बहादुरगढ़ : सौ साल पुरानी जर्जर इमारत में चल रहा स्कूल, जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करते बच्चे

हरिभूमि न्यूज. बहादुरगढ़
शहर के रेलवे रोड पर संचालित मॉडल संस्कृति राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की बिल्डिंग करीब सौ साल पहले बनी थी। नियमित रखरखाव के अभाव में स्कूल भवन की हालत जर्जर होती जा रही है। हालांकि यहां की छत व दीवारों में आई दरारों को भरने का काम जारी है। यहां छठी से 12वीं कक्षा तक के करीब 12 सौ से अधिक बच्चे पढ़ाई करते हैं। लेकिन अब स्कूल को नए भवन की दरकार है। इसीलिए 36 कमरों के नए भवन का प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा गया है। इस पर करीब 14 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। अब गेंद शिक्षा विभाग और सरकार के पाले में हैं।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार ने शिक्षा को हर बच्चे का अधिकार करार दिया है। लेकिन सरकार व प्रशासन ने उन बच्चों को उनके अधिकारों की खातिर बेहतर मूलभूत स्कूली ढांचा उपलब्ध करवाना अपनी नीतियों से बाहर कर दिया है। जो गरीब बच्चे सरकारी स्कूलों में शिक्षा हासिल करने पहुंचते हैं, उनकी जिंदगी पर हमेशा जर्जर स्कूली इमारतों का खतरा मंडराता रहता है। कुछ इसी तरह से शहर में हाई स्कूल के नाम से विख्यात मॉडल संस्कृति राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की करीब सौ साल पुरानी इमारत भी क्षीण होती जा रही है। यह शहर का सबसे बड़ा और सबसे पुराना स्कूल है।
दरअसल, समय पर रखरखाव न होने से मौजूदा समय में यह इमारत मासूमों के अभिभावकों के लिए भी चिंता का कारण बनती जा रही है। बारिश के मौसम में छत से पानी टपकने लगता है और दीवारों की हालत भी अच्छी नहीं है। कक्षाओं के अभाव में बच्चे बरामदे या आंगन में जमीन पर बैठकर क्लॉस लगाने को मजबूर हैं। मौजूदा समय में करीब 12 सौ गरीब वर्ग परिवारों के बच्चे इस स्कूल में शिक्षा का ज्ञान हासिल कर अपने उज्ज्वल भविष्य की राह देख रहे हैं। अगर इस बिल्डिंग में कोई हादसा होता है, तो सैकड़ों छात्रों की जान खतरे में पड़ सकती है।
36 कमरे बनाने का प्रस्ताव
अब स्कूल प्रबंधन ने तकनीकी अधिकारियों के माध्यम से नए भवन के लिए करीब 14 करोड़ का एस्टीमेट तैयार करके शिक्षा विभाग व सरकार के पास भेजा है। नए भवन में प्रयोगशालाओं व कक्षाओं के लिए 36 कमरे बनाए जाने का प्रस्ताव है। स्मार्ट क्लास रूम के अलावा अन्य आधुनिक सुविधाएं भी इसमें उपलब्ध होंगी।
शिक्षकों व स्टॉफ की कमी
शिक्षकों के अभाव में भी बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। स्कूल में लेक्चरर्स की 10 स्वीकृत पोस्ट्स रिक्त हैं। इसके अलावा टीजीटी के दो स्वीकृत पद भी इस समय रिक्त पड़े हैं। संख्या बल बढ़ने के साथ ही नए पदों के सृजन की भी आवश्यकता है। हालत यह है कि चतुर्थ श्रेणी के 5 स्वीकृत पदों पर केवल एक कर्मचारी कार्यरत है। ऐसे में स्कूल में झाडू भी ढंग से नहीं लग पाती।
जोखिम उठा रहे अभिभावक
बिल्डिंग की जर्जर हालत देखकर यहां आने वाले आमजन भी डर जाते हैं। मासूमों के माता-पिता भी अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को ध्यान में रखकर उनको जर्जर स्कूलों में शिक्षा दिलाने का जोखिम उठा रहे हैं। लेकिन जिस तरह से उच्च शिक्षा विभाग व प्रशासन की तरफ से सरकारी स्कूलों की अनदेखी की जा रही है, उससे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ना स्वाभाविक है।
नए भवन का एस्टीमेट बनाकर सरकार के पास भेजा
प्रधानाचार्य सुरेश सैनी ने बताया कि 36 कमरों के नए भवन का एस्टीमेट बनाकर सरकार के पास भेजा गया है। इसकी अनुमानित लागत करीब 14 करोड़ रुपए है। रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए भी वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार किया जा रहा है। फिलहाल पुरानी इमारत की जर्जर छत की रिपेयर करवाई जा रही है। नया भवन बनने पर संख्याबल में भी गुणात्मक इजाफे की संभावना है।
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