रूटों की बजाय कंपनियों में चल रही प्राइवेट बसें, सरकार को लाखों रुपए राजस्व का नुकसान

नरेन्द्र वत्स. रेवाड़ी: स्टेज कैरिज स्कीम के तहत सरकार ने प्राइवेट बसों को रूट परमिट जारी किए हुए हैं। इन बसों पर टैक्स की वसूली अन्य कमर्शियल बसों की तुलना में काफी कम होती है। सहकारी समितियों को दिए गए इन परमिटों का फायदा ट्रांसपोर्ट खुलकर उठा रहे हैं। कई ट्रांसपोर्टर नियमों को ताक पर रखते हुए बसों को निर्धारित रूटों पर चलाने की बजाय कंपनियों में स्टाफ उठाने के लिए लगाए हुए हैं। इससे एक ओर जहां सरकारी राजस्व को मोटा चूना लगाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर संबंधित रूटों पर बसों की कमी खल रही है। आरटीए के अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी राजनीतिक दबाव के चलते कोई एक्शन नहीं ले पा रहे हैं।
बावल और कोटकासिम रूटों पर परिवहन विभाग की ओर से किसी भी सोसायटी को बस परमिट अलॉट नहीं किया गया है। इसके बावजूद सुबह कंपनियों का स्टाफ उठाने के लिए दोनों रूटों पर सहकारी समिति की बसें चलती नजर आती हैं। ऐसा ही नजारा दोपहर और शाम के समय भी आसानी से देखने को मिल जाता है। टैक्स की चोरी करते हुए कुछ ट्रांसपोर्टरों ने तो अपनी ऐसी बसों को कंपनियों में लगाया हुआ है, जिनके पास किसी तरह का कोई परमिट ही नहीं है। डेढ़ दर्जन से अधिक बसों का कंपनियों का स्टाफ उठाने में इस्तेमाल किया जा रहा है, परंतु आरटीए अधिकारियों ने इन बसों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए अपनी आंखों बंद की हुई हैं। दबाव आने पर इन बसों पर मात्र 11 हजार रुपए जुर्माना कर दिया जाता है, जिसका मोटा पैसा कमाने वाले ट्रांसपोर्टरों पर कोई असर नहीं पड़ता।
बसों के अवैध संचालन पर रोक लगाने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण के अधिकारियों को सौंपी हुई है। जब प्राधिकरण के अधिकारी बसों की जांच के लिए सड़क पर उतरते हैं, तो नेशनल हाईवे पर बिना परमिट चलने वाली बसें सड़कों से गायब हो जाती हैं। कंपनियों में बिना वैध परमिट के चल रही बसें प्राधिकरण के कार्यालय के पास से ही दिन में कई बार चक्कर लगाती हैं। इसके बावजूद अधिकारी इन बसों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचते हैं। जिन कंपनियों से यह बसें स्टाफ उठाती हैं, वह कंपनियां भी प्राधिकरण के कार्यालय से चंद मीटर की दूरी पर स्थित हैं। इसके बावजूद इन बसों को अवैध परिचालन की पूरी छूट मिली हुई है। इन बसों को टैक्स के रूप में 12 हजार रुपए मासिक भुगतान करना पड़ता है, जबकि कंपनी बसों का टैक्स 24 हजार रुपए है।
रूट टाइम के बाद कंपनियों की ओर रुख
कुछ ट्रांसपोर्टरों ने राजनीति प्रभाव के चलते बसों के रूट का टाइम से सेट कराया हुआ है कि रूट पर चक्कर लगाने के बाद इन बसों को कंपनियों का स्टाफ उठाने का टाइम आसानी से मिल जाएगी। परमिट की शर्तों के अनुसार किसी भी बस को परमिट रूट को छोड़कर दूसरे रूटों पर नहीं चलाया जा सकता। इसके बावजूद कई बसों को बावल व कोटकासिम रोड पर ऐसे रूट पर चलते देखा जा सकता है, जिस पर कोई परमिट ही जारी नहीं किया गया है।
ट्रांसपोर्ट की राजनीतिक पहुंच की धौंस
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक ट्रांसपोर्टर प्राधिकरण के अधिकारियों पर राजनीतिक पकड़ की धौंस जमाकर लंबे समय से अपनी बसों का अवैध परिचालन करता है। एक कांग्रेसी नेता से संबंध रखने वाला यह ट्रांसपोर्टर अब भाजपा नेता का करीबी होने का दावा करते हुए अधिकारियों पर रौब दिखाता है, जिस कारण अधिकारी उसकी बसों के खिलाफ कार्रवाई करने से लगातार बचते आ रहे हैं। इस तरह से प्राधिकरण के अधिकारियों की कार्यशैली का भी संदेह के घेरे में आना स्वाभाविक है।
शादियों के सीजन में रूटों से गायब : परमिट के रूट के अलावा सहकारी समिति की बसों को दूसरे रूटों पर नहीं चलाया जा सकता, लेकिन शादियों का सीजन शुरू होते ही कई रूटों से बसें गायब हो जाती हैं। ट्रांसपोर्ट ज्यादा किराया मिलने के कारण इन बसों की शादियों के लिए बुकिंग करते हैं। इसके बाद संबंधित रूटों पर बसों की कमी के कारण आम यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दिन में रूटों पर चलने के बाद इन बसों को रात के समय कंपनियों का स्टाफ लाने और ले जाने के लिए खुलकर उपयोग किया जा रहा है।
सहकारी समिति की बसों को कंपनियों में नहीं चलाया जा सकता। मुझे इस बात की जानकारी नहीं है। अगर ऐसा है, तो जल्द ही ऐसी बसों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इन बसों को जांच के बाद इंपाउंड किया जाएगा। -गजेंद्र कुमार, सचिव, आरटीए।
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