। पुनर्वास कार्यो के लिए 8 करोड़ 50 रुपये जारी किए जा चुके हैं। राखीगढ़ी को विश्व स्तरीय पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल बनाने में केंद्र सरकार हर संभव कोशिश कर रही है।
राखी गढ़ी का इतिहास
राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार जिले के नारनौंद उपमंडल में स्थित है। यहां राखीखास और राखीशाहपुर गांवों के अलावा आसपास के खेतों में पुरातात्विक साक्ष्य फैले हुए हैं। राखीगढ़ी में सात टीले (आरजीआर-1 से लेकर आरजीआर-7) हैं। ये मिलकर बस्ती बनाते हैं, जो हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी बस्ती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इस गांव में पहली बार 1963 में खुदाई शुरू की थी। इसके बाद 1998-2001 के बीच डॉ. अमरेंद्रनाथ के नेतृत्व में एएसआई ने फिर खुदाई शुरू की। बाद में पुणे के डेक्कन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वसंत शिंदे के नेतृत्व में 2013 से 2016 व 2022 में राखीगढ़ी में उत्खनन कार्य हुआ है।
राखीगढ़ी में 1998 से लेकर अब तक 56 कंकाल मिले हैं। इनमें 36 की खोज प्रो. शिंदे ने की थी। टीला संख्या-7 की खुदाई में मिले दो महिलाओं के कंकाल करीब 7,000 साल पुराने हैं। दोनों कंकालों के हाथ में खोल (शैल) की चूड़ियां, एक तांबे का दर्पण और अर्ध कीमती पत्थरों के मनके भी मिले हैं। खोल की चूड़ियों की मौजूदगी से यह संभावना जताई जा रही है कि राखीगढ़ी के लोगों के दूरदराज के स्थानों के साथ व्यापारिक संबंध थे। प्रो. शिंदे के अनुसार राखीगढ़ी में पाई गई सभ्यता करीब 5000-5500 ई.पू. की है, जबकि मोहनजोदड़ो में पाई गई सभ्यता का समय लगभग 4000 ई.पू. माना जाता है। मोहनजोदड़ो का क्षेत्र करीब 300 हेक्टेयर है, जबकि राखीगढ़ी 550 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैला है। प्रो. शिंदे के अनुसार प्राचीन सभ्यता के साक्ष्यों को संजोए राखीगढ़ी में मिले प्रमाण इस ओर भी इशारा करते हैं कि व्यापारिक लेन-देन के मामले में भी यह स्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से ज्यादा समृद्ध था।
अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, गुजरात और राजस्थान से था व्यापारिक संबंध
अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, गुजरात और राजस्थान से इसका व्यापारिक संबंध था। खासतौर पर आभूषण बनाने के लिए लोग यहां से कच्चा माल लाते थे, फिर इनके आभूषण बनाकर इन्हीं जगहों में बेचते थे। इस सभ्यता के लोग तांबा, कार्नेलियन, अगेट, सोने जैसी मूल्यवान धातुओं को पिघलाकर इनसे नक्शीदार मनके की माला बनाते थे। पत्थरों या धातुओं से जेवर बनाने के लिए भट्ठियों का इस्तेमाल होता था। इस तरह की भट्ठियां भारी मात्रा में मिली हैं। यहां मिले कंकालों का डीएनए परीक्षण चल रहा है।
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