जहरीली होती जा रही रोहतक की हवा, दिवाली तक तो सांस लेना भी हो जाएगा मुश्किल

अमरजीत एस गिल : रोहतक
प्रदूषण (Pollution) अब लगातार बढ़ेगा, आने वाले दिनों में सांस लेने तक में परेशानी होगी। दीवाली के बाद तो हवा (Air) इतनी खराब हो जाएगी कि घर से बाहर निकलने का मतलब है जहर गटकना। सोमवार की ही बात करें तो रात करीब 8 बजे रोहतक का एक्यूआई (AQI) 287 दर्ज किया गया जो कि सांस लेने के लिए ठीक नहीं है। इसी महीने 24 अक्टूबर को एक्यूआई 325 और 25 को 336 तक पहुंच गया था। सोमवार को हवा की गती थोड़ी बढ़ी तो एक्यूआई में आंशिक रूप से कमी हुई।
प्रदूषण का स्तर इन दिनोेें में इतना क्यों बढ़ जाता है, इसके पीछे कई कारण हैं। वैसे तो प्रदूषण का प्याला सालभर भरा रहता है। मानसून की विदाई के बाद हवा की रफ्तार जैसे-जैसे मंथर होती रहती है, वैसे-वैसे एक्यूआई बढ़ता रहता है। इंडियाज एयर क्वालिटी इंडक्स के बीते दो वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि केवल मानसून सीजन में लोगों को सांस लेने के लिए कुछ ठीक हवा मिलती है। बाकि 9 महीने तो प्रदूषित हवा में ही सांस ली गई है। सबसे बेहद खराब स्थिति तो हर साल मानूसन सीजन बीतने के बाद उत्तर भारत में होती है। जब तक हवा की गति 15-20 किलोमीटर या इससे अधिक रहती है तो वातावरण में वाहनों के धुएं और कल-कारखानों से उत्सर्जित होने वाले खतरनाक कण ठहर नहीं पाते हैं। गति कम होते ही, प्रदूषण कहर बरपाना शुरू कर देता है।
पड़ोसी राज्य भी परेशान
हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली समेत आसपास के राज्यों में प्रदूषण का पहाड़ खड़ा हो जाता है। जुलाई, अगस्त और सितम्बर में प्रदूषण कम रहता है। ऐसा नहीं है कि इन महीनों में पोल्यूशन का उत्सर्जन कम होता है। बल्कि बारिश से वातावरण में मौजूद खतरनाक कण जमीन पर आ जाते हैं। प्रदूषण फैलाने के लिए फसलों के अवशेष जलाने को पूरी तरह से कारण नहीं माना जा सकता है। यह तथ्य लॉकडाउन के दौरान प्रमाणित हो चुका है। इस दौरान अप्रैल-मई में खरीफ की कटाई-कढ़ाई का सीजन चरम पर रहा। लेकिन एक दिन भी रोहतक का एक्यूआई 233 अंक तक नहीं पहुंच पाया। ऐसे में प्रदूषण के लिए किसान जिम्मेदार नहीं हैं। बेशक कोविड-19 ने देश-दुनिया के लिए परेशानियां खड़ी की हों।
2018 में भी खराब थी हवा
वर्ष 2018 में पूरे साल में मात्र 16 दिन ही रोहतक के लोगों को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा मिली। जनवरी से लेकर जून तक एक भी दिन ऐसा नहीं बीता, जिस दिन हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 50 के आसपास रही हो। जनवरी में ग्यारह दिन बेहद खतरनाक प्रदूषण के, फरवरी में एक दिन खतरनाक हालात और बाकि दिन भी सामान्य नहीं थे। मार्च में प्रदूषण का सूचकांक अधिकतम 295, अप्रैल में 325, मई में 307, जून में 354 दर्ज किया गया। इसी प्रकार जुलाई में छह दिन एक्यूआई 50 तक रहा। अगस्त में भी छह ही दिन, सितम्बर में 3 दिन लोगों को प्रदूषण से पूरी राहत मिली। लेकिन इस महीने में एक सूचकांक 404 तक पहुंचा। अक्टूबर में 1 दिन लोगों ने खुलकर सांस ली। जबकि इस महीने का अधिकतम एक्यूआई 205 दर्ज किया गया। इसके बाद तो नवम्बर और दिसम्बर में एक दिन भी ऐसा नहीं था, जिस दिन एक्यूआई 50 से नीचे आया हो। नवम्बर में अधिकतम एक्यूआई 356 और दिसम्बर मेंं 255 दर्ज किया गया।
2019 में कुछ सुधार हुआ
स्वच्छ हवा के दिनों को लेकर वर्ष 2018 की अपेक्षा 2019 कुछ बेहतर रहा। वर्ष 2019 में 29 दिन प्रदूषण सूचकांक 50 तक रहा। हालांकि जनवरी से लेकर जून तक दोनों ही साल में एक सी आबोहवा रही। जोकि सामान्य नहीं थी। जनवरी में प्रदूषण का सूचकांक अधिकतम 283, फरवरी में 297, मार्च 182, अप्रैल में 344, मई में 397 और जून में यह 315 तक पहुंचा। चूंकि हरियाणा में जुलाई के प्रथम सप्ताह में मानसून की बारिश शुरू होती है। एक दिन पीएम 2.5 की मात्रा सुधरकर 50 तक पहुंची। अगस्त में 9 दिन बहुत ही अच्छी हवा में लोगों ने सांसें ली। सितम्बर में 15 दिन सामान्य आबोहवा के रहे। अक्टूबर में 2 और नवम्बर में भी दो दिन ही सांस लेने के लायक हवा थी।
लॉकडाउन में मिली राहत
लॉकडाउन शुरू होने से ठीक एक दिन पहले गत 24 मार्च को पीएम 2.5 की मात्रा 128 थी, जो 25 मार्च को कम होकर 78, 26 को 62, 27 को 33 और 28 को अब तक की सबसे कम 26 दर्ज की गई। 29 मार्च को 40, 30 को 46 और 31 मार्च को 50 दर्ज किया गया।
स्वच्छ हवा का पैमाना
अगर एक्यूआई 0-50 के बीच है तो अच्छा, 51-100 संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बहुत खराब और 401-500 गंभीर होता है।
मानसून लौटने बाद हवा में बढ़ने लगता है पीएम 2.5
मानसून जून के अंत में दस्तक दे देता है और सामान्यत सितम्बर समापन के साथ ही लौट जाता है। भौगालिक स्थिति के मुताबिक मानसून बीतने के साथ हवा की गति कमजोर पड़ जाती है। अक्टूबर में आबोहवा में पीएम 2.5 की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। जो दिवाली के बाद कहर बरपाना शुरू कर देती है। इस दौरान खरीफ फसलों की कटाई, खासकर धान की कटाई प्रारम्भ हो जाती है। किसान भी फसल अवशेष को खेत में जला देते हैं। हालांकि बीते-दो तीन साल से ऐसी घटनाओं में सरकार के प्रयास से कमी आई है।
हालात विकट
जब तक सरकारी सिस्टम की संस्थाएं प्रदूषण रोकने को लेकर संवेदनशील नहीं होंगी। हालात साल दर साल विकट होते जाएंगे। जो भी कारक प्रदूषण फैलने के लिए जिम्मेदार हैं, उसे दंडित करने का प्रावधान होना चाहिए। प्रदूषण जुबान चलाने से खत्म नहीं होगा। -प्रो. राजेश धनखड़, पर्यावरण विज्ञान विभाग, मदवि
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