Russia-Ukraine War : अब महंगाई का हमला सामने है

Russia-Ukraine War : अब महंगाई का हमला सामने है
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बाजार का हाल अनिश्चितता और भय में खराब हो जाता है। भारत में शेयर बाजार ठंडे होने के कारण सरकार की चिताएं बढ़ गई हैं। जीवन बीमा निगम के शेयर बाजार में बेचे जाने हैं। ठंडे बाजार में कीमतें सही कैसे मिलेंगी, यह सवाल सरकार के समक्ष है, पर यूक्रेन संकट की बात सिर्फ शेयर बाजार की नहीं है।

आलोक पुराणिक

इस कदर ग्लोबलाइज्ड है दुनिया कि यूक्रेन और मास्को की मार का असर मुंबई में दिखता है। शेयर बाजार में ठंडक और कच्चे तेल के बाजारों में विकट गर्मी आ जाती है। जिस दिन यूक्रेन पर रूसी हमले की खबर आई, उस दिन तो दुनियाभर के स्टाक बाजार बैठ गए।

25 फरवरी, 2022 को खत्म हुए हफ्ते में रूस के शेयर बाजार में करीब तैंतीस फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। भारत में मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स एक हफ्ते में करीब साढ़े तीन प्रतिशत की गिरावट पर बंद हुआ। फ्रांस का शेयर बाजार एक हफ्ते में करीब 3 प्रतिशत लुढ़क गया और जर्मनी का शेयर बाजार एक हफ्ते में चार फीसदी लुढ़क गया। बाजार का हाल अनिश्चितता और भय में खराब हो जाता है। भारत में शेयर बाजार ठंडे होने के कारण सरकार की चिताएं बढ़ गई हैं। जीवन बीमा निगम के शेयर बाजार में बेचे जाने हैं। ठंडे बाजार में कीमतें सही कैसे मिलेंगी, यह सवाल सरकार के समक्ष है, पर यूक्रेन संकट की बात सिर्फ शेयर बाजार की नहीं है।

कच्चे तेल के भाव

सात सालों के बाद कच्चे तेल के भाव सौ डालर प्रति बैरल के ऊपर चले गए। रूस दुनिया का बहुत ही महत्वपूर्ण कच्चे तेल और गैस का आपूर्तिकर्ता देश है। युद्ध के कारण अगर रुस से आपूर्ति बाधित हुई, तो इसके गंभीर आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होंगे। यूरोप में कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति का बड़ा स्त्रोत रुस है। जर्मनी जैसे देश नए माहौल में बहुत अलग तरीके से घिरे हुए हैं। जर्मनी अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर आश्रित है। गैस की आपूर्ति के लिए रूस पर आश्रित है और कई तरह के साजो सामान के लिए चीन पर आश्रित है। गैस की सप्लाई अगर रूस बंद कर दे, कई देशों में राजनीतिक संकट पैदा हो जाएगा। यानी कच्चा तेल और गैस ये दोनों रूस के लिए एक तरह से हथियार हैं। यह दिख भी रहा है। तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं रूस पर, यह रूस से कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति पर प्रतिबंध नगण्य हैं। यूरोप की जरूरत है वह। इस तरह से तमाम यूरोपीय देशों के सामने रूस एक ऐसे दुश्मन के तौर पर खड़ा है, जो उनकी जरूरत है। कच्चे तेल और गैस के भाव अगर बढ़ते हैं, तो उन देशों के लिए बहुत समस्या है, जो अभी कोरोना की मार से उबर ही रहे हैं। फ्रांस का बयान आया है कि लंबे युद्ध के लिए तैयार रहे दुनिया यानी किसी न किसी शक्ल में यूक्रेन युद्ध खिंचने वाला है। यह युद्ध जितना लंबा खिंचेगा अनिश्चितता और खौफ की छाया उतनी ही लंबी होगी, कच्चे तेल के बाजार से लेकर शेयर बाजार तक इस छाया के असर महसूस किए जाएंगे।

एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान

स्टेट बैंक आफ इंडिया द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार कच्चे तेल के भावों में तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है वित्त वर्ष 2022-23 में। एक लाख करोड़ रुपये की रकम कितनी होती है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भी प्रति माह समग्र माल और सेवाकर की वसूली एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच जाती है, तो इसे बहुत ही महत्वपूर्ण बताया जाता है। एक महीने के जीएसटी संग्रह की रकम कच्चे तेल की महंगाई के हवाले हो सकती है, अगर कच्चे तेल के भावों में लगातार तेजी दर्ज की जाती रही तो। यह बहुत डरावनी तस्वीर है।

कच्चे तेल की पक्की महंगाई

जनवरी 2022 में खुदरा महंगाई दर छह प्रतिशत का आंकड़ा पार करके 6.01 प्रतिशत पर जा चुकी है। दिसंबर 2021 में यह 5.59 प्रतिशत पर थी। यानी यूक्रेन संकट पहले भी महंगाई का हाल चिंताजनक था। अब यूक्रेन की मारध़ाड़ ने चिंताओं और गहरी कर दी हैं। रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई का लाल निशान छह प्रतिशत पर निर्धारित किया है। इसके ऊपर खुदरा महंगाई का जाना बहुत ही खतरनाक है, पर कच्चे तेल के भाव अगर लगातार ऊपर जाएं, तो बढ़ती हुई महंगाई को रोकना किसी के बस की बात नहीं है। दो महीनों में ही कच्चे तेल के भाव पच्चीस प्रतिशत करीब बढ़ चुके हैं। हालात अभी नार्मल होने के नाम नहीं ले रहे हैं। रूस के तेवरों से लगता नहीं है कि वह किसी उदारता के मूड में है। रूस को इस पूरे प्रकरण में बहुत किस्म के आर्थिक नुकसान हैं, पर रूस इस समय तमाम आर्थिक नुकसान उठाकर भी अपने राजनीतिक हित पूरे करना चाहता है। दरअसल लोकतांत्रिक देशों में तो नेता डरते है कि कहीं जनता में असंतोष ना फैल जाए, पर रूस मूलत तानाशाही वाला देश है। पुतिन को किसी की कोई चिंता नहीं है। उसके ये तेवर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही घातक साबित हो रहे हैं। खासकर उन देशों के लिए तो बहुत ही घातक साबित हो रहे हैं, जो कच्चे तेल के आयात पर निर्भर हैं। भारत ऐसे ही देशों में शामिल है, जहां कच्चे तेल के आयात पर बहुत निर्भरता है। मध्य पूर्व के झगड़ों ने भारत की अर्थव्यवस्था को पहले भी बुरी तरह से तबाह किया है। 1991 में इराक युद्ध में कच्चे तेल के भाव बहुत ऊपर चले गए थे। तब विदेशी मुद्रा कोष की हालत खस्ता थी। भारत को सोना गिरवी रखकर कुछ विदेशी मुद्रा का इंतजाम करना पड़ा था। अब संकट विदेशी मुद्रा का नहीं है। संकट यह है कि महंगे तेल को उपजने वाली महंगाई को रोकना बहुत ही मुश्किल काम है।

संसाधनों का संकट

कच्चे तेल से उपजने वाली महंगाई से निपटने के लिए सरकार आसानी से राहत दे सकती है पर राहत देने के लिए खजाने का भरा होना जरूरी है। खाली खजाने से खाली आश्वासन दिए जा सकते हैं। कोरोना के दंश से उबरकर पूरी दुनिया और भारतीय अर्थव्यवस्था खड़े होने की कोशिश में है। तमाम तरह के राहत पैकेज सरकार दे रही है। उसके लिए संसाधन चाहिए फिर कच्चे तेल की महंगाई से निपटने के लिए भी संसाधन चाहिए। वह कहां से आएंंगे, यह बड़ा सवाल है। कोरोना से निपटने के बाद दुनिया भर के देशों की सरकारें समझ रही थीं अब संकट से उबर गये हैं। पर अब चीन से नहीं, संकट यूक्रेन से आया है। जिसके असर लंबे समय तक महसूस किए जाएंगे।

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