पेट्रोल-डीजल व खाद्य तेलों के दाम में कटौती से राहत

Haribhoomi Editorial : पहले केंद्र सरकार की ओर से दिवाली तोहफा के रूप में पेट्रोल व डीजल के दाम में कटौती से जनता को राहत मिली और उसके बाद भाजपा शासित राज्यों की ओर से वैट में कटौती के ऐलान से पेट्रोल व डीजल की कीमतों में और कमी आई है। केंद्र से राहत के साथ भाजपा शासन वाले राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में स्थानीय बिक्री कर वैट भी कम कर दिए जाने से इन राज्यों में पेट्रोल की कीमतों में 8.7 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमतों में 9.52 रुपये प्रति लीटर तक की कमी हुई है।
पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बेतहाशा बढ़ने से देश की बड़ी आबादी में व्याप्त असंतोष को देखते हुए केंद्र सरकार ने गत बुधवार को इन पर लागू उत्पाद शुल्क में कटौती की घोषणा की थी। पेट्रोल पर लागू उत्पाद शुल्क में पांच रुपये प्रति लीटर और डीजल पर लागू शुल्क में दस रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई। अब देश के 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पेट्रोल एवं डीजल के दाम में अलग-अलग स्तर की कटौती देखी गई है। हालांकि गैर-भाजपा शासित राज्यों ने स्थानीय शुल्क में अभी कटौती नहीं की है।
उत्तराखंड में राज्य सरकार के स्तर पर की गई शुल्क कटौती सबसे कम है जबकि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में यह अधिकतम है।पेट्रोल पर उत्तराखंड ने वैट में प्रति लीटर 1.97 रुपये की कटौती की है जबकि लद्दाख में 8.97 रुपये की कटौती हुई है। डीजल के मामले में उत्तराखंड ने वैट में 17.5 रुपये प्रति लीटर की कटौती की है जबकि लद्दाख में यह 9.52 रुपये प्रति लीटर है। हरियाणा में पेट्रोल 11. 67 रुपये और डीजल 12.09 रुपये सस्ता हो गया। पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क घटने के बाद स्थानीय वैट कम करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदशों में कर्नाटक, पुडुचेरी, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, असम, सिक्किम, बिहार, मध्य प्रदेश, गोवा, गुजरात, दादरा एवं नागर हवेली, दमन एवं दीव, चंडीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश एवं लद्दाख शामिल हैं। स्थानीय बिक्री कर में कमी न करने वाले राज्यों में राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, दिल्ली, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। इन सभी राज्यों में गैर-भाजपाई दलों की सरकारें हैं। स्थानीय वैट शुल्क न सिर्फ पेट्रोल-डीजल की आधार कीमतों बल्कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क पर भी निर्भर करता है। इस वजह से पेट्रोल एवं डीजल पर उत्पाद शुल्क कम करने के फैसले का विभिन्न राज्यों में प्रभावी असर अलग-अलग रहा।
दरअसल में कच्चे तेल के दाम में लगातार बढ़ोतरी से देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें रिकार्ड छू रही थीं, मध्यवर्ग पर इसका अधिक असर हो रहा था। डीजल महंगा होने से समान की ढुलाई लागत बढ़ रही थी, जिससे महंगाई बढ़ रही थी। सितंबर के आंकड़े के मुताबिक थोक महंगाई दर 10.66 फीसदी पर रही थी। अगस्त में यह दर 11.39 फीसदी पर थी। अगस्त से सितंबर में महंगाद दर में कमी के बावजूद यह दर बहुत ज्यादा है। सरकार ने खाद्य तेलों पर भी पांच से बीस रुपये तक की कटौती की है। इससे सभी प्रकार खाद्य तेल सस्ते हुए हैं।
नेशनल स्टैटिकल ऑफिस (एनएसओ) की तरफ जारी आंकड़े के मुताबिक सितंबर में खुदरा महंगाई दर घटकर 4.35% पर आ गई थी जो अगस्त में महंगाई दर 5.3% थी। इसके बावजूद खाने-पीने की कीमतें बहुत ज्यादा हैं। डीजल व खाद्य तेलों में कमी का असर आने वाले महीनों में महंगाई दर में कमी के रूप में दिख सकता है। हालांकि महंगाई के मोर्चे पर अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति से इतर कुछ कर नहीं सकता, सरकार को ही कदम उठाने होंगे। पेट्रोव व डीजल को जीएसटी के दायरे में जल्द से जल्द लाया जाना चाहिए।
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