हकृवि के वैज्ञानिकों ने गन्ने की अगेती किस्म सीओएच 160 विकिसत की, प्रति हेक्टेयर 838 क्विंटल पैदावार

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने इस वर्ष गन्ने की उन्नत अगेती किस्म सीओएच 160 विकिसत की है जो प्रदेश के किसानों व चीनी मिलों के लिए वरदान साबित होगी। यह किस्म जल्द पकने वाली व अधिक शर्करा वाली है और किसानों की आमदनी बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस किस्म को विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र उचानी, करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की 'फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति' द्वारा नई दिल्ली में आयोजित 86वीं बैठक में हरियाणा प्रदेश के लिए अधिसूचित किया गया है।
चीनी मिलों को चाहिए जल्द पकने व अधिक शर्करा वाली किस्म : कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश में चीनी उद्योग को जल्दी पकने वाली और उच्च शर्करा वाली किस्म की सख्त जरूरत होती है, जिसमें लाल सडऩ रोग और प्रमुख कीट-पतंगों के प्रचलित रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक हो। इससे पहले प्रदेश में सीओ 0238 प्रमुख किस्म है जो लाल सडऩ, स्मट और अन्य बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील हो गई है। यह चोटी भेदक और अन्य कीट-पतंगों के लिए भी अतिसंवेदनशील हो गई है। इसलिए सीओएच 160 किस्म किसानों की जरूरतों और उद्योगों की मांग को ध्यान में रखकर विकसित की गई किस्म है जो इनके लिए अति उत्तम है और प्रदेश में प्रमुख किस्म सीओ 0238 के लिए उपयुक्त प्रतिस्थापन है। जल्दी पकने के कारण मिलों में भी इसके लिए शुरूआत से ही अधिक मांग रहती है। किस्म की खासियत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि सीओएच 160 किस्म का तना मध्यम आकार का मोटा होता है जिसमें बड कुशन होता है। इसकी पत्तियां गहरी हरी व मध्यम चौड़ी पत्ती वाली कैनोपी होती हैं और इसके पत्ते झुके हुए होते हैं। इनमें बोबिन के आकार के इंटर्नोड्स होते हैं। इसका तना ठोस होता है जिसमें छेद न के बराबर होते हैं जिससे इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। इस किस्म की 838 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसतन पैदावार आंकी गई है। इसके अलावा यह किस्म गिरती नहीं है और मोडी फसल भी ली जा सकती है। इस किस्म के रोपण के 300 दिनों में ही खांड का अंश उच्च स्तर का (18.55 प्रतिशत) होता है, जिससे प्रति हेक्टेयर 11.36 टन वाणिज्यिक गन्ना चीनी प्राप्त होती है।
किस्म विकसित करने में इन वैज्ञानिकों की मेहनत लाई रंग : इस किस्म को विकसित करने में डॉ. ए.एस. मेहला, डॉ. एस.पी. कादियान और डॉ. एम.सी. कंबोज जबकि सहयोगियों में डॉ. एच.एल. सेहतिया, डॉ. राकेश मेहरा, डॉ. समर सिंह, डॉ. विजय कुमार, डॉ. मेहर चंद, डॉ. रण सिंह और डॉ. सरोज जयपाल शामिल थे। इसके अलावा इस किस्म की अनुमोदित प्रक्रिया व हरियाणा में इस किस्म का रकबा बढ़ाने में डॉ. रमेश कुमार और डॉ. सुधीर शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इस उपलब्धि पर बधाई दी और भविष्य में भी निरंतर प्रयासरत रहने का आह्वान किया।
शरद व वसंत दोनों में ले सकते हैं फसल : विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि सीओएच 160 एक बहुमुखी किस्म है, जो शरद ऋतु और वसंत दोनों ऋतुओं में बोई जा सकती है। इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में सिफारिश की गई एनपीके की मात्रा 25 प्रतिशत तक अधिक डाल सकते हैं ताकि उत्पादन अधिक हासिल हो सके। यदि इसे व्यापक पंक्ति अंतर में रोपण किया जाता है तो यह यांत्रिक कटाई के लिए भी उपयुक्त किस्म है। यह लाल सडऩ और अन्य बीमारियों के प्रचलित रोग के लिए प्रतिरोधी है। इसने चोटी भेदक और चूसने वाले कीटों के प्रति कम संवेदनशील है। उन्होंने बताया कि क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र उचानी, करनाल को वर्ष 2017-18 व 2018-19 में अखिल भारतीय समन्वित गन्ना अनुसंधान परियोजना, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के द्वारा गन्ना अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदन के लिए सम्मानित भी किया गया था। इससे पहले भी विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न फसलों की अनेकों किस्म विकसित की जा चुकी हैं जिनकी बदौलत देश-प्रदेश में खाद्यान भण्डार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
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