मिड-डे मील के हालात : 3 माह से मसाला व सिलेंडर तक का नहीं मिला पैसा, 4 माह से कुक कर रही सैलरी का इंतजार

सतीश सैनी/नारनौल। सरकारी स्कूलों में दोपहर के समय मिलने वाले मिड-डे मील भोजन का फंड शिक्षा विभाग उपलब्ध नहीं करवा रहा। विद्यार्थी भोजन से वंचित ना रहे, मजबूरन स्कूल प्रशासन अपने किसी दूसरे फंड से पैसा निकाल या जेब से खर्च कर रहा है। इस बात को एक-दो दिन नहीं बल्कि तीन माह लंबा समय हो चुका है। गेहूं व चावल को छोड़कर अन्य सामग्री यहां तक की मसाला व सिलेंडर तक का पैसा अध्यापकों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ा रहा है। यहीं नहीं, इस भोजन को तैयार करने वाली कुक को भी चार माह से सैलरी नहीं मिली है। प्रशासन व शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।
जानकारी के मुताबिक मध्याह्न भोजन योजना है। जिनके अंतर्गत प्रदेश के प्राथमिक व मिडल स्कूल के विद्यार्थियों को दोपहर का भोजन निशुल्क प्रदान किया जाता है। अधिकतर बच्चे खाली पेट स्कूल पहुंचते है, जो बच्चे स्कूल आने से पहले भोजन करते हैं, उन्हें भी दोपहर तक भूख लग जाती है और वे अपना ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित नहीं कर पाते है। मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए पूरक पोषण के स्त्रोत और उनके स्वस्थ विकास के रूप में भी कार्य कर सकता है। हाल ही में मुख्य सचिव संजीव कौशल ने मध्याह्न भोजन योजना की राज्य स्तरीय संचालन समिति की बैठक की अध्यक्षत करते हुए अधिकारियों को भोजन में पोषण मूल्य जोड़ने के संबंध में विभिन्न प्रखंडों में अध्ययन करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि योजना के तहत प्रदान किए जाने वाले भोजन में फोर्टिफाइड आटा, चावल और बाजरा पर आधारित विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल है। कक्षा पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को सप्ताह में कम से कम तीन दिन मिड डे मील के साथ 200 एमएल फाइव फ्लेवर्ड फोर्टिफाइड दूध भी उपलब्ध कराया जाता है।
मसाला व ईंधन तक के नहीं मिले पैसे, हो रहा इंतजार
महेंद्रगढ़ जिला में ऐसे 730 सरकारी प्राइमरी व मिडल स्कूल है, जहां पहली से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को दोपहर का भोजन मिड-डे मील के रूप में मिलता है। शिक्षा विभाग के नियमों में करीब 15 मिन्यू है। जिसमें से विद्यार्थियों को अलग-अलग दिन अलग-अलग वस्तु भोजन के रूप में दी जाती है। इसमें मुख्यत चावल, दान, छोला, सब्जी, खीर, रोटी है। कोविड से पहले साल 2018-19 में इस मिन्यू में बाजरे को भी शामिल किया गया था लेकिन यह कागजों में ही सिमट गया। बाजरे की सप्लाई नहीं हो सकी। नियम है कि गेहूं व चावल स्कूलों में डिमांड अनुसार सरकारी एजेंसियां सप्लाई करती है। बाकी अन्य खाद्य सामग्री, मसाला व सिलेंडर जैसी वस्तुओं के लिए शिक्षा विभाग प्राइमरी के प्रति विद्यार्थी के हिसाब से 5.45 रुपये व मिडल के लिए 8.17 रुपये फंड देती है। यह भी नियम है कि अगर मिड-डे मील का पैसा किसी कारण स्कूल में नहीं आए तो स्कूल प्रशासन अपने किसी भी अन्य फंड से पैसा निकाल सकता है और बाद में मिड डे मील के आए पैसों को वापस उसी लिए गए फंड में डाल सकता है। इसी मजबूरी में कई स्कूल दूसरे फंड से पैसा निकाल रहे तो जिस स्कूल में पैसा नहीं है, वहां का स्टाफ अपनी जेब से पैसा खर्च कर जैसे-तैसे बच्चों को भोजन उपलब्ध करवा रहा है। यह सिलसिला बीते तीन माह से निरंतर जारी है।
4 माह से कुक को भी नहीं मिली सैलरी, घर चलाना हो रहा मुश्किल
मिड-डे मील का भोजन कुक तैयार करती है। इन्हें मासिक मेहनताना 3500 रुपये मिलता है। साल 2022 में शिक्षा विभाग ने इस वेतन को बढ़ाकर दोगुना यानि सात हजार करने की घोषणा कर दी थी। अब हम अगर जिला महेंद्रगढ़ की बात करें तो यहां करीब 1263 कुक है। इन्हें चार माह की सैलरी नहीं मिली है। आए दिन वह स्कूल प्रशासन के समक्ष गुहार लगाती रहती है कि घर चलाना मुश्किल हो रहा है, वेतन दिया जाए। स्कूल प्रशासन भी उनकी मांग शिक्षा विभाग के जिला अधिकारियों तक पहुंचा रहे है।
क्या कहते है डीईओ
जिला शिक्षा अधिकारी सुनील दत्त ने बताया कि मिड डे मील की सामग्री से जुड़ी बड़ी समस्या नहीं है। अपने हिदायत दी हुई है कि दूसरे फंड से पैसा इस कार्य के लिए इस्तेमाल कर सकते है। कुक के वेतन की जो बात है, वह सही है। ऐसा महेंद्रगढ़ जिला ही नहीं हरियाणा भर में है। उम्मीद है कि दो-तीन दिन में कुल का वेतन मिल जाएगा।
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