प्राइवेट बस ऑपरेटरों की दादागिरी को बेबस निगाहों से निहारते हैं रोडवेज कर्मचारी, आए दिन होती है झड़प

प्राइवेट बस ऑपरेटरों की दादागिरी को बेबस निगाहों से निहारते हैं रोडवेज कर्मचारी, आए दिन होती है झड़प
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कुछ ऑपरेटरों के रोडवेज के कुछ पुराने कर्मचारियों के साथ अच्छे संबंध बने हुए हैं। ऐसे बस ऑपरेटरों के हौसलों को बढ़ावा देने के लिए रोडवेज के कुछ बेइमान कर्मचारी ईमानदारी से कार्य करने वाले नए कर्मचारियों पर दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

हरिभूमि न्यूज. रेवाड़ी

परमिट की बसों पर कई बस ऑपरेटरों ने चालक और परिचालक पूरी तरह झगड़ालू प्रवृत्ति के लगाए हुए हैं। कुछ प्राइवेट बसों के चालक और परिचालक तो समय सीमा को लेकर आए दिन बूथों पर रोडवेज के ईमानदार कर्मचारियों से झगड़ा करते नजर आते हैं। प्राइवेट बसों के चालक-परिचालक बूथ पर लगी रोडवेज बस को निर्धारित समय से पहले हटाने का दबाव बनाते हैं। अड्डा इंचार्ज से लेकर नंबर वाली बसों के चालक-परिचालकों को टाइम पर प्राइवेट बसों को हटवाने के लिए कड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है।

रोडवेज विभाग को राजस्व की हानि पहुंचाते हुए अपनी जेबें भरने वाले प्राइवेट बस ऑपरेटर दिन भर बस स्टैंड परिसर में घूमते हुए अपनी बसों में अधिक से अधिक यात्री भरने की व्यवस्था में मशगूल रहते हैं। इनमें से कुछ ऑपरेटरों के रोडवेज के कुछ पुराने कर्मचारियों के साथ अच्छे संबंध बने हुए हैं। ऐसे बस ऑपरेटरों के हौसलों को बढ़ावा देने के लिए रोडवेज के कुछ बेइमान कर्मचारी ईमानदारी से कार्य करने वाले नए कर्मचारियों पर दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

प्राइवेट बसों के चालक और परिचालक बूथ से बस हटाने के बाद उसे बस स्टैंड के एक्जिट गेट तक कछुआ गति से ले जाते हैं, ताकि गेट पर उन्हें और सवारियां मिल सकें। इसके बाद बसों को नियम के विपरीत गेट पर ही खड़ा रखा जाता है। बस स्टैंड से निकले के बाद नाईवाली चौक, झज्जर चौक और धारूहेड़ा चुंगी पर इन बसों को ठसाठस भरने के लिए रोका जाता है। जब प्राइवेट बसों के बाद निकलने वाली रोडवेज बसें वहां पहुंचती हैं, तो सवारियों का मैदान साफ मिलता है। प्राइवेट बसों में खचाखच भीड़ नजर आती है, जबकि रोडवेज बसें खाली दौड़ती हैं।

चालान तक सीमित आरटीए की कार्रवाई

सीटों की संख्या के आधार पर ओवरसाइज चल रही बसों पर शिकंजा कसने के लिए आटीए की ओर से कार्रवाई तो की जाती है, लेकिन इन बसों को इंपाउंड करने की बजाय जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है। आरटीए अधिकारियों की ओर से सीटों की संख्या के अनुसार इन बसों का साइज बनवाने की दिशा में कोई एक्शन अभी तक नहीं लिया गया है। बस स्टैंड पर 32 सीटर एक बस स्टैंडर्ड साइज की नजर आती है। इसके अलावा इतनी सीटों की कैपेसिटी वाली सभी बसों का साइज बड़ी बसों के समान है। यह रोडवेज और सरकार दोनों को नुकसान पहुंचाने की बड़ा कारण साबित हो रहा है।

फिटनेस के समय ही शुरू होता खेल

बसों की सीटों के आधार पर स्टैंडर्ड साइज देखना इनकी फिटनेस के समय एमवीआई का कार्य होता है। सूत्रों के अनुसार फिटनेस के दौरान पैसे का मोटा खेल खेला जाता है। इस खेल के चलते एमवीआई की वाहनों की फिटनेस देखने का कार्य ट्रांसपोटरों की ओर से अदा किए गए 'नजराने' के आधार पर तय होता है। वैसे तो फिटनेस देखने के दौरान वाहनों की वीडियोग्राफी भी होती है, परंतु वीडियोग्राफी का कार्य वाहन के रजिस्ट्रेशन और चेसिस नंबरों की रिकॉर्डिंग तक सीमित रहता है। फिटनेस के दौरान नियमों को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया जाता है। अनफिट वाहनों को भी फिट दिखाकर खानापूर्ति कर दी जाती है।

नियमों के विरुद्ध बसों का संचालन करने की इजाजत किसी को भी नहीं दी जाएगी। अधिकारियों को जल्द इस बात का पता लगाने के निर्देश दिए जा रहे हैं कि ऐसी बसों को चिन्हित कर, उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। -मूलचंद शर्मा, परिवहन मंत्री, हरियाणा।

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