सौभाग्य योग में मनाई जाएगी संकट चतुर्थी, जानें- शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हरिभूमि न्यूज. बहादुरगढ़
इस बार संकट चतुर्थी शुक्रवार 21 जनवरी को मनाई जाएगी। इसे लेकर शहर के गणेश मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही हैं। विदित है कि माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकट चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को संकट चौथ के अलावा तिलकुटा चौथ, माघी चतुर्थी और संकट चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश का विशेष श्रृंगार किया जाता है। गणेश जी को तिल के लड्डू का विशेष भोग लगाया जाता है।
हालांकि संकट चतुर्थी पर इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए बड़े आयोजन नही किए जा रहे हैं। बावजूद इसके महिलाएं इसकी तैयारी में व्यस्त नजर आ रही है। इस दिन कथा सुनने के लिए तिलकुट रूपी प्रसाद बनाया जाता है। जिसके लिए तिल, गुड सहित अन्य पूजन सामग्री खरीदने में महिलाएं व्यस्त दिखी। इस समय सफेद तिल और काला तिल दोनों बिक रहे हैं। इसके अलावा धूप, दीप इत्यादि भी खरीदी जा रही हैं। महिलाएं संतान की दीघार्यु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। सारे दिन उपवास रहकर रात में चांद को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार संकट चौथ पर सौभाग्य योग बन रहा है। इस शुभ योग पर किया गया कोई भी कार्य और पूजा सफलता दिलाती है।
सौभाग्य योग दोपहर तीन बजकर छह मिनट तक रहेगा। इसके बाद शोभन योग शुरू होगा। वहीं चतुर्थी तिथि 21 जनवरी को सुबह आठ बजकर 51 मिनट से शुरू होगी और 22 जनवरी को सुबह नौ बजकर 14 मिनट तक चलेगी। संकट चौथ पर भगवान गणेश की पूजा करने से ग्रहों की अशुभता दूर करने में मदद मिलती है। पंडित महेश कुमार ने बताया कि पूजा के स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। गणेश की मूर्ति स्थापित कर रोली चंदन सिंदूर लगा कर दूर्वा एवं पुष्प अर्पित करें। पूजा के दौरान गणेश मंत्र का जाप करें। गणेश जी को प्रसाद में तिल और गुड़ से बने प्रसाद या मोदक व लड्डू का भोग लगाएं। भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन कर शाम को चंद्रमा को अर्घ देकर व्रत का समापन करें।
दरअसल, ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकल कर आए थे। इसलिए इसे संकट चतुर्थी कहा जाता है। एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए गई इस दौरान माता ने दरवाजे पर गणेश को खड़ा कर दिया। किसी को भी अंदर नहीं आने देने के लिए कहा। जब भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देखकर माता पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने के लिए हट करने लगी, तब शिवजी ने गणेश को हाथी का सिर लगाकर उनको दूसरा जीवनदान दिया। तभी से वह गजानन कहलाए। इसी दिन से गणेश को 33 कोटि देवी देवताओं का आशीर्वाद मिला और इसी दिन से संकट चौथ मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
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