मां-बाप व बच्चों में दूरी बढ़ा रहा है स्मार्टफोन : Smartphones यूज करने से प्रभावित हो रहा है मानसिक स्वास्थ्य

हरिभूमि न्यूज : महेंद्रगढ़
आज स्मार्टफोन हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। साथ ही सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। पेरेंट्स के लिए अपने बच्चों को फोन की स्क्रीन से दूर रखना किसी चैलेंज से कम नहीं है। वैसे तो स्मार्टफोन व टैब आजकल के समय में बच्चों के लिए काफी जरूरी टूल्स भी बन गए हैं। हालांकि स्मार्टफोन का उपयोग किया जाना आवश्यक है। जीवन को सशक्त बनाने के उद्देश्य से इसका उपयोग सार्थक भी है, लेकिन स्मार्टफोन उपयोगकर्ता पर इतना हावी हो गया है की यह आपकी आत्मनिर्भरता को धीरे-धीरे खत्म कर अपने पर निर्भर बना रहा है।
इस बारे में मनोवैज्ञानिक डॉ. सूर्यकांत यादव ने कहा कि दरअसल स्मार्टफोन ने आंतरिक रूप से हमारी संवेदनाओं को कमजोर करने का काम किया है। परिणामस्वरूप हम वास्तविक दुनिया से कटते जा रहे है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हाल ही में हुए रिसर्च से यह तथ्य स्थापित होता है कि स्मार्टफोन, टैबलेट जैसी चीजों में ज्यादातर समय बिताने वाले माता-पिता अपने बच्चों के साथ एक भावनात्मक दूरी महसूस कर रहे हैं, जिस कारण से दोनों तनाव और दबाब से जूझ रहे हैं।
प्रभावित हो रहा है मानसिक स्वास्थ्य
स्मार्टफोन के अत्यधिक प्रयोग से पारिवारिक जीवन में व्यवधान के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। दिनभर फोन में झांकते रहने से तनाव का स्तर बढ़ेगा, क्योंकि ऐसा करने से मस्तिष्क में कार्टिसोल हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, जिससे व्यक्ति के संपूर्ण शरीर की कार्यप्रणाली ही गड़बड़ हो जाती है। व्यक्ति को नींद नहीं आती और भ्रम व भूलने की स्थिति में चला जाता है।
क्या है बच्चों को स्मार्टफोन से दूर रखने के तरीके
- बच्चों को एक्टिविटी-बेस्ड लर्निंग में रखें बिजी।
- फोन का उपयोग करने के लिए एक निश्चित समय तय करें।
- पारंपरिक व आउटडोर गेम खेलने की आदत डालें।
- रुचिपूर्ण व रोचक कार्यों प्राथमिकता दें।
- अगर बच्चा आपके आसपास है तो आप भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल कम से कम करें।
- बच्चे का मूड ठीक करने, लालच, बहलाने या ध्यान हटाने के तौर पर स्मार्टफोन कभी ना दें।
- टोकन इकोनॉमी व पॉजिटिव रिनफोर्समेंट तकनीक के माध्यम से बच्चों के व्यवहार को परिवर्तित करें।
- बच्चों के अंदर उनकी अभिरुचि के अनुरूप कोई हॉबी विकसित करें।
- -व्यायाम, मेडिटेशन व योग आदि शारीरिक गतिविधियों की आदत डालें। इसके अलावा चिंताजनक या गंभीर स्थिति होने पर तुरंत किसी प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से संपर्क करें।
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